राज राजेश्वरी मंदिर, यहां राजा ने जोशी परिवार को दी पूजा की ज़िम्मेदारी

कमल पिमोली/श्रीनगर गढ़वाल. जब गढ़वाल क्षेत्र की राजधानी श्रीनगर में बसाई गई तो उस दौरान टिहरी राजा द्वारा कीर्तिनगर रानिहाट मंदिर में कुलदेवी की स्थापना की गई. मंदिर की पूजा अर्चना की जिम्मेदारी जोशी लोगों को दी गई, और इसके लिए टिहरी नरेश द्वारा जोशी परिवार को यहां बसाया गया. जो प्रतिदिन यहां पूजा अर्चना करते थे, लेकिन 1990 में यह मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन जाने के बाद मंदिर की पूरी जिम्मेदारी विभाग के पास चली गई. हालांकि अभी भी यहां पूजा अर्चना व साल में धार्मिक अनुष्ठान होता है. रानीहाट में राजा द्वारा कुलदेवी की स्थापना करने के साथ यहां साल में एक बार गढ़वाल क्षेत्र की रानीयां पहुंचती थीं. इस दौरान यहां मेले का आयोजन भी होता था. इसे रानीयों का मेला कहा जाता था. वहीं राजपरिवार मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान के साथ पूजा पाठ करते थे.

यहां राजराजेश्वरी के मंदिर के साथ छोटे-बड़े अन्य मंदिर मौजूद हैं, जिनमें क्षेत्रपाल, हनुमान और अन्य देवताओं के छोटे-छोटे आकार के मंदिर शामिल हैं. वहीं, मंदिर के आगे एक बड़ा चौक है, जहां पर श्रद्धालु बैठते हैं. हालांकि, वर्तमान में रानीहाट स्थित प्राचीन सिद्वपीठ राजराजेश्वरी मंदिर उपेक्षा का शिकार है. यहां मां अपने ही मंदिर में उपेक्षित हैं और मंदिर की स्थिति जीर्ण-सीर्ण है. मंदिर पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आता है, लेकिन विभाग भी मंदिर की कोई सुध नहीं ले रहा है, जिसके कारण मंदिर की स्थिति बिगड़ी हुई है. इसके अलावा, मंदिर के शीर्ष भाग में एक पेड़ उग गया है, जो मंदिर को और भी नुकसान पहुंचा रहा है.

टिहरी नरेश ने जोशी लोगों को दी पूजा की ज़िम्मेदारी
पूर्व ग्राम प्रधान रानीहाट मनोज कुमार जोशी बताते हैं कि 8 वीं सदी में शंकराचार्य द्वारा इस मन्दिर का निर्माण करवाया गया था. इसके बाद टिहरी राजा ने मन्दिर में पूजा-पाठ की जिम्मेदारी जोशी परिवार को सौंप दी थी. जोशी परिवार के दादा यहां पूजा-अर्चना करते थे, और उनकी मृत्यु के बाद पिताजी को यह जिम्मेदारी मिली. 1989 में पिताजी की मृत्यु के बाद, मन्दिर पुरात्तव विभाग के अधीन चला गया, जिसके बाद मन्दिर में पूजा-पाठ होना बंद हो गया. इसके साथ ही जिसके चलते न किसी तरह से मन्दिर का सौन्दर्यीकरण कर सकते हैं और न ही कोई अन्य कार्य यहां पर कर सकते हैं.

राज राजेश्वरी मन्दिर की नहीं ले रहा कोई सुध
मनोज जोशी बताते हैं कि जब से राजराजेश्वरी मंदिर पुरात्तव विभाग के अधीन हुआ है, तब से यहां पर न समय पर पूजा-अर्चना होती है और न ही किसी भी प्रकार की देख-रेख. उनका कहना है कि जब तक गांववालों के संरक्षण में मंदिर था, तब तक यह स्थिति ठीक थी, लेकिन 1990 के बाद पुरात्तव ने इसे अपने अधीन लिया तो मंदिर बिगड़ने लगा है. मन्दिर के शीर्ष भाग में एक पेड़ और झाड़ियां भी उग गई है, कुछ मूर्तियां खंडित हो गई हैं, और पुरात्तव समेत एस डी एम तक को इस बारे में ज्ञापन और शिकायत की गई है, लेकिन प्रशासन का कहना है कि मन्दिर की इस ऐतिहासिक धरोहर की ज़िम्मेदारी अब विभाग की है और स्थानीय लोगों द्वारा यहां किसी तरह का कार्य नहीं कराया जा सकता.

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