अन्नू, छटी कक्षा की विद्यार्थी थी। उसके पापा बैंक अधिकारी थे इसलिए उनकी ट्रांसफर तीन साल के बाद होती ही थी। इस बार पापा की ट्रांसफर बिलासपुर हुई। बिलासपुर छोटा शहर था, वहां संयोग से उसी स्कूल की शाखा नहीं थी जिसमें वह पहले पढ़ते थे। अन्नू और उसके बड़े भाई आभास ने नए स्कूल में दाखिला लिया। नए स्कूल का सिलेबस अलग था इसलिए उन्हें नया सिलेबस समझने के लिए ज्यादा मेहनत करनी थी।
अन्नू ने सत्र के दौरान दाखिला लिया था इसलिए उसने अपना पूरा ध्यान पढाई में लगा लिया ताकि ज्यादा अंक लेकर पास हो सके। उसने अपने सहपाठियों से उनकी अभ्यास पुस्तिकाएं लेकर अपनी अभ्यास पुस्तिकाएं पूरी की। उसने वास्तव में बहुत मेहनत की और पढ़ाई में सभी सहपाठियों के साथ खुद को अपडेट कर लिया। जब उसने अभ्यास पुस्तिकाएं अपनी क्लास अध्यापिका को दिखाई तो वह भी प्रभावित हुई और अन्नू को शाबासी दी। अन्नू ने अपनी मेहनत से साबित कर दिया था कि वह कक्षा के सर्वश्रेष्ठ छात्रों में से एक होने वाली है।
पहले वर्ष अन्नू ने स्कूल की किसी भी अतिरिक्त गतिविधि में हिस्सा नहीं लिया। सांस्कृतिक कार्यक्रम में एकल नृत्य नहीं किया न ही किसी खेल गतिविधि में भाग लिया। जब वार्षिक परिणाम आया तो वह कक्षा में तीसरे स्थान पर रही। उसके मम्मी पापा भी खुश थे कि सत्र के बीच स्कूल बदलने के बावजूद उसने अच्छे से पढ़ाई की। उन्होंने कभी अन्नू पर दबाव नहीं डाला था कि कक्षा में प्रथम ही आओ बलिक हमेशा यही कहा कि पढ़ाई मेहनत से करो और अपने शौक, डांस, मिमिक्री, पेंटिंग, खेल आदि भी साथ साथ करते रहो।
अन्नू सातवीं कक्षा में हो गई थी। अब उसे लगभग तीन साल उसी स्कूल में पढना था। वह स्कूल में होने वाले सभी कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो चुकी थी। उसने पेंटिंग, नृत्य, नाटक और खेलों में भाग लेना शुरू कर दिया। कुछ दिन बाद, प्रार्थना सभा में प्रिंसिपल ने घोषणा की कि दो सप्ताह बाद स्कूल में खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा। उसमें जो बच्चे जीतेंगे उन्हें इंटरस्कूल खेलकूद प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए भेजा जाएगा।
स्कूल के नोटिस बोर्ड पर भी नोटिस लगाया गया, जिसमें सूचित किया गया था कि बच्चे, स्कूल की छुट्टी होने के बाद, स्कूल में रोज़ाना अभ्यास कर सकते हैं। अन्नू ने भी अपना नाम दौड़ में हिस्सा लेने के लिए लिखवाया और शाम को स्कूल मैदान में अभ्यास के लिए पहुंच गई। पीटीआई ने उसे अन्य बच्चों के साथ खड़े हुए देखा तो पूछा, “तुम क्यों आई हो। ”
अन्नू ने कहा सर, “मैंने प्रतियोगिता में भाग लेना है।” किस खेल में, उन्होंने पूछा तो अन्नू बोली, “सौ मीटर की दौड़ में हिस्सा लेना है।”
सर ने कहा, “तुम्हारा कद तो छोटा है, तुम तेज़ कैसे दौड़ सकती हो।” अन्नू को सर का इस तरह से कहना अच्छा नहीं लगा। वह इस बात को अच्छी तरह समझती थी कि छोटा कद होने के कारण किसी को भी, किसी भी प्रतियोगिता या कार्य से वंचित नहीं रखा जा सकता ।
उसने कहा आदरणीय सर, “दुनिया में छोटे कद के बहुत खिलाड़ी हैं जो सफल रहे हैं। हमारे देश के सचिन तेंदुलकर छोटे कद के विश्व प्रसिद्ध खिलाड़ी हैं। अन्य क्षेत्रों में भी छोटे कद के लोगों ने सफलता पाई है। असली बात तो मेहनत और लगन होती है जिसके बल पर आप कोई भी कार्य बेहतर कर सकते हो, पुरस्कार प्राप्त कर सकते हो।”
पीटीआई सर को पहले ही अपनी भूल का एहसास हो चुका था। अब तो अन्नू ने भी उन्हें बता दिया था। उन्होंने अन्नू से कहा, “बेटा मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था। तुम अगले ट्रायल में ज़रूर आना।” अन्नू को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिल रहा था जो अब उसके लिए एक चुनौती भी था। उसने सुबह उठकर प्रतिदिन अपने घर के बाहर पार्क में और पढ़ाई के बाद स्कूल में भी खूब अभ्यास किया और ट्रायल के दिन सौ मीटर की रेस में पहले स्थान पर रही।
स्कूल की प्राचार्य और पीटीआई सर ने उसे खूब शाबासी दी और इंटरस्कूल प्रतियोगिता के लिए अधिक अभ्यास करने के लिए कहा। अन्नू के पास अभी कई दिन थे, उन दिनों में वह सर की देखरेख में बेहतर अभ्यास कर सकती थी। उसे पूरा आत्मविश्वास था कि प्रतियोगिता में उसका प्रदर्शन बेहतर रहेगा।
– संतोष उत्सुक