रामकुमार नायक/रायपुर: हर किसी के जीवन में पारिवारिक जीवन का विशेष महत्व होता है. पारिवारिक जीवन आगे बढ़ के लिए शादी की के बंधन में बंधना होता है. शादी दो लोगों के जीवन का बंधन होता है. शादी के बाद एक लड़का और लड़की किसी रिश्ते में आते हैं और परिवार बनाते हैं. उनके साथ दोनों के परिवार भी बंध जाते हैं. ऐसे में हर किसी को एक आदर्श साथी की तलाश रहती है और सोच समझकर विवाह का फैसला लिया जाता है. दरअसल पुराने जमाने में परिवार वाले अपने बेटे या बेटी के लिए एक आदर्श जीवन साथी का चयन करते थे. आज भी परिवार के बड़े बुजुर्ग ही रिश्ते तय करते हैं. इसे अरेंज मैरेज कहते हैं.
लेकिन बदलते वक्त के साथ लव मैरिज की चलन बढ़ रही है. लव मैरिज यानी प्रेम विवाह, नाम से ही स्पष्ट है कि ऐसी शादी जिसमें लड़का और लड़की पहले से एक दूसरे से प्रेम करते हैं और एक दूसरे को अपना जीवन साथी खुद चुनते हैं. प्रेम विवाह में वर और वधु एक दूसरे को पहले से ही जानते हैं. परिवार की सहमति या बिना सहमति के वह एक दूसरे के साथ विवाह के बंधन में बंधते हैं. बहुत से प्रेम विवाह यानी लव मैरिज सफल नहीं हो पाती है लिहाजा डायवोर्स की स्थिति आ जाती है. कुटुंब न्यायालय में भी ज्यादातर विवाह विच्छेद यानी डायवोर्स के ज्यादातर प्रकरण लव मैरिज वाले होते हैं.
दायित्वों का निर्वहन नहीं करने पर खत्म हो जाता है प्रेम
रायपुर कुटुंब न्यायालय की काउंसलर शमीम रहमान ने बताया कि प्रेम विवाह यानी लव मैरिज करने वालों के केस भी ज्यादातर कुटुंब न्यायालय में आते हैं. पहले प्रेम विवाह करते हैं फिर आपसी सहमति से विवाह विच्छेद करने कुटुंब न्यायालय आते हैं. अक्सर देखा गया है कि जल्दबाजी और भावावेश में आकर युवक युवती प्रेम विवाह कर लेते हैं. जब दांपत्य और गृहस्थ जीवन की शुरुआत होती है और जिम्मेदारी आती है तब दोनों ही पक्ष उनके दायित्वों का ठीक से निर्वहन नहीं कर पाते. लिहाजा एक दूसरे की कमी निकालते हुए वाद विवाद की स्थिति बनती है. फिर डायवोर्स करने का निर्णय करते हैं. दोनों ही पक्ष जितनी जल्दी प्रेम विवाह किये रहते हैं और जब प्रेम खत्म हो जाता है और वैसे ही विवाह खत्म हो जाता है.
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FIRST PUBLISHED : February 11, 2024, 11:14 IST