पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री। (फाइल)
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कथावाचक धीरेंद्र शास्त्री अपने रामकथा के दिन दिव्य दरबार जब लगाते हैं, तो उनके मुख से अक्सर ये ठठरी शब्द सुनाई देता है। वैसे तो ये ठठरी बांधे…या ठठरी कहीं का, बुंदेलखंड के भावनात्मक लगाव को दर्शाता है। लेकिन, यही शब्द धीरेंद्र शास्त्री जब चिल्लूपार के बड़हलगंज में आयोजित राम कथा के दौरान कहा, तो बुंदेलखंड से मामखोर कनेक्शन को जोड़ते हुए यहां के लोगों का सीधा जुड़ाव भी खुद से जोड़ लिया।
देश के मशहूर कथावाचक धीरेंद्र शास्त्री का चिल्लूपार से गहरा नाता है। इनके पूर्वज चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र के मामखोर गांव के निवासी थे। कुछ पीढ़ी पहले वे यहां से मध्य प्रदेश बागेश्वरधाम जाकर बस गए और फिर वहीं के होकर रह गए। पिछले वर्ष रामकथा के दौरान बड़हलगंज के एक भक्त राहुल तिवारी बागेश्वरधाम में उनसे मिले और बड़हलगंज में सरयू तट पर रामकथा के लिए इच्छा जाहिर की।
पहले तो धीरेंद्र शास्त्री कुछ समझ नहीं पाए, कुछ देर बाद उनको अपने पूर्वजों की धरती याद आई और वह कथा सुनाने के लिए और इस धरती को प्रणाम करने के लिए सोचने लगे। काफी मंथन के बाद वह वह रामकथा के लिए तैयार हो गए और इसकी रणनीति बनाने लगे।
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वहीं, चिल्लूपार के मामखोर गांव से उनके पूर्वजों का जुड़ाव होने की जानकारी मिलते ही मामखोर वासी भी काफी उत्साहित हैं और प्रयास कर रहे हैं कि उनको अपने गांव की धरती पर घुमाएं और उनका स्वागत करें। इसकी तैयारी में भी लोग जुट गए हैं।