Explainer : जी-20 समिट से पहले जानिए कब और कैसे बना यह संगठन, क्या है इसका काम?

1997-98 में एशिया में वित्तीय संकट का दौर आया, जब थाईलैंड ने अपनी मुद्रा बाट को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले विनियम के लिए खुला छोड़ दिया. इससे करेंसी का लगातार अवमूल्यन शुरु हुआ और देखते ही देखते इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और मलेशिया जैसे पड़ोसी देश भी इसकी जद में आए. ये मुद्रा संकट रूस और ब्राजील तक फैल गया और इसने वैश्विक मुद्रा संकट का रूप ले लिया. 

इस संकट के बाद 1999 में जी-20 का गठन एक अनौपचारिक फोरम के तौर पर किया गया. मकसद था कि दुनिया की सबसे अहम औद्योगिक और विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों के वित्त मंत्री और सेंट्रल बैंक के गवर्नरों के बीच अंतराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और वित्तीय स्थिरता को लेकर विचार विमर्श हो और आपस में समन्वय बने.

ऐसे बना वित्तीय संकटों से निपटने का अहम फोरम

2007 में विश्वव्यापी आर्थिक और वित्तीय संकट के बाद जी-20 फोरम को राष्ट्रप्रमुखों के स्तर का बना दिया गया. 2009 आते आते ये तय हुआ कि विश्वव्यापी आर्थिक संकट से निपटना राष्ट्रप्रमुखों के स्तर पर ही संभव होगा. इसके लिए जी-20 देशों के प्रमुखों का नियमित रूप से मिलते रहना जरूरी माना गया. इस तरह से जी-20 दुनिया के वित्तीय संकटों के निपटने का अहम फोरम बन गया. 

हर साल अलग देश करता है अध्‍यक्षता 

2008 से जी-20 की बैठक हर साल होने लगी. हर साल इसकी अध्यक्षता जी-20 का एक सदस्य देश करता है. फिर वो दूसरे सदस्य देश को सौंप देता है. जैसे इंडोनेशिया ने पिछले साल भारत को अध्यक्षता सौंपी. इस साल भारत ब्राजील को अध्यक्षता सौंपेगा. 

19 देश और साथ में यूरोपीय यूनियन शामिल 

20 के इस ग्रुप में 19 देश हैं और साथ में यूरोपीय यूनियन है. 19 सदस्य देश हैं – अर्जेंटीना, आस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूके और अमेरिका. 

कई देशों और संगठनों को किया जाता है आमंत्रित 

इसके अलावा हर साल अध्यक्ष देश जी-20 के सदस्य देशों के अलावा दूसरे कई और देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को जी-20 की बैठकों और शिखर सम्मेलन के लिए अतिथि के तौर पर आमंत्रित करता है. यूनाइटेड नेशंस, इंटरनेशनल मोनेटरी फंड, वर्ल्ड बैंक, वर्ल्ड हेल्थ ऑरगेनाइजेशन, वर्ल्ड ट्रेड ऑरगेनाइजेशन जैसे संगठन जी-20 में नियमित रूप से आमंत्रित किए जाते हैं.

इस बार अतिथि के रूप में 9 देशों को बुलाया

इस साल जी-20 की अध्यक्षता भारत के पास है. भारत ने नौ देशों को गेस्ट के तौर पर आमंत्रित किया है. ये देश हैं बांग्लादेश, मिस्र, मॉरिशस, नीदरलैंड्स, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और यूएई. 

इसलिए बेहद महत्‍वपूर्ण है जी-20 

दुनिया की जीडीपी में 85 फीसदी हिस्सा जी-20 देशों का है. वहीं दुनिया के व्यापार में 75 फीसदी की हिस्सेदारी भी इन्हीं की है. साथ ही जी-20 देशों में दुनिया की दो तिहाई आबादी रहती है. जी-20 का मूल एजेंडा आर्थिक सहयोग और वित्तीय स्थिरता का है, लेकिन समय के साथ व्यापार, जलवायु परिवर्तन, सस्टेनेबल डेवलपमेंट, स्वास्थ्य, कृषि और भ्रष्टाचार निरोधी एजेंडा भी इसमें शामिल कर लिया गया है. 

भारत के 60 शहरों में 200 बैठकें 

हर साल जी-20 देशों के राष्ट्रप्रमुखों की बैठक से पहले मंत्री और अधिकारी स्तर की बहुत सी बैठक होती है, जैसे कि इस साल भारत के 60 शहरों में 200 बैठकें हुईं. मंत्री स्तर की बैठकों में भी जो सहमति बनती है, शिखर बैठक में उस पर अंतिम सहमति और मुहर लगाने का काम होता है. 

क्‍या करते हैं जी-20 शेरपा?

जी-20 के राष्ट्रप्रमुख तो साल में एक बार और वो भी कुछ घंटों के लिए मिलते हैं, लेकिन उनका एक विशेष प्रतिनिधि होता है जिसे जी-20 शेरपा कहते हैं. शेरपा दरअसल उस समुदाय के लोगों को कहते हैं जो पर्वतारोहियों के सामान को लेकर साथ चलते हैं और उनका काम आसान करते हैं. जी-20 के शेरपा भी अपने अपने राष्ट्रध्यक्षों का काम आसान करते हैं. सभी सदस्य देशों के शेरपा बैठकों के जरिए अलग-अलग मुद्दों पर आपसी सहमति बनाने की कोशिश करते हैं. शिखर बैठक से ठीक पहले हरियाणा के नूंह में जी-20 शेरपाओं की मैराथन बैठक में अलग मुद्दों पर सहमतियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है. 

जी-20 के सामने आई हैं कई चुनौतियां

जी-20 को कोविड-19 महामारी की चुनौती, 2008 का वित्तीय संकट, ईरान के परमाणु कार्यक्रम, सीरिया के गृहयुद्ध जैसी चुनौतियों से गुजरना पड़ा है. यूक्रेन-रूस युद्ध और इसकी वजह से ग्लोबल फूड सप्लाई चेन में आई गड़बड़ी इसके सामने मौजूदा चुनौती है. यूक्रेन युद्ध की वजह से जी-20 दो खेमों में बंटा नजर आता है. एक तरफ, अमेरिका और पश्चिमी देश हैं तो दूसरी तरफ खुद रूस और चीन जैसे देश, जहां अमेरिका खुले तौर पर कह रहा है कि वह यूक्रेन के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेगा, वहीं रूस की दलील है कि जी-20 आर्थिक फोरम है और इसका फोकस आर्थिक सहयोग पर ही रहना चाहिए. जिओ पॉलिटिकल और युद्ध जैसे मुद्दे को इससे अलग रखना चाहिए. 

साझा बयान पर आम सहमति बनाने की कोशिश 

भारत ने जी-20 की थीम वसुधैव कुटुम्बकम या One Earth, One family, One future रखी है. जी-20 देशों के आपसी सहयोग पर जोर के साथ-साथ जी-20 फोरम पर ग्लोबल साउथ के देशों के हितों की बात को भी उठाया है. यूक्रेन युद्ध की खींचतान और चुनौतियों के बीच भारत ने डेवलपमेंटल एजेंडे को मजबूती के साथ आगे बढ़ाया है. यहां दिल्ली में 9-10 सितंबर को होने वाली शिखर बैठक में जी-20 साझा बयान पर आम सहमति बने इसकी पुरजोर कोशिश की जा रही है. 

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