ISRO vs Suparco: हमसे 8 साल आगे रहने वाले कैसे 100 साल पीछे रह गए, भारत और पाकिस्तान के स्पेस वॉर की अनसुनी कहानी

अंतरिक्ष कार्यक्रम को अयूब खान द्वारा अप्रूव किया गया था और पाकिस्तान ने 1961 में अपनी पहली अंतरिक्ष एजेंसी की स्थापना की। यह चीन और भारत दोनों को पीछे छोड़ते हुए उपमहाद्वीप में अपनी तरह की पहली एजेंसी थी।

चंद्रयान 3 और आदित्य एल1 के जरिए इसरो ने देश-दुनिया में अपना डंका बजवा दिया है। चंद्रयान ने चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग की जहां आज तक दुनिया का कोई देश नहीं पहुंच पाया। वहीं सूर्य का अध्ययन करने के लिए आदित्य एल 1 भी अपने मुकाम पर आगे बढ़ रहा है। आने वाले वक्त में इसरो की तरफ से कई सारे महत्वपूर्ण मिशन भी लॉन्च किए जाने वाले हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि पाकिस्तान स्पेस रेस और साइंस में भारत से दो कदम आगे था। आज हम आपको न ही इसरो की बात बताएंगे और न ही अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का जिक्र करेंगे। आज आपको  एसयूपीएआरसीओ की कहानी सुनाएंगे। अब आप सोच रहे होंगे की आखिर ये एसयूपीएआरसीओ है क्या? दरअसल, एसयूपीएआरसीओ पाकिस्तान की स्पेस एजेंसी का नाम है, जिसकी स्थापना भारत के इसरो से आठ बरस पहले ही की गई थी। इतना ही नहीं स्पेस एंड अपर एटमॉसफेयर रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन ने भारत और चीन से पहले ही अपना रॉकेट भी सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में लॉन्च कर दिया था। लेकिन जहां एक तरफ इसरो का नाम पूरी दुनिया जानती है वहीं पाकिस्तान की स्पेस एजेंसी का नाम शायद ही किसी को पता होगा। आज आपको पाकिस्तान के स्पेस प्रोग्राम के सफलता और उसके पतन की कहानी सुनाते हैं। 

दुनिया में कैसे शुरू हुई स्पेस वॉर की शुरुआत

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारती की बड़ी बड़ी सुपर पावर्स को समझ आ गया था कि आने वाले वक्त में किसी भी दुश्मन देश को हथियारों की बजाए आर्थिक मोर्चे और टेक्नोलॉजी से ही मात दी जा सकती है। इस तरह सोवियत यूनियन और अमेरिका सबसे पहले स्पेस प्रोग्राम की दौड़ में भागने लगे। 1957 में सबसे पहले सोवियत रूस ने स्पूतनिक 1 सैटेलाइट लॉन्च कर अमेरिका को पीछे छोड़ दिया। फिर 12 अप्रैल 1961 को सोवियत यूनियन ने यूरी गागरिन को स्पेस में भेजकर इतिहास रच दिया। लेकिन इसके बाद अमेरिकी प्रेसिडेंट जॉन एफ कैनेडी ने 25 मई 1961 को ऐलान किया कि अमेरिका चांद पर इंसान को भेजेगा और उसे धरती पर वापस भी लेकर आया। इस मिशन ने नासा को नया जीवन दिया और इससे पाकिस्तान की किस्मत भी खुल गई। पाकिस्तान के स्पेस प्रोग्राम को शुरू करने का क्रेडिट अबदुस सलाम को जाता है। 

कैसे हुई सुपार्को की शुरुआत

अंतरिक्ष कार्यक्रम को अयूब खान द्वारा अप्रूव किया गया था और पाकिस्तान ने 1961 में अपनी पहली अंतरिक्ष एजेंसी की स्थापना की। यह चीन और भारत दोनों को पीछे छोड़ते हुए उपमहाद्वीप में अपनी तरह की पहली एजेंसी थी। सुपार्को के शुरुआती वर्ष आशा और दृढ़ संकल्प से भरे थे। दरअसल, अंतरिक्ष तकनीक का अध्ययन करने के लिए चार वैज्ञानिकों को नासा भी भेजा गया था। सुपार्को की स्थापना के दो साल बाद, पाकिस्तान ने कराची तट से दूर एक रेंज से अपना पहला रॉकेट लॉन्च किया। ऐसा नासा की मदद से किया गया. इजराइल और जापान के बाद पाकिस्तान एशिया में रॉकेट लॉन्च करने वाला तीसरा गौरवान्वित देश बन गया। भारत के भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से आठ साल पहले अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू करने के बावजूद, सुपार्को को प्रौद्योगिकी और मिशन सफलता दोनों के मामले में भारत से दशकों पीछे माना जाता है। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी, इसरो ने 104 उपग्रह भेजकर विश्व रिकॉर्ड तोड़ दिया और पहले ही चंद्रमा और मंगल ग्रह पर मिशन लॉन्च कर चुकी है, जबकि सुपार्को लगभग बेकार हो गया है।

