संस्थागत स्मृतिकोष है कर्म निर्णय, अन्य अधिकारीगण भी लें सृजनात्मक प्रेरणा: आरिफ मोहम्मद खां

भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा आदर्श एकात्मता है जो अध्यात्म में मूलित है। एकात्मता का अर्थ है वह चेतना या संवेदनशीलता जहां व्यक्ति स्वयं अपने साथ समाज के साथ तथा परम् सत्य के साथ सामंजस्य तथा समरसता स्थापित कर सके।

नई दिल्ली। केरल प्रदेश के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद खां ने सहारनपुर के जिलाधिकारी डॉ दिनेश चन्द्र सिंह, आईएएस की नई कृति “कर्म निर्णय” को आद्योपांत पढ़कर अपना शुभकामना सन्देश प्रेषित किया है। जिसमें उन्होंने इस नवीनतम पुस्तक की सारगर्भिता, प्रासंगिकता और उपयोगिता पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला है। कुशल राजनेता के साथ साथ मूर्धन्य विद्वान समझे जाने वाले आरिफ मोहम्मद खां ने अपने संदेश में लिखा है कि “इस कालजयी रचना के लेखक डा० दिनेश चन्द्र सिंह, आई. ए. एस. ने दो वर्ष यानी 2021-22, 2022-23 तक बहराइच के जिला मजिस्ट्रेट तथा कलेक्टर के उत्तरदायित्व को निभाया। इस बीच जिले में नियमित प्रशासनिक जिम्मेदारियों के अतिरिक्त उन्हें “किसान आन्दोलन” तथा “बाढ़ आपदा” जैसी गंभीर चुनौतियाँ का भी सामना करना पड़ा। शान्ति व्यवस्था तथा बाढ़ पीड़ित लोगों को राहत पहुँचाने की दृष्टि से भी उन्होंने बहुत से निर्णय लिये तथा उनको कैसे कार्यान्वित किया, इसका विस्तृत वर्णन डा० दिनेश चन्द्र सिंह ने अपनी पुस्तक “कर्म निर्णय” में किया है।”

वरिष्ठ पत्रकार कमलेश पांडेय, संपादक, राजनैतिक दुनिया डॉट कॉम द्वारा संपादित इस पुस्तक का महत्व बताते हुए उन्होंने लिखा है कि “विभिन्न समस्याओं से जूझते हुए जो समाधान ढूँढे गये, उनको एक दस्तावेजी रूप दे दिया गया है जो ना केवल प्रशासन की पारदर्शिता की परम्परा को सुदृढ़ करेगा बल्कि जिले में आने वाले नये अधिकारियों के लिये भी एक मार्गदर्शिका के तौर पर इस पुस्तक का उपयोग हो सकेगा। इस पुस्तक को हम संस्थागत स्मृतिकोष (institutional memory) के रूप में भी देख सकते हैं।”

राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खां आगे लिखते हैं कि “डा० दिनेश चन्द्र सिंह की पहली पुस्तक “काल प्रेरणा” की तरह इस नई रचना “कर्म निर्णय” में भी जितने विषयों पर चर्चा की गई है, उन सब में जो बात प्रमुखता से उभर कर आती है, वह भारतीय सांस्कृतिक जगत का सार्वभौमिक दृष्टिकोण है, जिसके सन्दर्भ में वह विभिन्न समस्याओं के समाधान ढूँढने का प्रयास करते हैं। पुस्तक का यह पहलू ऐसा है जो निश्चित ही हमारे युवा वर्ग को अपनी सांस्कृतिक विरासत को और ज्यादा समझने के लिये प्रेरित करेगा।”

भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा आदर्श एकात्मता है जो अध्यात्म में मूलित है। एकात्मता का अर्थ है वह चेतना या संवेदनशीलता जहां व्यक्ति स्वयं अपने साथ समाज के साथ तथा परम् सत्य के साथ सामंजस्य तथा समरसता स्थापित कर सके। एकात्मता का अर्थ है जब दूसरे के दर्द और कठिनाई को हम अपना दर्द समझने लगें तथा दूसरे की सफलता को हम उत्सव के रूप में मना सकें।

हमारे जीवन का उद्देश्य केवल निजी सुख और समृद्धि प्राप्त करना नहीं बल्कि स्वामी विवेकानन्द के शब्दों में वह ज्ञान प्राप्त करना है जिससे हमारे अन्दर यह क्षमता पैदा हो सके कि हम सबको एक में और एक में सब को देख सकें। हमारी संस्कृति का यह आधारभूत सिद्धान्त ही उस संवेदनशीलता को जन्म देता है जहां गोस्वामी तुलसीदास जी यह कह उठते हैं कि- “परहित सरस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई।”

“कर्म निर्णय” को पढ़ते समय डा० दिनेश चन्द्र की यह संवेदनशीलता खुल कर अभिव्यक्त होती है। बाढ़ से प्रभावित लोगों को राहत पहुँचाने के क्रम में कोड़िया तथा भर्थापुर गाँवों का विवरण दिल को छू जाता है। डा० दिनेश चन्द्र न केवल गाँव के लोगों की कठिनाइयों को देख कर द्रवित हो उठते हैं बल्कि उस हालत में भी गाँव वालों का आतिथ्य भाव उनके मन को छू जाता है। गाँव के बाढ़ पीड़ित लोगों को राहत पहुँचाने और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के विकास को सुनिश्चित करने के लिये वह ऐसी व्यवस्था बनाने की वकालत करते हैं जहां ग़रीबी को करुणा के भाव से देखा जाये, जाति के भाव से नहीं।

हमारे यहाँ राजनीति और प्रशासन दोनों में ही अपने अनुभवों का विवरण कम ही लोगों ने लिपिबद्ध किया है। मैं आशा करता हूँ कि डा० दिनेश चन्द्र की किताबें दूसरे प्रशासनिक अधिकारियों को भी इस बात की प्रेरणा देंगी कि वह भी अपने अनुभवों को दस्तावेजी शक्ल दें ताकि उनके द्वारा किये गये कार्यों का रिकार्ड भी मौजूद रहे और उनके अनुभवों का लाभ आने वाले अधिकारी उठा सकें। आशा करता हूँ कि डा० दिनेश चन्द्र आगे भी अपना लेखन कार्य जारी रखेंगे ताकि दूसरे सभी लोग उनके अनुभवों का लाभ उठा सकें।

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *