तो रिश्ता पक्का समझें… (व्यंग्य)

लड़का बड़ा जल्दी में है। अपने मात-पिता के साथ लड़की देखने के लिए लड़की वालों के…

‘हमारे संज्ञान में नहीं आया है’: संज्ञान, अंतर्ज्ञान और अंतर्धान (पुस्तक समीक्षा)

अधिकांश लोगों का मानना है कि हिंदी समाज में अन्याय और दमन ज्यादा होता है। इस…

कुर्सी की माया, कोई समझ न पाया (व्यंग्य)

लोटाबाबू की शिष्यता करने वाले एक-दो चेले चपाटों ने एक दिन मजाक-मजाक में पूछ लिया कि…

भारतीय राजनीति में चीते और घोड़े (व्यंग्य)

जानवरों का सामयिक प्रयोग तो कब से हो रहा है। गाय, राजनीति का महत्त्वपूर्ण अंग, रंग…

संबंधों के नवीनीकरण का मौसम (व्यंग्य)

सम्बन्धों की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक व मानवीय मरम्मत भी ज़ोर शोर से रफ़्तार पकड़ रही…

Book Review: सनातन से वर्तमान का आर्थिक सिंहावलोकन: वैश्विक परिदृश्य के संदर्भ सहित

लेखक ने धर्म आधारित भारतीय आर्थिक दर्शन को प्रस्तुत करने के साथ अर्थ की शुद्धि पर…

शम्मे-वतन का उपवन (कविता)

भारत अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। भारत को आजादी दिलाने के लिए बहुत से…

स्वार्थ सिद्धि योग का उपभोग (व्यंग्य)

दिलचस्प यह है कि आजकल निजी स्वार्थ पूरे करने में लगे बंदे, मुंह फाड़ फाड़कर दूसरों…

चम्मच से नहीं, जुबान से (व्यंग्य)

आप राजनीति में किस तरह अंगद पाँव की तरह जम गए हैं उसकी मिसाल आपका बेशकीमती…

इसे गिराओ उसे उठाओ (व्यंग्य)

सेक्रेटरी ने नेता जी की प्रतीक्षा में खड़े चार युवकों को भीतर बुलाया। नेता जी के…