झारखंड में यहां फाइलेरिया से बचाव अभियान होगा शुरू, घर-घर खिलाई जाएगी दवा

अनंत कुमार/गुमला.गुमला जिले में फाइलेरिया उन्मूलन को लेकर 10 से 25 फरवरी तक फाइलेरिया उन्मूलन को लेकर विशेष अभियान चलाया जाएगा. इस दौरान 10 व 11 फरवरी को आंगनवाड़ी केंद्रों पर,12 व 13 फरवरी को जिला के सभी विद्यालयों में और 14 से 25 फरवरी तक घर-घर जाकर स्वास्थ्यकर्मियों,आंगनवाड़ी दीदियों द्वारा डीईसी व एल्बेंडाजोल की दवा खिलाई जाएगी.

गुमला के डॉक्टर पीके सिन्हा ने कहा कि जिले में एनएचएम/स्वास्थ्य विभाग के निर्देशानुसार एमडीए कार्यक्रम चलाएंगे.ये फाइलेरिया के नियंत्रण, उपचार एवं इरेडिकेशन उन्मूलन के लिए कार्यक्रम है.जो 10 फरवरी से शुरू होकर 25 फरवरी तक चलेगा.पहले दिन बूथ पर आए सभी लोगों को दवा खिलाई जाएगी. यहां बूथ आंगनवाड़ी केंद्र को बनाया गया है. इसके बाद हमारे स्वास्थ्य कर्मी,ड्रग एडमिनिस्ट्रेर, सहिया, दीदी साथ ही कुछ प्राइवेट वर्कर भी रहेंगे.जो जिला के घर-घर जाकर के हर आदमी को दवा खिलाएंगे.

गुमला में 4500 लोग फाइलेरिया से ग्रसित
हमारे जिला में लगभग 4500 लोग फाइलेरिया से ग्रसित हैं. यहां हाथी पांव लिंकिबिमा से लगभग 2500 लोग पीड़ित हैं. लिंकिंबिमा से पीड़ित व्यक्ति का हाथ पैर मोटा हो जाता है. इस बिमारी से पीड़ित व्यक्ति का बहुत ही क्रिटिकल कंडीशन हो जाता है. एक बार अगर किसी के पैर में हाथीपांव हो जाता है. वह जिंदगी भर के लिए रह जाता है. इसका इलाज नहीं है. यह होने के बाद दवा खाने से, यहां तक कि सर्जरी कराने तक से भी ठीक नहीं होता है. इसलिए सभी लोगों से अपील है कि साल में कम से कम एक बार दवा का एक खुराक जरूर खाएं. जिससे फाइलेरिया जैसे गंभीर बीमारी से बच सकें.यह ऐसा बिमारी है जो जिंदगी भर परेशान करता है. यदि इससे बचना है तो जब हमारे कर्मी आपके घर में दवा लेकर पहुंचे. तो जितनी दवा देते हैं.इस दवा को ईमानदारी से खाएं.

25 फरवरी तक चलेगा यह अभियान
डॉक्टर पीके सिन्हा ने बताया कि 2 वर्ष के नीचे के बच्चों, गर्भवती महिला व गंभीर रोग से पीड़ितों को यह दवा नहीं खिलानी है. फाइलेरिया रोग मच्छर के काटने से फैलता है. इसके संक्रमण से हांथ- पांव और अंडकोष में सूजन हो सकती है. इसके साथ ही फूलने लगती है. साल में एक बार डी.ई.सी. एवं अलबेण्डाजोल की दवा खाकर फाइलेरिया पर नियंत्रण पाया जा सकता है. यदि इस बिमारी के लक्षण दिखाई देने वाले लोगों को नियमित रूप से 5 से 7 वर्षों तक डी.ई.सी.व अलबेण्डाजोल की गोली साल में एक बार भी खिलाई जाती है. इस बिमारी पर 80 से 90 प्रतिशत तक इस नियंत्रण पाया जा सकता है.

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