गुरुजी का उचित न्याय (बाल कहानी)

बेटा, यह उस समय की बात है जब पढाई में कमज़ोर विद्यार्थियों को उनके गुरु, घर बुलाकर या विद्यालय में ही अलग से पढ़ाया करते थे। उन विद्यार्थियों से अलग से कोई फीस भी नहीं ली जाती थी। उन दिनों स्कूल में बच्चों की पिटाई होती थी मगर माता पिता को कोई खबर नहीं होती थी।

स्कूल से जब भी अवकाश होता है, शेखू अपने पापा से कहानी सुनता है। पिछले रविवार को अपना होम वर्क पूरा कर वह उनके पास गया। उसके पापा ने उसे यह कहानी सुनाई। 

बेटा, यह उस समय की बात है जब पढाई में कमज़ोर विद्यार्थियों को उनके गुरु, घर बुलाकर या विद्यालय में ही अलग से पढ़ाया करते थे। उन विद्यार्थियों से अलग से कोई फीस भी नहीं ली जाती थी। उन दिनों स्कूल में बच्चों की पिटाई होती थी मगर माता पिता को कोई खबर नहीं होती थी। किसी तरह बात अगर घर तक पहुंच भी जाती तो कितनी ही बार अभिभावक खुद स्कूल जाकर अध्यापक का धन्यवाद करते थे। गलती करने पर घर पर अलग से डांट पड़ती थी। 

उस दिन, उस समय मैथ का पीरियड चल रहा था, गुरूजी द्वारा कई बार समझाने और बार बार खुद कोशिश करने के बावजूद भी एक विद्यार्थी सवाल हल नहीं कर पा रहा था। उस दिन गुरूजी का मूड भी कुछ ठीक नहीं लग रहा था, शायद इसलिए उन्हें उस विद्यार्थी पर गुस्सा आ गया। उनकी क्लास खत्म होने के बाद आधी छुट्टी होनी थी जिसमें मिलकर खाना खाना था। गुरूजी ने यह फैसला लेते हुए कि उस विद्यार्थी की पिटाई करनी है मॉनिटर से कहा, ‘मॉनिटर जाओ एक डंडा लेकर आओ, आज मैं इसकी खबर लेता हूं’। क्लास मॉनिटर डंडा लेने कक्षा से बाहर गया और जल्दी से एक कमज़ोर पतली सी लकड़ी का छोटा सा टुकड़ा ले आया और बोला, ‘लीजिए गुरूजी’। 

गुरूजी को वो डंडा देखते ही गुस्सा आ गया, ‘इससे कहीं चोट लगती है, देखो मैं तुमको ही लगाता हूं’ यह कहते हुए उन्होंने एक डंडा मॉनिटर को ही लगा दिया और बोले, ‘जाओ जाकर दूसरा डंडा लेकर आओ’। मॉनिटर फिर भागा डंडा लेने के लिए, उसे थोड़ा समय लग गया और इस बार पुराने स्टूल की टूटी हुई टांग ले आया। उसे लगा इस बार बढ़िया डंडा लाने के लिए गुरूजी उसे शाबाशी देंगे लेकिन जैसे ही उस सख्त लकड़ी को गुरूजी ने हाथ से पकड़ा उनका गुस्सा बढ़ गया और मॉनिटर की टांग पर लगभग जोर से मारने का अभिनय करते हुए बोले, ‘मॉनिटर, तुम क्या इसके दुश्मन हो जो इतना मोटा डंडा लाए हो’। अब मॉनिटर घबरा गया उसे लगा अब पिटने की उसकी बारी है । 

गुरूजी ने वह लकड़ी डेस्क पर रख दी  और कुछ क्षणों के लिए मौन रहने के बाद बोले, ‘बच्चो, आपने देखा जब मॉनिटर पतला डंडा लाया तब भी उसे डांट पड़ी और जब ज्यादा मोटा लाया तब भी, मेरा मतलब किसी विद्यार्थी को पीटना नहीं था बलिक समझाना कि गलती करने वाले को उचित सज़ा मिले, न कम न ज्यादा’। उन्होंने उस विद्यार्थी से कहा कि वह घर जाकर अभ्यास करे और यदि उसे फिर भी समझ न आए तो रोज़ाना पढने के लिए, छुट्टी के बाद उनके घर आ जाया करे। गुरूजी ने पूरी क्लास को संबोधित करते हुए कहा कि जिस बच्चे को भी मैथ विषय में कुछ समझ न आ रहा हो वह भी आ सकता है। खाना खाने की छुट्टी की घंटी बज चुकी थी, वह बच्चा जिससे सवाल हल नहीं हो रहा था वह पिटाई से बच गया लेकिन उसे और पूरी कक्षा को शिक्षा मिली। खाना खाते समय सब यही बात कर रहे थे कि यदि गुरूजी चाहते तो सज़ा दे सकते थे लेकिन उन्होंने बिना ऐसा किए मॉनिटर समेत सभी विद्यार्थियों को अच्छे से समझा दिया।

– संतोष उत्सुक

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