कल रात मेरे मकान के सामने कोई पोस्टरनुमा विज्ञापन टांग गया है। जिसमें निमंत्रण दिया गया है कि उनके पास आइए और गोल्ड लोन लेकर घर बनाइए। बड़ी हैरानी की बात है इन क़र्ज़ बांटने वालों को अभी तक यह समझ नहीं आया कि कोई भी व्यक्ति, ख़ास तौर पर नव विवाहित अपने रहने के लिए मकान खरीदने के लिए क़र्ज़ लेते हैं घर खरीदने के लिए नहीं। जिस मकान में रहते हैं उसे घर तो, गृहणी ही बनाती है। मकान सभी को दिखता है घर कहां दिखता है ।
खैर! यह तो अपने कीमती ज़ेवरात गिरवीं रखकर कर मकान खरीदने की ऑफर है। कितना अच्छा हो कि जेवरात गिरवीं न रखकर किराए के मकान में रह लो और बचत कर दुनिया घूम लो। मेरे मकान के बाएं तरफ बनी सुरक्षा दीवार पर एक पोस्टर लगा है जिसमें कई तरह के क़र्ज़ का आसान ऑफर है। पहले ईमेल के बहाने क़र्ज़ की पूर्व स्वीकृति की अनेक सूचनाएं आती रही हैं। अब तो पूरे शहर की गलियों और बाज़ारों में पोस्टर चस्पां कर दिए हैं। यह ठीक ऐसे ही कि आप हमारी पार्टी जॉइन करें किसी न किसी ओहदे पर टिका देंगे। बार बार मैसेज आते हैं क्रेडिट स्कोर तो चैक करवा लीजिए। लगता है कह रहे हैं अपना बीपी तो चैक करवा ही लो। ख़बरें बताती हैं कि आराम से मिले क्रेडिट कार्ड से खूब सामान खरीदा गया और भूख से ज्यादा खाया और पैसा आराम से वापिस नहीं दिया। महंगे और लिपे पुते प्रवाचकों की शिक्षाएं भूल गए।
यह हमारा नया डिजिटल इंडिया है जिसमें सोशल मीडिया पर एंटी सोशल सामाजिक जानवरों के बीच तलवारें चल रही हैं और कर्ज़ देने वाले सिर पर सवार हैं। अब लगने लगा है बुज़ुर्गों ने गलत समझाया था कि जितनी चादर हो उतने पैर पसारो। अब हमारी चादर का नाम राजनीति, धर्म, सम्प्रदाय और जाति हो गया है। चदरिया की बात करें तो अब किसी की भी झीनी नहीं रही। कर्ज़ देने की बात अब मज़ाक सी लगने लगी है। एक और नया पोस्टर चिपका मिला जिसमें लिखा है मुद्रा लोन योजना, आधार कार्ड लोन, घर बैठे अपने मोबाइल से एक फोन करें। लोन सीधा अपने बैंक अकाउंट में 24 घंटों पाएं। मुख्य विशेषताएं पर्सनल लोन, बिजनेस लोन, मार्कशीट लोन, प्रापर्टी लोन, सरकार द्वारा रजिस्टर्ड। एक फोन ही तो करना है। कर्ज़ की सब्जियों की बहार है लेकिन अपना स्वास्थ्य बचाकर रखें।
बाहर निकलना मुश्किल होता जा रहा है। कहीं कोई हाथ में ही क़र्ज़ पकडाना शुरू न कर दे और फिर वसूली….। इन क़र्ज़ देने वालों को नहीं पता कि इंसान को ज़िंदा रहने के लिए सादा दाल रोटी और चावल की ज्यादा ज़रूरत है। कभी सोचता हूं सरकारें भी तो कितना क़र्ज़ लेती हैं।
– संतोष उत्सुक