अनूप पासवान/कोरबा. देश के आजादी संग्राम में जुटे लाखों लोगों ने 200 वर्षों तक अंग्रेजी सत्ता के प्रभाव से भारत को मुक्त कराने के लिए संघर्ष किया. अलग-अलग स्तर पर हुई क्रांतियों और संघर्षों के बाद आखिरकार देश को स्वतंत्रता मिली. इसी यादगार युद्ध को याद रखते हुए देशभर में स्वाधीनता सेनानियों की याद में जय स्तंभ बनाए गए हैं, जो उनके बलिदान को स्मरण कराते हैं. हालांकि कोरबा के पुराने बस स्टैंड में बने जय स्तंभ की आपमानिका स्थिति है, जिसकी वजह से आसपास के लोग इसे लापरवाही और मनमानी की वजह से अपमानित महसूस कर रहे हैं. लोग वहां कपड़ा सुखाने के लिए भी इसे इस्तेमाल कर रहे हैं, जो एक गंभीर समस्या है.
स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने वालों के प्रमुख नाम उनके खुद के क्षेत्रों में बनाए गए जय स्तंभों में अंकित हैं. यह माध्यम से आज की पीढ़ी को याद दिलाया जा रहा है कि गुलामी के दौर में हमारा संघर्ष कैसा था और आजादी के लिए कौन-कौन से महान वीर सेनानी महत्वपूर्ण भूमिका निभाए थे. कुछ दशक पहले कोरबा के पुराने बस स्टैंड क्षेत्र में, गीतांजलि हवंत के पास एक स्मृतिस्तंभ खड़ा किया गया था, जिसमें भारत के राष्ट्रीय चिन्ह के साथ क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी प्रस्तुत की गई थी.
इस स्तंभ से हमें स्वाभिमान और सम्मान का भाव स्वतंत्रता संग्राम के वीर संघर्षी लोगों की याद में जीवित रखता है, हालांकि इसकी दिक्कतों के कारण यह उचित रूप से प्रदर्शित नहीं हो पा रहा है. क्षेत्र में अव्यवस्था की समस्या बढ़ रही है, जिसके लिए पास के लोग उत्तरदायी हैं. स्वतंत्रता दिवस की 76वीं वर्षगांठ से पहले इस स्मृतिस्तंभ का समीक्षण किया गया. यहां के लोग जय स्तंभ के अस्तित्व की हालत पर बहुत नाराज़ हैं. क्रांतिकारियों से लेकर शहीद जवानों की याद में, विभिन्न स्मारकों का निर्माण जारी है और इन स्मारकों के प्रति सभी का आकर्षण बढ़ता जा रहा है. इन प्रत्येक प्रतीक में राष्ट्रीय भावनाओं का संवादित होने का महत्वपूर्ण योगदान है. जय स्तंभ का मूल्यांकन भी इसी दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए, हालांकि दुर्भाग्यवश स्थानीय स्तर पर उनकी स्थिति आवश्यकताओं के अनुसार कुछ कमजोर है.
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FIRST PUBLISHED : August 16, 2023, 18:02 IST