20 साल की उम्र में संयम बनेगा जैन मुनि ! लाखों की संपत्ति छोड़ सेवा की राह पर हुआ अग्रसर

अनूप पासवान/कोरबा. कोरबा जिले के चिरमिरी बड़ा बाजार में रहने वाले व्यापारी सुनील जैन के इकलौते पुत्र संयम जैन ने अपने एक फैसले से सबको चौंका दिया, दरअसल 20 साल के संयम ने त्याग और समर्पण की राह चुनने का फैसला किया है. संयम जैन शहर के जाने माने व्यापारी सुनील जैन का बेटा है. घर में सुख सुविधाओं के वह सभी साधन मौजूद है जो इस उम्र के बच्चों की चाह और सपना होती है लेकिन उसके बावजूद संयम जैन ने यह फैसला लिया है.

परिवार में दीक्षा लेने वाले संयम जैन पहले व्यक्ति बनने वाले हैं. उनसे पहले परिवार के किसी भी सदस्य ने संयम पथ नहीं चुना. युवावस्था में चिरमिरी बड़ा बाजार में रहने वाले व्यापारी पुत्र संयम जैन ने सामाजिक जीवन से दूरी बना ली. अब वह त्याग और तप के मार्ग पर चल पड़ा है. चिरमिरी में विशेष कार्यक्रम आयोजित करने के साथ इस युवा को लोगों ने धूमधाम से विदाई दी गई. परिवार के लोग भी उसके निर्णय पर खुश नजर आ रहे है.

जैन समाज में है आम बात
20 वर्ष की आयु के में हर कोई भविष्य के लिए नए सपने देखता है और उन्हें साकार करने के बारे में भी सोचता है. ऐसे में अगर कोई आर्थिक रूप से सक्षम परिवार से संबंधित हो तो समझा जा सकता है कि उसकी महत्वाकांक्षा क्या हो सकती है और उसकी पूर्ति के लिए परिवार क्या कर सकता है. इन सबसे अलग उदाहरण जैन समाज में समय-समय पर देखने को मिलते रहे हैं. जिसमे युवा वर्ग सुख-साधन और मोह-माया छोड़कर वैराग्य पथ पर अग्रसर हो जाता है. कोयलांचल चिरमिरी के बड़ा बाजार क्षेत्र में रहने वाले कारोबारी सुनील और राखी जैन के इकलौते पुत्र संयम ने भी कुछ ऐसा ही कर दिखाया.

परिवार में खुशी का माहौल
संयम ने बताया कि समाज से हटकर बहुत बड़े वर्ग के लिए अच्छे काम हो सकते हैं और इसके लिए नया रास्ता बेहतर है.संयम की मां राखी जैन पुत्र के निर्णय से खुश नजर आई. उन्होंने बताया कि बचपन से ही वह धार्मिक क्षेत्र को लेकर काफी गंभीर था. संयम के पिता सुनील जैन ने भी अपने पुत्र के फैसले पर खुशी व्यक्त की लेकिन उसके बिछड़ने से होने वाले दर्द का आभास बातों से हुआ.

गुरु की उपस्थिति में होगी संयम की दीक्षा
आगामी दिनों में गुरु की उपस्थिति में संयम को दीक्षा दी जाएगी और फिर उसे नया नाम प्राप्त होगा. जैन धर्म में मुनि बनने वाले सदस्यों के लिए 12 तरह के दीक्षाएं होती हैं और कठिन प्रक्रियाओं से गुजरने के साथ दीक्षार्थी सहज बन पाते है.

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