सफेद सोने की खान पर लगी किसकी नजर? बारिश की कमी से फसल पर मंडराया संकट

दीपक पाण्डेय/खरगोन. पूरे देश में कपास का सबसे ज्यादा उत्पादन खरगोन जिले में ही होता है. यहां बीटी कपास की पैदावार होती है. कपास को सफेद सोना भी कहा जाता है. इस साल जिले में 2 लाख 5 हजार से ज्यादा हेक्टेयर से किसानों ने कपास की बुआई की है. लेकिन अब लगता है कि सफेद सोने की इस खान पर किसी की नजर लग गई है. जिले में बारिश नहीं होने से किसानों को फसलें खराब होने की चिंता सता रही है. जो किसान बारिश पर ही निर्भर है, उनकी फसलें तो लगभग चौपट होने की कगार पर है.

बता दें की पिछले 20 से 25 दिनों से जिले में बारिश नही हुई है. साथ ही गर्मी का प्रचंड रूप देखने को मिल रहा है. जिले में 33 डिग्री सेल्सियस के आसपास तापमान बना है. तेज धूप होने से खेतों में जमीन की नमी खत्म हो गई. फसलें सूख कर मुरझा गई है. पौधों की ग्रोथ पूरी तरह रूक गई है. जो फूल खिले थे वो भी टूटकर गिर गए है. कई तरह की बीमारियां लग गई है जो फसलों को नुकसान पहुंचा रही है.

अब बारिश से भी नहीं होगा लाभ
किसान विष्णु पाटीदार बताते है की कपास की खेती कुदरती खेती है. यह पूरी तरह बारिश पर आधारित है. समय पर बारिश होती है तो पैदावार भी अच्छी होती है, लेकिन अभी लंबे समय से बारिश नहीं हुई है ऐसे में फसलें सूख गई गई. स्थिति यह है की फसल लगाने में जो लागत लगी थी, वो भी अब निकलना मुश्किल है. एक बीघा में एक क्विंटल कपास भी आ जाएं तो बड़ी बात होगी. उनका मानना है की अब फसल इस स्थिति में आ गई है की अगर अब बारिश होती भी है तो फसलें सड़ जाएगी.

बारिश की कमी से फसलों का ग्रोथ रुका
विष्णु पाटीदार का कहना है की जो किसान ड्रिप लगाकर खेती करते है. उनकी फसलों की स्थिति थोड़ी ठीक है, लेकिन जो किसान सिर्फ बारिश, नहरों या तालाबों पर आधारित है, उनकी तो पूरी फसल ही खराब हो गई है. किसान अगर घंटो तक मोटर चलाकर सिंचाई करते है तो इसमें खर्च बहुत आएगा. जो हर किसान वहन नहीं कर पाएगा.जबकि वैकल्पिक साधन जुटाकर सिंचाई करने से फसलों की वो ग्रोथ भी वैसी नहीं होगी जैसी बारिश से होती है.

कपास की फसल का बीमारियों से बुरा हाल
किसान लोकेंद्र सिंह मंडलोई बताते है की उन्होंने 5 एकड़ खेत में कपास की बुआई की है. लेकिन समय पर बारिश नहीं होने से फसलों की हाइट बढ़ाना बंद हो गई है. साथ ही कई तरह की बीमारियां भी लग गई है. जो फसलों को बर्बाद कर रही है. तेज धूप ओर उमस से फसलों में तेलिया, मुंगवा जैसी कई तरह की बीमारियां लग रही है. जिससे कपास की फसल खराब हो रही है. अगर वैकल्पिक तौर पर सिंचाई करते भी है तो यें बीमारियां खत्म नहीं होंगी. क्योंकि यें बीमारियां सिर्फ बारिश के पानी से ही खत्म होती है. धूप इतनी है की दवाइयां भी छिड़कते है तो वो भी काम नहीं कर रहा.

फसलों को पानी की जरूरत
महिला किसान शारदा बाई बताती है की उन्होंने अपने 4 बीघा खेत में कपास की बुआई की है. पौधे पानी की मांग कर रहे है, लेकिन बारिश नहीं हो रही है. ऐसे में फसलें मुरझा रही है, पौधों पर जो पुड़िया (फुल) बनी थी वो सब गिर गई है. बीमारियों ने फसलों को जकड़ लिया है. सफेद मकड़ी और इल्लियां पौधों को खा रही है. अभी वें वैकल्पिक तौर पर पानी दे रहे है लेकिन ज्यादा कुछ फायदा नहीं हो रहा है.

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