तो रिश्ता पक्का समझें… (व्यंग्य)

लड़का बड़ा जल्दी में है। अपने मात-पिता के साथ लड़की देखने के लिए लड़की वालों के यहाँ पहुँचा है। लड़की सज-धजकर तैयार है। अतिथियों की आवभगत करने संबंधी फार्माल्टी चल रही है। लड़की के माता-पिता बहुत प्रसन्न हैं। लड़का छरहरा बदन कद-काठी का सुड़ौल गबरू जवान है। कमाता भी अच्छा है। हाथ के साथ-साथ पैरों की अंगुलियाँ भी घी में डूबी हुई हैं। लड़की दिखाने में हो रही देरी पर लड़का बेचैन हो उठा। उसने अपने पिता से कहलवा दिया कि उसे नौकरी पर जाना है। वह काम का पक्का है। काम को पूजा खुद को उसका भक्त मानता है।  
लड़की वाले लड़के की बेचैनी को जानकर लड़की दिखाई की रस्म पूरी की। लड़के को लड़की पसंद आ गई। लड़की के माता-पिता लड़के से उसके काम-धंधे के बारे में पूछते हुए कहने लगे– बेटा! वैसे तो शादीलाल जी ने आपके घर-परिवार, खानदान के बारे में बहुत कुछ बताया। उसने आपके काम-धंधे के बारे में बताते हुए इतना भर कहा कि आप कोई एक्सपोर्ट का धंधा करते हैं। किस चीज़ का एक्सपोर्ट करते हैं, वह नहीं बताया। उसने यह भी बताया कि आपके पिता जी मैनुफैक्चरिंग का होलसेल बिजनेस करते हैं। दोनों का धंधा ऐसा कि आपके यहाँ लक्ष्मी जी की बरसात होती है। आप दोनों के धंधे वाले शब्दकोश में नुकसान जैसा शब्द नहीं है। बस बेटा मैं इतना भर जानना चाहता हूँ कि आप दोनों किस तरह का बिजनेस करते हैं।

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लड़का पैर पर पैर धरते हुए पीठ सोफे पर टिकाकर कहने लगा– देखिए अंकल जी! जहाँ तक मेरे बिजनेस का सवाल है तो मैं डेड बॉडी की आत्माओं को स्वर्गलोक एक्सपोर्ट करने का धंधा करता हूँ। मैं अपने बिजनेस में किसी प्रकार का समझौता नहीं करता। जिस किसी धर्म, जात-पात की डेड बॉडी हो मैं उसी तरीके से उसकी अंतिमक्रिया संपन्न करता हूँ। एक बार के लिए डेड बॉडी के घर-परिवार वाले अंतिम संस्कार करने में भूल-चूक कर सकते हैं, मैं कतई नहीं। मेरा यह मानना है कि आदमी जिंदगी भर जिस किसी भी बेचैनी के साथ जिए, लेकिन दुनिया से जाते समय सुकून से जाए। घर-परिवार वाले डिस्काउंट माँगने की कोशिश करते हैं, लेकिन मेरे काम का रेट फिक्स्ड है। अलबत्ता दिव्यांगों, एड्स रोगियों, कैंसर पीड़ितों के लिए थोडा-बहुत डिस्काउंट दे देता हूँ। सबसे ज्यादा डिस्काउंट बेरोजगार डेड बॉडी को देता हूँ। नेताओं की बॉडी पर ‘एलएचवीडी टैक्स’ (लूटा हुआ वापस दो टैक्स) 420 रुपए प्रति सेकंड के हिसाब से लिया जाता है। देखा जाए तो मेरे धंधे में मंदी कभी नहीं पड़ती। यह सदाबहार धंधा है। इसी धंधे के चलते शहर के पॉश इलाकों में तीन-तीन कोठियाँ खरीदी हैं।
 
लड़की का बाप मुँह खोले भौंहों को आश्चर्य भंगिमा में बदलते हुए सिर हिलाते रह गया। उसने लड़के से पूछा– बेटा! तीन-तीन कोठियाँ कैसे खरीदी? क्या इस धंधे में इतनी आमदनी होती है? लड़के ने मुस्कुराते हुए कहा– अंकल जी! वह क्या है न कि कुछ साल पहले एक अजीबोगरीब बीमारी आयी थी, उसमें एक्सपोर्ट का बिजनेस इतना बढ़ गया था कि मुझे सांस लेने भर की फुर्सत नहीं मिल रही थी। धंधे के पैशन ने मुझे थकने नहीं दिया। मैंने उन दिनों बिना सोए आत्माओं के एक्सपोर्ट में अपना सब कुछ लगा दिया। इसी का परिणाम है कि मैंने तीन-तीन कोठियाँ खरीदी हैं।
लड़की की पिता यह सब सुन फूले न समा रहा था। उसने दूसरी ओर मलाई रबड़ी खा रहे होने वाले समधी से उनके मैनुफैकचरिंग धंधे के बारे में पूछ लिया। इस पर उन्होंने कहा– मैं कफ़न का मैनुफैकचरिंग करता हूँ। इसके बिना मेरा लड़का एक्सपोर्ट का बिजनेस नहीं कर पाता है। मैं जितना इनपुट देता हूँ वह एक्सपोर्ट का उतना आउटपुट देता है। मेरा धंधा भी सदाबहार है। कुल मिलाकर हम अपनी बस्ती के सबसे अमीर रसूखदार हैं।
लड़की का पिता खुशी के मारे झूमने लगा। उसने कहा– भाई साहब! मैं आपको कैसे बताऊँ कि आज मैं कितना खुश हूँ। मेरी बेटी ऐसे घर में जा रही है जहाँ रुपए-पैसों की नदियाँ बहती हैं। खाने-पीने और सुविधाओं की कोई कमी नहीं है। भगवान करे आप लोगों का धंधा इसी तरह दिन दूनी रात चौगुनी चलता रहे। मैं आप लोगों से निवेदन करता हूँ कि आप लोग इस रिश्ते को पक्का कर दें। लड़के के पिता ने हँसते हुए कहा– बिल्कुल पक्का करेंगे, किंतु एक शर्त है। शर्त है कि आप हमसे वादा करें कि आपके आस-पास मरने वालों का कफन और एक्सपोर्ट बिजनेस हमें सौपेंगे। यह सुनते ही लड़की का पिता ठहाका मारकर हँसने लगा।
– डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,
(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

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