उपहार तो लेने की चीज़ है (व्यंग्य)

मानवीय व्यवहार में देने की संस्कृति को सराहा जाता है। माना जाता है कि दूसरों को देने से जो खुशी, संतुष्टि मिलती है उसका कोई विकल्प नहीं। लेकिन अब तो लेने की संस्कृति भी काफी विकसित होती जा रही है। हम इस बात की परवाह नहीं करते कि क्या दे रहे हैं, इस बात का ध्यान रखते हैं कि क्या ले रहे हैं और क्या मिल सकता है। 

हर वर्ष नए साल से शुरू होकर साल खत्म होने तक दर्जनों अवसर आते हैं जब उपहार दिए जाते हैं लेकिन उनके बदले रिटर्न गिफ्ट देना ज़रूरी नहीं समझा जाता। हां, कुछ ख़ास उपहारों के बदले ख़ास काम ज़रूर होते हैं। इस सम्बन्ध में मिले उपहारों को उपहार कम, उस काम की कीमत ज्यादा मान सकते हैं। इतनी बड़ी दुनिया के छोटे छोटे देशों ने ऐसी ऐसी परम्पराएं बना रखी हैं कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के देशवासियों को हैरानी होती है। जापान में उपहार मिल जाए तो उसे किसी भी तरह लौटाकर समायोजित किया जाता है। रिटर्न गिफ्ट की कीमत, उपहार की कीमत से आधी होनी ज़रूरी है। उसके साथ लिखे जाने वाले उचित संदेश के नियम भी हैं।

हमारे यहां अधिकांश मामलों में रिटर्न गिफ्ट की कीमत बारे कोई विचार नहीं, न ही संदेश ज़रूरी है। यहां नेताओं और अधिकारियों द्वारा बड़े बड़े उपहार प्राप्त करना उनका अधिकार है। वहां कोई अपने कर्मचारी को रिटर्न गिफ्ट देगा तो उसकी कीमत उपहार से दोगुना होनी चाहिए। दिलचस्प यह है कि पारम्परिक रूप से वहां वेलइटाइम डे पर महिलाएं ही पुरुषों को उपहार दे सकती हैं फिर अगले दिन पुरुष मिले उपहारों के बदले महिलाओं को रिटर्न गिफ्ट देते हैं। हमारे यहां लड़की चाहती है कि उपहार तो लड़का ही दे । शादी जैसे अवसरों पर रिटर्न गिफ्ट तय करना मुश्किल हो जाता है इसलिए वहां कैटलाग बनाए जाते हैं जिससे रिटर्न गिफ्ट लेने वाला अपनी पसंद का रिटर्न गिफ्ट चुन सकता है।  हमारी तरह नहीं कि पसंद आए न आए, चिपका दिए जाते हैं ताकि घर के स्टोर की शोभा में बढ़ोतरी हो। 

हमारे यहां दिवाली पर पतीसे का एक ही मीठा उपहार कई घरों में घूमने की सांस्कृतिक परम्परा है। वहां लगभग हर अवसर पर उपहार देने की प्रथा है। स्कूल में प्रवेश, प्रवेश परीक्षा, स्नातक, नौकरी, शादी, माता पिता बनना और  सठियाने पर भी उपहार दिया जाता है। मरने पर अंत्येष्टि धन दिया जाता है। हमारे यहां उपहार लेना ज़्यादा पसंद किया जाता है, उपहार तो हम देने के लिए देते हैं फिर गणना शुरू हो जाती है कि हमें क्या मिलेगा। 

हम छोटे से देश जापान जैसे थोडा हो सकते हैं।

– संतोष उत्सुक

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