Ghosi Election Result: इन 6 वजहों से हारी बीजेपी, सबसे बड़ी वजह खुद दारा सिंह, जानिए हार के दूसरे कारण भी

Ghosi Election Result: BJP lost in Ghosi due to these 6 reasons

बीजेपी में कुछ महीने पहले ही दारा सिंह की वापसी हुई थी।
– फोटो : अमर उजाला

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सपा विधायक दारा सिंह के इस्तीफे से खाली हुई घोसी विधानसभा सीट के चुनाव परिणाम घोषित हो गए हैं। सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने सपा से बीजेपी आए दारा सिंह चौहान को 42 हजार से अधिक मतों से हरा दिया है। चुनाव परिणाम इस तरह के आएंगे ऐसी उम्मीद चुनावी जानकार नहीं कर रहे थे। इतनी बड़ी वोटों की यह हार बताती है कि दारा सिंह को क्षेत्र की जनता ने करीब-करीब खारिज कर दिया है। 

 यह चुनाव बीजेपी की नाक का सवाल था। चुनाव से ठीक पहले उन्होंने गठबंधन के पेंचों को कसते हुए ओम प्रकाश राजभर की एनडीए में वापसी कराई थी। ऐसा माना जाता है कि कुछ जातियों का एक खास वोट बैंक उनके साथ होता है। राजभर के लिए भी यह चुनाव लिटमस टेस्ट था। चुनाव प्रचार में भी बीजेपी ने पूरी ताकत लगाई। मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री के साथ पूरी कैबिनेट और संगठन चुनाव में सक्रिय दिखे। बावजूद इसके बीजेपी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। आइए समझते हैं केंद्र और राज्य में लोकप्रिय सरकार चला रही बीजेपी को आखिर घोसी के चुनाव में मुंह की क्यों खानी पड़ी? 

दारा सिंह को ही प्रत्याशी बनाना

दारा सिंह जब बीजेपी में शामिल हुए थे तब इस बात की अटकलें थीं कि हो सकता है कि उनको विधान परिषद के माध्यम से मंत्री बना दिया जाए और घोसी में किसी नए व्यक्ति को बीजेपी टिकट दे। चुनाव के दौरान घोसी के भाजपा कार्यकर्ता लगातार यह सवाल कर रहे थे कि  2022 के चुनाव से ठीक पहले पार्टी को खरी-खोटी सुनाकर पार्टी से इस्तीफा देने वाले दारा सिंह को भाजपा में लाना क्यों जरूरी था? यदि वह पार्टी में आ ही गए थे तो पार्टी उनका कहीं और समयोजन कर लेती।

उन्हें उसी घोसी में टिकट देने की क्या जरूरत थी जहां साल भर पहले ही पूरी पार्टी उनके खिलाफ चुनाव लड़ रही थी। दारा सिंह के बजाय यदि पार्टी किसी दूसरे नए चेहरे पर दावं लगाती तो शायद चुनाव परिणाम दूसरे होते। 

लोकल कार्यकर्ताओं की नाराजगी

विधानसभा चुनाव- 2022 में सपा प्रत्याशी के रूप में दारा सिंह चौहान ने घोसी सीट से करीब 22 हजार से अधिक मतों से चुनाव जीता था। महज 16 महीने बाद सपा से इस्तीफा देकर दारा सिंह का भाजपा में शामिल होना और घोसी में फिर एक उपचुनाव थोपना स्थानीय जनता के साथ मतदाताओं में नाराजगी का कारण बना। दारा सिंह से न सिर्फ विभिन्न समुदायों के स्थानीय मतदाता बल्कि बड़ी संख्या में भाजपा के कार्यकर्ता भी नाराज थे।

कार्यकर्ताओं का तर्क था कि जिस प्रत्याशी के खिलाफ 16 महीने पहले प्रचार किया था अब उन्हीं दारा सिंह के लिए जनता के बीच वोट मांगने कैसे जाएंगे? दूसरा तर्क था कि जब इस तरह दूसरे दलों से तोड़कर नेताओं को चुनाव लड़ाया जाएगा तो पार्टी के भूमिहार, राजभर, निषाद, कुर्मी, ठाकुर, ब्राहण और दलित नेताओं का मौका कब मिलेगा?

