सम्मानित होने के लिए… (व्यंग्य)

बीते साल अगर मोटा तो क्या छोटा सम्मान भी न मिले तो दिमाग नए साल में भी सोचता रहता है। कहीं न कहीं संकल्प ले बैठता है कि इस बरस कुछ करना ही होगा। यहां हर किसी को हर कोई सम्मानित कर रहा है। सम्मान उत्सव चल रहे हैं और तो और बढ़ती ठंड में भी रविवार की छुट्टी के दिन, दिन में ग्यारह बजे सम्मान समारोह के बहाने कवि गोष्ठी भी रखी जा रही है। उल्लेखनीय है इस बहाने ज़्यादा लोग आ जाते हैं। पत्नी की आंखों में आशा की किरणें, दिसंबर से जनवरी में प्रवेश कर गई हैं। छत पर धूप में बैठकर आसमान से पूछती रहती है कि इनको सम्मान कब मिलेगा और उन्हें कुछ सामान।  

बेचारा दिमाग जब दबाव में आ जाता है तो प्रेरणा मिलती है कि कुछ संस्थाओं में ही आवेदन कर दिया जाए। कहीं न कहीं से तो बुलावा आ ही जाएगा। इस दौरान हम कुछ दिन के लिए शहर से बाहर गए तो अपने शहर में सम्मान समारोह आयोजित होने की खबर पढने को मिली। शहर से कई सौ किलोमीटर दूर बसे आधा दर्जन परिचितों को हमारे शहर की संस्था ने सम्मानित कर डाला था। हमने अपनी अनुपस्थिति में हुए सम्मान समारोह पर ध्यान न देते हुए यह निर्णय लिया कि सम्मान के लिए सबसे पहले सरकार के यहां कोशिश करेंगे। सरकार कैसी भी हो, कैसे भी काम करे, उसका एक रूतबा होता है, इज्ज़त होती है। सरकार हर लल्लू पंजू को सम्मान या सामान नहीं देती।

हमें लगा जब हम सम्बंधित अधिकारी से मिलेंगे तो वह कहेंगे, सरकार की तारीफ़ करना सीखिए। नए अधिकारी आपके शहर में पोस्टिंग पर आएं उन्हें बुके देकर स्वागत कीजिए। सभी किस्म के मीडिया पर कवरेज दिलाइए।  

हमारा दिमाग कहने लगा कि सरकारी काम करने की तनख्वाह मिलती है। कई अधिकारियों को मोटी तनख्वाह के साथ एनपीए भी देकर एक तरह से सम्मानित ही किया जाता है। बहुत से कर्मचारियों को बढ़िया वेतन के साथ काफी छुट्टियां भी सामान की तरह दी जाती हैं। जुगाड़ से मनचाही पोस्टिंग भी मिलती है। चुने हुए नेता चाहे जैसे भी हों उन्हें सम्मानित करते रहते हैं। मान लो अधिकारी ने पूछ लिया कि आपकी उपलब्धियां क्या हैं तो हमें अपनी कार्यशैली के गुण बताते हुए कहना होगा कि समाज की विसंगतियां बताते हुए सच लिखते हैं। वे हमें आगे बोलने नहीं देंगे, कहेंगे, सच को हम कैसे सम्मानित कर सकते हैं।  

हम कहेंगे पर्यावरण की रक्षा करते हुए दूसरों को भी प्रेरित करते हैं तो वे जवाब देंगे कि सम्मानित होने के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है। यह तो सभी का कर्तव्य है। आप तो दूसरों की गलतियां निकाल रहे हो। सरकार की प्रशंसा करो। लाल को लाल न कहो। जो हम कहें उसकी तारीफ़ करते रहो तो भविष्य में कभी न कभी आपके बारे भी सोचा जा सकता है। फ़िलहाल पुराने आवेदनों की लाइन लगी है। आप चाहे तो किसी निजी संस्था में कोशिश कर सकते हो। उनके सुझाव से हमें यह भी समझ में आया कि निजीकरण क्यूं ज़रूरी है। रास्ता सामने था, चलना तो हमें ही था।  

– संतोष उत्सुक

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