लेखकों, किताबों, प्रकाशकों व जुगाड़ुओं का मेला फिर आ गया। फेसबुक, व्हाट्सेप, अखबार और एंटीसोशल मीडिया पर पुस्तक मेले में विज्ञापनों, प्रकाशकों, व्यक्तियों, लेखकों और साहित्यकारों की कवरेज देखकर दिमाग कहता है कि मेले में पहुंचने वाला हर बंदा थोड़ा बहुत लेखक तो हो ही जाता होगा। यह शानदार और यादगार है कि किसी की भी पहली पुस्तक ही वहां प्रसिद्ध हाथों से रिलीज़ हो सकती है। अनुभवी लेखक की चालीसवीं पुस्तक वहां रिलीज़ होकर समाज में विचारोतेजक परिवर्तन लाने की प्रक्रिया ज़्यादा तेज़ कर सकती है। ऐसे में क्रान्ति की मर चुकी चाहत रखने वाले आम व्यक्ति के मन में भी लेखन का कीड़ा घुस जाता होगा।
कई लोग चुटकी ले रहे होंगे कि फलां बंदा, अमुक यशस्वी लेखक के साथ या प्रसिद्ध प्रकाशक के स्टाल पर फोटो खिंचवाकर अपना लेखक होना जताएगा। किताबी मेले में अपने प्रिय लेखकों से मिलने पाठक भी जाते होंगे। ताज़ा आकर्षक किताबों, स्थापित चेहरों और व्यवसायिक लेखकों के साथ फोटो खिंचवाकर उनका हाथ, कुछ न कुछ टाइप करता महसूस करता होगा। यह तो हमारी समृद्ध साहित्यिक परम्परा है कि किताब या लेखक से मिलकर हम सोचते हैं कि काश हम भी थोडा बहुत कुछ तो लिख मारते।
कुछ लेखक वहां पहुंचकर राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध लेखक, विमोचक, मंत्री, मुख्यमंत्री या अभिनेता के प्रसिद्ध हाथों से पुस्तक का विमोचित पैकट खुलवाने की तुलना करते होंगे। राजनीतिज्ञों के हाथों विमोचित होने से किताब भी ज्यादा खुश होती लगती है। मेले में फेसबुक के लिए भी काफी सामान मिल जाता है। फ़ोटोज़ से लगता है वहां सभी एक दूसरे से खालिस प्यार से, असली गले मिलकर सच्चे खुश होते हैं। छोटे शहर की साहित्यिक दुनिया की तरह लेखक, वहां बड़े खेमों में बंटे नहीं होते । उनमें ईर्ष्या, एक दूसरे को खारिज करने जैसी कुभावनाएं नहीं होती। किताबें तो जड़ होती हैं, मुझे विशवास है उनमें भी ऐसा कुछ नहीं पनपता होगा।
माइक पर युवा लेखक द्वारा पढ़ी जाने के बाद कविता भी धन्य हो जाती होगी। कवि को लगता होगा इतना विशाल जगमग मंच मिलने पर उसकी कविता, राष्ट्रीय नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गई है। किताबों की चकाचौंध में नवोदित लेखक को लगता होगा कि सुविधाओं भरी इस साहित्यिक दुनिया में एक किताब तो वह भी लिख, छपवा और बिकवा सकता है। इधर फेसबुक पर जुगाडू संस्थाओं के लिए कुछ ऑफर्स पढी गई हैं। ऑफर देने वाले ने कहा है कि विश्व पुस्तक मेले में जो उनकी कविता पढ़वाएगा, टॉक शो रखेगा, शाल टोपी हार पहनाकर सम्मानित करेगा उसे मनचाहा नकद पुरस्कार दिया जाएगा। उनके लेखन पर नक़द पुरस्कार देंगे तो दोगुना पैसा लौटाया जाएगा। ऑफर में विवरण दिया गया है कि महत्त्वपूर्ण विषयों पर उनकी सैंकड़ों किताबें आई हैं। ऑफर का पूरा विवरण यहां देना पुस्तक मेले में जाने से भी ज़्यादा दूभर है।
मेरे जैसे बंदे जो कभी मेले में नहीं गए घर बैठे कागज़ काले करते रहते है, अपनी एक और किताब छपने के ख्याली पुलाव खाते रहते हैं। फिर सोचते हैं अपने पैसे से किताब छपवाना कितना आसान हो गया है। मुफ्त बांटना बहुत आसान है लेकिन सवाल तो पढ़े जाने का है।
– संतोष उत्सुक