सपा से आए दारा सिंह बीजेपी काडर में मिक्स  नहीं हो पाए 

जमीन पर चुनाव पार्टी का वर्कर ही लड़ता है। दारा सिंह चूंकि अभी कुछ समय पहले बीजेपी के खिलाफ लड़कर और जीतकर विधायक बने थे। पार्टी में उनकी पैराशूट लैडिंग हुई। वह टॉप लीडरशिप के चाहने की वजह से बीजेपी में आ तो गए लेकिन जमीनी स्तर पर उनकी पार्टी में स्वीकार्यता नहीं हो पाई। 

चुनाव लड़ाने वाला लोकल स्तर का कार्यकर्ता आम जनता को इस बात का जवाब नहीं दे पाया कि कि डेढ़ साल पहले जिस व्यक्ति का विरोध करके पार्टी किसी और के लिए वोट मांग रही थी वह आज इतनी जल्दी दारा सिंह के नाम पर पर वोट मांगने आ गई। 

दारा सिंह का बार-बार पार्टी बदलना 

दारा सिंह किसी पार्टी में टिककर नहीं रहे। वो लगातार पार्टियां बदलते रहे। इससे उनकी छवि को नुकसान हुआ। वह विधायक और सांसद दोनों के चुनाव लड़ते रहे। कभी एक पार्टी से एमएलए का तो कभी दूसरी पार्टी से सांसदी की।  वह 1999 में सपा के टिकट पर घोसी से लोकसभा चुनाव लड़े और बसपा से हार गए। बावजूद इसके सपा ने मेहरबानी की और उन्हें राज्यसभा सदस्य बना दिया। लेकिन पार्टी बदलने में माहिर दारा सिंह फिर बसपा में चले गए।

 2000 में बसपा से राज्यसभा सांसद बने। फिर 2009 में बसपा से सांसद बने। बाद में 2014 लोकसभा चुनाव हार गए। फिर भाजपा में आ गए। राज्य सरकार में  मंत्री भी बने। 2022 के चुनाव के ठीक पहले वह पार्टी को कोसते हुए सपा में शामिल हो गए। सपा से विधायक बने। फिर जून 2023 में सपा से इस्तीफा देकर एक बार फिर से भाजपाई हो गए। एक पार्टी में टिककर ना रहने भी उनकी हार का बड़ा कारण बना। 

उनकी खुद की बिरादरी नोनिया चौहान के वहां 50 हजार के आसपास वोट है लेकिन बिरादरी ने भी उन्हें जिताने के लिये निकल कर वोट नहीं किया है।

 राजभर और निषाद नहीं दिला पाए वोट

भाजपा को घोसी उप चुनाव में सुभासपा, अपना दल और निषाद पार्टी से करिश्मे की उम्मीद थी। घोसी में करीब 55 हजार राजभर, 19 हजार निषाद और 14 हजार कुर्मी मतदाता है। भाजपा ने सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद की सभाएं, रैलियां और बैठकें कराई। राजभर और निषाद ने बारी बारी से कई दिनों तक सजातीय मतदाताओं के बीच डेरा भी डाला। लेकिन चुनाव के नतीजे के आंकड़े बता रहे हैं कि राजभर और निषाद मतदाताओं ने स्थानीय प्रत्याशी को वोट दिया। 

ये चुनाव इस बात को भी परखने के लिए था कि संजय निषाद और ओम प्रकाश राजभर की अपनी जातियों में कितनी पैठ है। चुनाव परिणाम यह बताते हैं कि जाति के नाम पर राजनीति करने के वाले इन दलों के साथ मतदाता आंख मूंदकर नहीं चल रहा है। 

बसपा का वोट सपा को गया, बीजेपी को नहीं 

चुनाव के परिणाम बता रहे हैं कि बड़ी संख्या में दलित साइकिल पर सवार हो गए। कोई भी अपील इन वोटरों पर बेअसर साबित हुई। घोसी उपचुनाव एक तरह से पक्ष और विपक्ष की सीधी टक्कर का चुनाव था। हालांकि इस चुनाव में बसपा ने इस बार अनूठा प्रयोग किया था। कहा था कि यह चुनाव थोपा गया चुनाव है। ऐसे में बसपाई या तो इस चुनाव से दूर रहें या नोटा दबाएं। बसपा ने यह फरमान पूरे भरोसे के साथ जारी किया था क्योंकि घोसी में बसपा समर्थकों की बड़ी संख्या है। 

बसपा के उम्मीदवारों को यहां पिछले कई चुनावों में लगभग 50 हजार वोट मिलते रहे हैं। बीते तीन चुनाव के नतीजे बताते हैं कि करीब 90 हजार से अधिक दलित मतदाताओं वाली सीट पर बसपा की पकड़ मजबूत है। वर्ष 2022 में यहां बसपा प्रत्याशी वसीम इकबाल को 54,248 मत मिले थे। वर्ष 2019 के उपचुनाव में बसपा के अब्दुल कय्यूम अंसारी को 50,775 वोट और 2017 में बसपा के अब्बास अंसारी 81,295 मत मिले थे। ऐसे में बसपा के पास इस सीट पर खेल को बनाने और बिगाड़ने की पूरी क्षमता थी। 

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