मनीष कुमार/कटिहार. प्रत्येक देवी और देवताओं को पूजने के कुछ खास समय, वार, तिथि त्योहार होते हैं. इस समय उनका सम्मान रखना जरूरी है. दीपावली की अमावस्या को माता काली की विशेष पूजा और साधना होती है. इसी दिन माता काली भी प्रकट हुई थी, इसलिए दीपावली के दिन काली की पूजा का प्रचलन है. अमावस्या तिथि में रात्रि 10 बजे से 02 बजे तक विशेष योग में पूजा करने से आपको मन वांछित फल मिल सकता है.
कटिहार के प्रसिद्ध महंत धर्मेंद्र कुमार पांडे ने इस जानकारी दी. उन्होंने काली पूजन का समय, कौन सा योग विशेष है इस पर जानकारी देते हुए बताया कि सिद्धि योग और अमृत योग में मां काली की पूजा आराधना करने से विशेष लाभ मिलता है. हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि अलग-अलग जगह काली पूजा के अलग-अलग विधि-विधान भी है. अमावस्या की तिथि माता काली की विशेष तिथि है, क्योंकि माना जाता है कि इसी तिथि में उनकी उत्पत्ति हुई थी.
शक्ति सम्प्रदाय की सबसे प्रमुख देवी
मां काली शक्ति सम्प्रदाय की सबसे प्रमुख देवी हैं, जिस तरह संहार के अधिपति शिव जी हैं उसी प्रकार संहार की अधिष्ठात्री देवी मां काली हैं. शक्ति के कई स्वरूप हैं. शुम्भ-निशुम्भ के वध के समय मां के शरीर से एक तेज पुंज बाहर निकल गया था. फलस्वरूप उनका रंग काला पड़ गया और तभी से उनको काली कहा जाने लगा.
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शत्रुओं पर होता है नियंत्रण
इनकी पूजा उपासना से भय नाश ,आरोग्य की प्राप्ति, स्वयं की रक्षा और शत्रुओं का नियंत्रण होता है. इनकी उपासना से तंत्र मंत्र के सारे असर समाप्त हो जाते हैं. मां काली की पूजा का उपयुक्त समय रात्रि काल होता है. पाप ग्रहों, विशेषकर राहु और केतु शनि की शांति के लिए मां काली की उपासना अचूक होती है.
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FIRST PUBLISHED : November 12, 2023, 08:25 IST