1942 Skeleton Story: अब तक मिल चुके हैं इस झील से हजारों कंकाल! पर रहस्य बरकरार, ये है पूरी कहानी

सोनिया मिश्रा/चमोली: झीलों का नजारा आखिर किसे नहीं भाता है? गर्मियों की छुट्टियों में अक्सर झील के किनारे बैठकर सुकून की तलाश करते लोग आपको दिख जाएंगे, लेकिन जरा सोचिए अगर उसी झील में मछलियों के बजाय आपको नर कंकाल तैरते हुए दिखाई दें तो क्या होगा? जाहिर सी बात है कि आप डर जाओगे और वहां से बहुत दूर भाग जाओगे. जी हां, उत्तराखंड में रूपकुंड एक ऐसी ही झील है, जहां ऐसा होता है, जो आज भी सभी को हैरान कर देता है.

उत्तराखंड के चमोली जिले में रूपकुंड झील (Roopkund lake) मौजूद है, जिसे ‘कंकालों की झील’ कहते हैं. इस झील में मछली समेत जीव जंतुओं के बजाय नर कंकाल बहुतायत देखने को मिलते हैं. इसके अलावा क्योंकि यह समुद्र तल से 16500 फीट की ऊंचाई पर मौजूद है, इसलिए यहां एडवेंचर से जुड़े लोग दूर-दूर से झील को देखने के लिए पहुंचते हैं.


कंकाल आज भी बने हैं रहस्य!

इन कंकालों को 1942 में नंदा देवी शिकार आरक्षण के रेंजर एचके माधवल ने खोज निकाला था. बताया जाता है कि ये हड्डियां 19वीं सदी के उत्तरार्ध की हैं. इससे पहले विशेषज्ञों द्वारा यह माना जाता था कि जिन लोगों की यहां हड्डियां मौजूद हैं उनकी मौत महामारी, भूस्खलन या बर्फीले तूफान से हुई होगी. लेकिन 1960 के दशक में हुई कार्बन डेटिंग ने संकेत दिए कि वो लोग 12वीं से 15वीं सदी के बीच के होंगे.

क्या कहते हैं वैज्ञानिक ?
उसके बाद 2004 में भारतीय और यूरोपीय वैज्ञानिकों के दल ने इस स्थान का दौरा किया, ताकि उन कंकालों के बारे में अधिक जानकारी मिल सके. उसके बाद हैदराबाद, पुणे और लंदन के वैज्ञानिकों ने यह निर्धारित किया कि लोग बीमारी से नहीं बल्कि अचानक आई ओलावृष्टि अथवा आंधी से मरे थे.

1942 से रहस्यों का सिलसिला जारी
साल 1942 में ब्रिटिश रेंजर्स को यहां सबसे पहले कंकाल नजर आए थे. उसके बाद से लगातार यहां मौत की वजह जानने का यह सिलसिला जारी है. साथ ही इसी झील पर 2021 में बीबीसी ने भी अपनी रिपोर्ट पेश की थी जिसमें उन्होंने बताया कि अब तक यहां 600-800 लोगों के कंकाल यहां पाए जा चुके हैं. बर्फ में दबे रहने के कारण उनमें से कुछ पर अब भी मांस लगे मिल रहे हैं. सरकार अक्सर इस झील को रहस्यों से भरी झील बताती हैं, क्योंकि इसके बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है.

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