प्रदूषण काल में बढ़े कैंसर को रोकने की चुनौती?

आमजन में अक्सर ऐसी धारणाएं रही हैं कि कैंसर मुख्यतः तंबाकू, खैनी-गुटखा या शराब के सेवन से ही होता है। पर, कैंसर अब इन वजहों तक ही सीमित नहीं रहा? इस खतनाक बीमारी ने बड़ा विस्तार ले लिया है। कैंसर अब प्रदूषण के चलते भी विशाल मात्रा में होने लगा है। वायु प्रदूषण से सिर्फ अस्थमा, हृदय संबंधी डिजीज, स्किन एलर्जी या आंखों की बीमारियां ही नहीं होती, बल्कि जानलेवा कैंसर भी होले लगा है। इसलिए यहां जरूरी हो जाता है कि वायु प्रदूषण से फैलने वाले कैंसर के प्रति ज्यादा से ज्यादा देशवासियों को जागरूकता किया जाए और प्रत्येक हंथकंड़ों को अपनाकर घरों-घरों तक जागरूकता फैलानी चाहिए। इस काम में सरकारों के साथ-साथ आमजन को भी भागीदारी निभानी होगी। धुंध, प्रदूषित काले बादल व प्रदूषण की मोटी चादर इस वक्त कई शहरों पर चढ़ी हुई है जिसमें दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र सबसे अव्वल स्थान पर है जहां का एक्यूआई लेबर गंभीर स्थिति को भी छलांग लगा चुका है। दिल्ली के अलावा देश के बाकी महानगरों का भी हाल ज्यादा अच्छा नहीं है, वहां भी लोगों को सांस लेना दूभर हो रहा है। अस्पतालों में मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।

बहरहाल, कैंसर अब नए-नए रूप में उभर रहा है जिसमें दूषित वायु प्रदूषण अहम भूमिका में है। हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो विषाक्त और दमघोंटू प्रदूषण कई तरीके से कैंसर को जन्म दे रहा है। रिपोर्टस् बताती हैं कि प्रदूषण जब शरीर में घुसता है, तो वो सबसे पहले अंदरूनी कोशिकाओं यानी डीएनए पर प्रहार करके उन्हें डैमेज करता है जो आगे चलकर कैंसर का प्रमुख कारण बनता है। इसके अलावा प्रदूषण से शरीर में इंफ्लेमेशन भी बढ़ता है और इम्यून सिस्टम को बिगाड़ता है। प्रदूषण को लेकर जो स्थिति इस वक्त समूचे हिंदुस्तान में बनी है। ऐसे में हल्के-फुल्के मरीजों के लिए ये वक्त बहुत ही खतरनाक है। ऐसे मरीजों का वायु प्रदूषण के संपर्क में आने का मतलब है कैंसर, स्ट्रोक, श्वसन, हृदय संबंधी रोग और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं को दावत देना? डब्ल्यूएचओ की पिछले साल की एक रिपोर्ट इसी माह नवंबर में आई थी जिसमें बताया गया था कि वायु प्रदूषण से पूरे संसार में प्रतिवर्ष लगभग सात मिलियन मौतें होती हैं जिसमें भारत को दूसरे स्थान पर रखा था। स्थिति इस वर्ष भी भंयकर है।

हिंदुस्तान में पिछले तीन वर्षों में कैंसर से अपनी जान गंवाने वालों की संख्याओं पर नजर डालें तो, सन 2020 में 7,70,230 मौतें थी। जो 2021 में बढ़कर 7,89,202 हुई। वहीं, 2022 में यानी पिछले साल भारत में कैंसर से मरने वालों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ, संख्या बढ़कर 8,08,558 पर पहुंच गई। इस साल का आंकड़ा दो महीने बाद आएगा, निश्चित रूप से वो भी डरावना ही होगा। कैंसर को लेकर जागरूकता की कोई कमी नहीं है। केंद्र सरकार से लेकर सभी राज्य सरकारें भी जागरूकता फैलाने में अग्रणी भूमिका निभाती हैं। लेकिन कैंसर है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। चिकित्सकों की माने तो कार्सिनोजेन यानी कैंसरजनक जो कैंसर फैलाने वाला पदार्थ है जो तंबाकू, धुआं, पर्यावरण, वायरस किसी से भी हो सकता है। मौजूदा कैंसर ज्यादातर दूषित वातावरण से ही होने लगा है। बढ़ते कैंसर को लेकर जितना आमजन परेशान हैं, उतनी ही हुकूमतें भी दुखी हैं।

चलिए बताते हैं कि भारत में ‘नेशनल कैंसर जागरूकता’ का आरंभ कब हुआ। सितंबर 2014 में, राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस की शुरुआत पहली बार भारत में तबके केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन द्वारा हुई। तब उन्होंने एक समिति का गठन किया और निर्णय लिया कि विभिन्न किस्म के होने वाले कैंसरों की गंभीरता, उनके लक्षणों और उपचार के बारे में जागरूकता फैलाई जाएगी और प्रत्येक वर्ष नवंबर की 7 तारीख को ‘राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस’ मनाया जाया करेगा। तभी से इस खास दिवस की शुरुआत हुई। वैसे इस दिवस की प्रासंगिगता अब और बढ़ गई है। क्योंकि प्रदूषण कैंसर का कारण बन रहा है, इसका भी प्रचार करना बहुत जरूरी हो जाता है। वायु प्रदूषण से उत्पन्न कैंसर के पहला बचाव तो यही है, कि धुंध-धुआं वाले स्थानों पर अपने मुंह पर मास्क लगाकर रखें और वहां से हटने के बाद अपने हाथों और मुंह को साबुन से धोएं?

भारत में कैंसर रोगियों के आंकड़ों में बीते कुछ बर्षों में तेजी से उछाल आया है। जबकि, एक वक्त ऐसा भी था। जब, मात्र कुछ ही लाख कैंसर रोगी पूरे देश में होते हैं। अब ये आंकड़ा कोई एकाध लाख तक नहीं, बल्कि कई लाखों में जा पहुंचा है। नए कैंसरों के मामले तो बेहताशा ही बढ़े हैं। महानगरीय क्षेत्रों में कैंसर रोगियां की संख्या देखकर रांगटे खड़े होते हैं। जबकि, ग्रामीण क्षेत्रों के हालात अब थोड़े बहुत संतोषजनक हैं। तंबाकू-सिगरेट का बढ़ता उपयोग भी एक कारण है और हमेशा से रहा भी है। दुख इस बात का है कि महिलाएं भी अब पुरुषों के मुकाबले स्मोकिंग करने में पीछे नहीं रहती। खूब सुट्टा मारती हैं। यही कारण है कि सन 1995 और 2025 के बीच, तंबाकू और स्मोकिंग से संबंधित कैंसर की रुग्णता में वृद्धि हुई है। इन आंकड़ों को देखकर हमें निश्चित से सार्वजनिक स्वास्थ्य के मामलों पर गंभीर होना पड़ेगा? ‘राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस’ रोगों के जोखिमों उनके कारकों, जीवन गुणवत्ताओं को प्रभावित करने वाले सामान्य कैंसर और उनके लक्षणों के प्रति हमें चेताता है। उनका हमें अनुसरण करना होगा। स्वास्थ्य के प्रति हमें कतई लापरवाह नहीं होना चाहिए, चिकित्सकों की गाइडलाइन्स को फॉलो करना होगा और समय-समय पर लगने वाले सरकारी हेल्थ कैंपों में पहुंचकर अपने संपूर्ण शरीर का चिकित्सीय परीक्षण भी करवाना चाहिए।

– डॉ. रमेश ठाकुर

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