स्वार्थ सिद्धि योग का उपभोग (व्यंग्य)

दिलचस्प यह है कि आजकल निजी स्वार्थ पूरे करने में लगे बंदे, मुंह फाड़ फाड़कर दूसरों को स्वार्थी कहते हैं। इससे भी ज्यादा महादिलचस्प यह है और करोड़ों लोगों को पता ही नहीं है कि हमारी विश्वगुरु संस्कृति में हज़ारों साल पहले से ही स्वार्थ सिद्धि योग उपलब्ध है।

हमारी महान संस्कृति में कितने योग हैं यह तभी पता चलता है जब हमें ज़रूरत पड़ती है। हम दर्जनों बार अपने अभिभावकों, सरकार, अधिकारियों, नेताओं, परिचित और अनाम लोगों को स्वार्थी कहकर अपनी भड़ास निकालते हैं। इंसान अपनी जीवन यात्रा, बिना किसी दुर्घटना के जारी रखना चाहता है लेकिन उसे रास्ते में अनेक स्वार्थ खड़े मिलते हैं जो उसके जीवन वाहन पर सवार हो जाते हैं। पहले यह स्वार्थ खालीपेट होते हैं लेकिन यात्रा में आकर्षक, रंग बिरंगी, सुन्दर और सुगन्धित वस्तुएं देखकर इन्हें भूख लगनी शुरू हो जाती है। भूख धीरे धीरे बढ़ते हुए प्रचंड हो जाती है। बेचारे इंसान को इनका पेट भरने के लिए काफी कुछ उल्टा पुल्टा, टेढ़ा मेढ़ा, अपनी सामर्थ्य से बाहर करना पड़ता है। उसे ही स्वार्थ सिद्धि कहा जाता है। 

दिलचस्प यह है कि आजकल निजी स्वार्थ पूरे करने में लगे बंदे, मुंह फाड़ फाड़कर दूसरों को स्वार्थी कहते हैं। इससे भी ज्यादा महादिलचस्प यह है और करोड़ों लोगों को पता ही नहीं है कि हमारी विश्वगुरु संस्कृति में हज़ारों साल पहले से ही स्वार्थ सिद्धि योग उपलब्ध है। उस समय के समाज नायकों, समाज सुधारकों, नीति निर्माताओं व जीवन सूत्र उत्पादकों ने बिना किसी की मदद लिए ऐसे सूत्र रचे कि समझदार व्यक्ति, पडोसी या किसी को बिना कुछ कहे या किए अपने प्रिय कार्य को पूरा कर सकते थे। वर्तमान समय में  इसका उपयोग और उपभोग उचित तरीके से किया जाए तो बहुत लाभदायक साबित हो सकता है। जिन गलत लोगों के स्वार्थ पूरे हो रहे हैं, लगता है उन्होंने ज़रूर इसे उचित तरीके से अपनाया होगा।

किसी भी वर्ष की पहली पूर्णिमा को स्वार्थ सिद्धि योग होता है जो नए साल पर दिए जाने वाले उपहारों से लाभदायक मेल खाता है। सही गणना के बाद शुभकार्य करना यानी आवश्यक उपहार देने या लेने का, सही पात्र को चौसठ या सौ गुणा फल प्राप्त होता है। बुद्धि योगी, शुभ समय में मुहर्त निकालकर कार्यसिद्धि करते हैं। ऐसे कार्य रात ही नहीं, आधी रात को भी करें तो जीवन में सफलता का प्रकाश होना सुनिश्चित होता है। समझदार लोग कहते हैं कि इस क्रिया को संकल्प मानते हुए धारण करना चाहिए जिसे कायदा, वायदा या इरादा भी कह सकते हैं।  

अपने ख़ास लोगों को स्वार्थ सिद्धि योग के उपभोग में शामिल करना चाहिए। विशेषकर ऐसे लोग जो स्वार्थ सिद्ध करने के लिए सब कुछ यानी हर कुछ करने के लिए तैयार रहते हैं। स्वार्थ को सिद्ध करने वाले जानते और समझते हैं कि अब मुहर्त ठीक है। उन्हें यह भी पता होता है कि कौन उनका, कौन सा स्वार्थ पूरा कर सकता है । वक़्त के साथ स्वार्थ का आकार रंग रूप बदल दिया जाता है। साम, दाम, दंड, भेद फार्मूले का समावेश किया जाता है। जाति, क्षेत्र, वर्ग, सम्प्रदाय और धर्म सब को दांव पर लगा दिया जाता है। स्वार्थ सिद्धि योग का खुलकर उपभोग हो तो आनंद बरसता है।

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