शेखू, अन्नू, चारू, मुदित व टिंगू खेल रहे थे। कल ही उनकी परीक्षा खत्म हुई थी तभी फुर्सत में थे। किसी ने भी जल्दी घर नहीं जाना था। सभी पहले एक खेल खेलते लेकिन जल्दी ही बोर हो जाते फिर दूसरा शुरू करते। उन्हें सूझा कि छुपम छुपाई खेला जाए। सबने छिपना था और टिंगू ने उन्हें ढूंढना था। उसने सीटी मारी और सब फटाक से भागे और टिंगू आंखे बंद कर खड़ा रहा। उसे लगा सभी छुप गए होंगे वह ज़ोर से बोला, ‘मैं आऊं’।
सब की मिलीजुली आवाज़ आई, ‘रुक जा टिंगू,रुक जा’, मगर उसने बोला, ‘मैं आ रहा हूं’।
इस बीच सभी जहां तहां छिप गए थे। टिंगू उन्हें ढूंढने लगा, वह जैसे ही आगे जाकर एकदम पीछे मुड़ा, एक अजनबी व्यक्ति से टकरा गया और गिरते गिरते बचा। अजनबी ने कहा, ‘सॉरी बेटा’, मगर टिंगू ने सॉरी कहना तो दूर उलटा मुंह बिचका दिया।
अजनबी ने कहा, ‘बेटा, एक बात सुनो’, मगर टिंगू ने नहीं सुना और सामने वाली गली में चला गया। सभी अच्छी तरह छिप गए थे तभी मिल नहीं रहे थे। वह आदमी फिर उसे मिल गया पूछने लगा, ‘बेटे, आपको पता है मि. त्रिवेदी का घर कौन सा है’।
‘अपने आप ढूंढिए, मुझे नहीं पता, मैं खेल रहा हूं’, कहकर दोस्तों को ढूंढने लगा।
अजनबी चला गया। खेल की दो पारियां समाप्त हो चुकी थी। अब शेखू ने सबको ढूंढना था। इत्तफाक से वह आदमी फिर आ गया और शेखू को देखकर बोला, ‘बेटे, क्या आपको त्रिवेदीजी का घर मालूम है’।
‘अंकल, क्या आपके पास उनका पता है’ शेखू ने पूछा।
‘हां, है लेकिन घर नहीं मिल रहा’।
‘अंकल, क्या वे यहां नए आए हैं’।
‘हां बेटे, उन्होंने कुछ दिन पहले ही शिफ्ट किया है’, अजनबी ने बताया ।
‘कल मेरी मम्मी को संतोष आंटी बता रही थी कि नए किराएदार आए हैं, शायद वही हों। आइए मैं आपको छोड़ आता हूं’, शेखू बोला ।
‘आप तो खेल रहे हो, मुझे रास्ता समझा दो, मैं ढूंढ लूंगा’।
‘कोई बात नहीं अंकल, बाद में खेल लूंगा, मेरी तो छुट्टियां हैं। आपका टाइम बचेगा, आइए प्लीज़’।
शेखू ने अन्नू को बताया कि वो अंकल के साथ जा रहा है, आकर खेलेगा। शेखू उस व्यक्ति को आंटी के नए किराएदार के यहां ले गया जो वास्तव में त्रिवेदीजी ही थे। वह वापिस आकर पुन खेलने लगा। उसने उन्हें बताया कि वही अंकल अभी आएंगे और सबके सामने उसे कुछ देंगे।
खेल कर सब थक गए थे, अब सभी अजनबी अंकल की प्रतीक्षा करने लगे। कुछ देर बाद वह अंकल सचमुच आए और अपने बैग से एक छोटा सा सुन्दर पैक निकालकर शेखू को देते हुए बोले, ‘बेटे, यह लो आपका पुरस्कार ’।
‘किस बात के लिए अंकल’, शेखू ने पूछा
‘अच्छे से बात करने के लिए और त्रिवेदीजी के घर तक पहुंचाने के लिए’।
‘इसकी क्या ज़रूरत है अंकल’ शेखू ने कहा।
‘अरे खोलकर तो देखो’।
शेखू ने पैकेट खोला तो उसमें छोटी सी पीले रंग की सुन्दर कार थी। उसने फिर कहा, ‘अंकल मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जो मुझे आप यह दे रहे हैं’।
‘बेटा, आपने अच्छा व्यवहार किया, ढंग से बात की, उनके घर तक छोड़कर आए। मैं एक कार कम्पनी का सेल्समैन हूं। यह कार का गिफ्ट मॉडल है। त्रिवेदीजी ने कार देख रखी थी, आज फ़ाइनल कर दी है । मेरा आपके साथ जाना लक्की रहा, इसलिए आपको यह गिफ्ट दिया जा रहा है। थैंकयू बेटा। गिफ्ट आपको कैसा लगा’।
‘थैंकयू अंकल, यह गिफ्ट कार मुझे बहुत अच्छी लगी। मुझे कारें बहुत पसंद हैं, मेरे पास पहले भी काफी हैं’ शेखू ने खुश होकर कहा।
मुदित, अन्नू, चारू और टिंगू ने शेखू को बधाई दी। टिंगू को अपनी भूल का एहसास हो रहा था। वह समझ रहा था कि शेखू को सबके सामने अच्छे व्यवहार का पुरस्कार क्यूं दिया जा रहा है।
अनजान अंकल ने टिंगू को कहा, ‘बेटे, ऐसा पुरस्कार आपको भी मिल सकता है, अगली बार के लिए कोशिश करते रहो’।
– संतोष उत्सुक