ज़िम्मेदारी के इलावा (व्यंग्य)

neta

Prabhasakshi

संस्थान ने शिक्षा के साथ दुग्ध पशु पालन शुरू कर लिया है। वह तो वहां शोध और खोज भी करना चाहते हैं, शोध और खोज लाभदायक और उपयोगी रहेगी ही और उसी आधार पर पशु पालन केंद्र को बढ़ावा दिया जाएगा।

ज़िम्मेदारी में जो काम शामिल न हों यदि किए जाएं तो चर्चा ज़्यादा होती है। ऐसे काम दिलचस्प ख़बरें बनाते और छपवाते हैं। व्यक्तिगत स्तर को छोडिए, शिक्षण संस्थान जिनकी स्थायी और निरंतर ज़िम्मेदारी विद्यार्थियों को पढ़ाते हुए चरित्र निर्माण करना  है वे भी कुछ अलग कर नाम कमा रहे हैं। संस्थान का स्तर ऊंचा करने के लिए व्यवस्था और ज़माने के साथ चल रहे हैं। दूसरों को दिखा रहे हैं, देखो हम तुमसे आगे निकल गए हैं। कुछ संस्थान अपने क्षेत्र शिक्षा से हटकर अनोखे काम कर रहे हैं। इन्होंने पशु संवर्धन और अनुसंधान केंद्र भी खोल दिया है। लगता है काफी दूर तक, पशु पालन विभाग द्वारा संचालित पशु चिकित्सा एवं संवर्धन केंद्र नहीं है। उन्होंने किसी बड़े सरकार से गुज़ारिश तो की होगी लेकिन उन्होंने किंतु परंतु लगा दिया होगा।

  

संस्थान ने शिक्षा के साथ दुग्ध पशु पालन शुरू कर लिया है। वह तो वहां शोध और खोज भी करना चाहते हैं, शोध और खोज लाभदायक और उपयोगी रहेगी ही और उसी आधार पर पशु पालन केंद्र को बढ़ावा दिया जाएगा। बताते हैं संस्थान बहुपक्षों पर अनुसंधान ही नहीं करेगा, विद्यार्थियों को शुद्ध दूध, घी और लस्सी भी मिल सकेगी। समझदार विद्यार्थियों का क्या है वो तो खुद ही पढ़ लेंगे। उम्मीद तो है शिक्षा संस्थान भी पढ़ाने पर संजीदा ध्यान देगा। संस्थान की सूचनानुसार परिसर में होने वाले मासिक हवन के लिए भी सामान मिल पाएगा। इससे आत्मनिर्भरता बढ़ेगी। जब पता लगा कि शिक्षण संस्थान में शुरू किए गए पशुपालन प्रयास से गोबर गैस प्लांट भी लगाया जा सकता है तब दूसरों को भी जानने की इच्छा हुई कि क्या दूसरे शिक्षा संस्थान भी ऐसा कर रहे हैं, कर सकते हैं। इससे बेरोजगारी भी कम होगी। 

पढ़ाने के साथ पशुपालन का निर्णय नया प्रयोग है। संस्थान स्तर पर लिया गया लगता है। वहां के प्रशासक दूरदर्शी लगते हैं। बच्चे पढ़ लिखकर कुछ और बनें या न उनकी दिलचस्पी पशुपालन में तो पैदा हो ही जाएगी। इस क्षेत्र में भी अपना कैरियर बनाने की सोच सकते हैं। पेट भरने के लिए क्या करते हैं यह ज़रूरी नहीं बल्कि यह ज़रूरी है कि कुछ न कुछ तो करते ही हैं। जिन लोगों को इसमें कुछ गलत दिख रहा है उन्हें संजीदगी से सोचना चाहिए कि पढ़ाई लिखाई पर तो अब वैसे भी राजनीति की पुताई हो रही है। बेरोजगारी उनके लिए बढ़ती जा रही है जो रेज़गारी की तरह बहुतायत में हैं। पढने के साथ कुछ करना सीख जाएंगे तो बेहतर ही होगा। ऐसे संस्थान का शुक्रिया भी अदा करेंगे। फिर शुद्ध देसी घी, दही, दूध से सेहत भी उच्च स्तरीय रहेगी। कहीं मार कुटाई करनी पड़ जाए तो फायदा रहेगा। पढ़ाई लिखाई के साथ ताक़त भी ज़रूरी है।

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