उपमहाद्वीप की सबसे पुरानी अंतरिक्ष एजेंसी सुपार्को का क्या हुआ?

सुपार्को की स्थिति को सुधारने के लिए सरकार की ओर से बहुत कम फंडिंग और बड़ी उदासीनता थी। बाद में सरकार ने सुपार्को से जुड़े सभी फंड को परमाणु बम परियोजना में स्थानांतरित कर दिया, जिसके कारण पाकिस्तान की अंतरिक्ष एजेंसी उड़ान भरने में विफल रही। बाद में 1980 और 1990 के बीच पाकिस्तानी राष्ट्रपति जिया-उल-हक ने अंतरिक्ष एजेंसी को दी जाने वाली फंडिंग वापस ले ली और वैज्ञानिकों को भी बदल दिया। पाकिस्तान का ध्यान सिर्फ भारत के बढ़ते खतरे का मुकाबला करने पर था. उपमहाद्वीप की सबसे पुरानी अंतरिक्ष एजेंसी की स्थिति में सुधार के लिए सुपार्को के पास पर्याप्त धन, वास्तविक रुचि और राजनीतिक दृष्टि का अभाव था। 

पॉलिटिकल विजन और फंड की कमी 

पाकिस्तानी अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक, अब्दुस सलाम विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले पाकिस्तानी मुस्लिम और नोबेल पुरस्कार पाने वाले केवल दूसरे मुस्लिम थे। अपनी विशाल उपलब्धियों और अंतर्राष्ट्रीय प्रशंसा के बावजूद, अब्दुस सलाम को पाकिस्तान में कभी भी आदर्श नहीं माना गया क्योंकि वह अत्यधिक सताए गए अहमदिया संप्रदाय से थे। पाकिस्तान के कई शीर्ष राजनेताओं, धार्मिक नेताओं और नौकरशाहों ने भी अब्दुस सलाम के एक प्रतिष्ठित कार्यक्रम का नेतृत्व करने का विरोध किया। जबकि इसरो ने अपना पहला संचार उपग्रह लॉन्च किया और यूएसएसआर सहित कई देशों के साथ प्रौद्योगिकी साझाकरण कार्यक्रम शुरू किया, पाकिस्तान के सुपारको के पास भारतीय इसरो का मुकाबला करने के लिए राजनीतिक दृष्टि और धन की कमी थी। आज भी सुपार्को कुछ खास नहीं कर पाई है। मुख्य रूप से पाकिस्तान में निम्न शिक्षा स्तर, राजनीतिक रुचि की कमी और सबसे महत्वपूर्ण रूप से दुर्लभ धन के कारण। अंतरिक्ष एजेंसी अब मिशन 2040 पर अपनी उम्मीदें लगा रही है। जब उनका लक्ष्य अपने स्वयं के उपग्रह बनाने और लॉन्च करने की क्षमता हासिल करना है। उपमहाद्वीप की सबसे पुरानी अंतरिक्ष एजेंसी अपने लक्ष्य को पूरा कर पाएगी या नहीं, यह फिर से एक बड़ा सवाल है।

62 साल में केवल पांच सैटेलाइट ही छोड़े 

पाकिस्तान ने 62 साल में केवल पांच सैटेलाइट ही छोड़े हैं जबकि भारत से चार बार युद्ध में मुंह की खा चुका है। युद्ध के पैसे स्पेस एजेंसी के विकास में लगाता तो आज पाकिस्तान भी एशिया का बड़ी शक्ति हो सकता था। अंतरिक्ष विज्ञान के मामले में भारत दुनिया के अग्रणी देशों में एक है। दक्षिण एशिया में तो नंबर एक है। दक्षिण एशिया में आठ देश हैं। भारत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और मालदीव। अंतरिक्ष विज्ञान के मामले में केवल चीन ही थोड़ा बहुत प्रयास कर रहा है। स्पेश साइंस में पाकिस्तान को भारत की बराबरी करने में दशकों लग जाएंगे। 

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