आपको बिलकुल याद नहीं होगा, किसी समय की बात है किन्हीं गलत लोगों ने मिलकर कड़ी मेहनत करनेवाली हमारी सफेदपोश नौकरशाही को सबसे निकृष्टतम के खिताब से नवाज़ा था। व्यवस्थाजी ने मुझे समझा रखा है कि देश की समस्याओं से परेशान मत हुआ करें, सर्वे तो आते रहते हैं और समझदार नौकरशाहों के लिए तो ऐसे सर्वे पुरस्कार होते हैं । खुलेदिमाग लोग ऐसी बातों का बुरा नहीं मानते । उस वक़्त दिमाग़ के पिछड़े हुए हिस्से को यह सर्वे पढ़कर लगा था कि संभवत दो चार लोगों में कुछ तो बदलाव आएगा ही मगर यह सर्वे भी हज़ारों पूर्व सर्वेक्षणों की तरह सचमुच गर्क हो चुका है। वही सर्वे कल शाम याद आया जब पिछले दिनों बनी टूट चुकी सड़क के गड्ढों में से उछलते हुए, छबीस साल पुरानी कार में जा रहा था। कुछ दूर, सुहानी शाम में सड़क किनारे मित्र नौकरशाह सरकारी कार के पास खड़े थर्मस की चाय का आनंद ले रहे थे।
हमने उन्हें, उन्होंने हमें झट पहचान लिया। बोले जगह अच्छी लगी तो कुछ देर के लिए रुक गया। घर परिवार बच्चों का हालचाल लेनेदेने व यहांवहां की मारने के बाद हमने अपने स्कूलीयार से पूछा, तुम्हें बुरा नहीं लगता देश की नौकरशाही को …। नौकरशाह ने बीच में ऑब्जेक्शन लगा दिया बोले पतलू, कौन परवाह मारता है। ज़माना एक दूसरे पर जो मिल जाए उछालने का है। इस बीच उसने मेरी कार पर एक नज़र डाली। पर्सनल अटैक हो तो सोचें। ये इल्ज़ाम वो इल्ज़ाम तो हमारे वर्किंग कल्चर ज़रूरी हिस्सा हैं। देश चलाने के साथसाथ मंत्रियों नेताओं को घुमाते, सहते हुए जागरूक भी रहना पड़ता है। कितने गलत काम सही दिखाते हुए करवाने पड़ते हैं ताकि इनका वोटबैंक बना रहे। अपनी पोस्टिंग मैनेज करनी होती है। कानून बनाकर मजबूरन बिसराए रखना पड़ता है। दुविधाओं को सुविधाओं में बदलना पड़ता है। हर निज़ाम ऐसा रहता है, क्या करें।
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हमारी ऐसी वैसी कैसी कैसी आदतें पक चुकी हैं यार। स्कूल में आदर्शों का पाठ पसंद करने वाले विद्यार्थियों को व्यवस्था कैसे बदल देती है यह मेरे मित्र के चेहरे पर पुता था। महंगी कोचिंग लेकर कड़ी मेहनत कर ऊंचे ओहदों पर यह दूसरों के लिए तो सजते नहीं। सबकी तरह यह भी अपने परिवार को ज्यादा समृद्ध बनाने के लिए, रोबदाब के साथ ज़िंदगी जीने के लिए मेहनत करते हैं। यह सब इन्हें वीआईपी बनने का मौका देता है। काम लालफीताशाही के सांचे में सोच समझ कर ही करने पड़ते हैं। काम जल्दी निबटा देंगे तो कौन पूछेगा। जनता को गलत आदतें पड़ जाएंगी। सुबह से शाम तक काम करते करते थककर परेशान हो जाएंगे। क्लब जाएंगे तो वहां भी आम आदमी दिमाग में फंसा रहेगा।
तुम नौकरशाह हो यानी पब्लिक सर्वेंट, हमने कहा। तुम दोस्त हो इसलिए सही अर्थ बता रहा हूं ‘ऐसा नौकर जो शाह हो’। पब्लिक सर्वेंट का मतलब होता है ‘पब्लिक जिसकी सर्वेंट हो’। हमारी पब्लिक तो मूढ़मति है जहां हांको चलती है। गाड़ी में बैठते हुए मेरी डैंटयुक्त गाड़ी की तरफ फिर देख बोले तुम भी इंडियन पब्लिक की तरह हो यार। गाड़ी नहीं बदली। हमने कहा तुम्हारी लालबत्ती। लालबत्ती तो दिमाग में होती है जनाब। मुझे सही जवाब पकड़ा दिया गया था। खैर आना कभी …और कोई सेवा…। लगा बहुत दिनों बाद किसी राजा से भेंट हुई जिसे, महाराज की बार बार जयहो सुनना ही अच्छा लगता है। राजा है भई।
– संतोष उत्सुक