राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को झटका, ज्योति मिर्धा भाजपा में शामिल

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने नागौर सीट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दल आरएलपी के लिए छोड़ दी थी। आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल इस सीट से विजयी रहे और कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति मिर्धा को हार का सामना करना पड़ा। बेनीवाल बाद में तीन विवादित कृषि कानूनों के मुद्दे पर राजग से अलग हो गए।

राजस्थान विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले सोमवार को सत्तारूढ़ कांग्रेस को उस वक्त झटका लगा जब उसकी पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं।
मिर्धा के साथ ही भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी सवाई सिंह चौधरी ने कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया।
प्रदेश की नागौर लोकसभा सीट से सांसद रहीं ज्योति मिर्धा और पिछले विधानसभा चुनाव में खींवसर सीट से कांग्रेस उम्मीदवार रहे चौधरी ने भाजपा मुख्यालय में वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की।
विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ज्योति मिर्धा के शामिल होने को राजस्थान सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिए एक झटका माना जा रहा है। जाट समुदाय से ताल्लुक रखने वाली ज्योति कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे नाथूराम मिर्धा की पौत्री हैं।

भाजपा महासचिव और राजस्थान प्रभारी अरुण सिंह और भाजपा की राजस्थान इकाई के अध्यक्ष सीपी जोशी ने ज्योति मिर्धा और चौधरी का पार्टी में स्वागत किया।
सिंह ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘ज्योति मिर्धा और सवाई सिंह चौधरी के शामिल होने से भाजपा परिवार को मजबूती मिली है।’’
उन्होंने यह भी कहा, ‘‘ज्योति मिर्धा बहुत लोकप्रिय नेता हैं।’’
भाजपा में शामिल होने के बाद मिर्धा ने कहा, ‘‘मेरी कोशिश होगी कि राजस्थान में भाजपा को मजबूत किया जाए। हम प्रयास करेंगे कि भाजपा को विधानसभा और लोकसभा चुनाव में शानदार जीत मिले।’’
उन्होंने कहा कि राजस्थान में कांग्रेस के भीतर निर्णायक नेतृत्व नहीं है, इसलिए भाजपा सरकार बनाएगी।

राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने ज्योति मिर्धा के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने से अपनी पार्टी पर असर पड़ने की आशंकाओं को एक तरह से खारिज करते हुए कहा कि वह कई साल से पार्टी के कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो रही थीं।
डोटासरा ने यह भी कहा कि कांग्रेस नागौर जिला समेत पूरे राजस्थान में सशक्त है और राज्य में दोबारा चुनाव जीतकर अपनी सरकार बरकरार रखेगी।
उधर, राजस्थान के खाद्य मंत्री प्रताप सिंह खाचर‍ियावास ने ज्योति मिर्धा के कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थामने पर सोमवार को कहा कि राजनीति किसी की मोहताज नहीं है और इसमें फैसला जनता करती है। साथ ही, उन्होंने दावा किया कि राज्य में कांग्रेस के पक्ष में माहौल है।

खाचरियावास ने जयपुर में संवाददाताओं से कहा, ‘‘आगे क्या होगा, क्या नहीं, यह तो भविष्य ही बताएगा, लेकिन ये वे लोग हैं जो सक्रिय नहीं हैं…एक ऐसा भी व्यक्ति होता है जो सक्रिय रहता है… राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) सांसद हनुमान बेनीवाल सक्रिय नेता हैं, जिन्होंने विश्वविद्यालय से निकलकर अपनी पार्टी बनाई, लेकिन ज्योति मिर्धा तो कांग्रेस के बैनर तले चुनाव जीतीं।’’
मिर्धा परिवार दशकों तक राजस्थान के मारवाड़ की राजनीति की धुरी रहा है। ज्योति मिर्धा के दादा नाथूराम मिर्धा की कांग्रेस और राज्य की राजनीति में अच्छी पकड़ थी। नाथूराम सांसद और विधायक भी रहे थे। नाथूराम की पोती ज्योति मिर्धा पेशे से चिकित्सक हैं। उन्होंने 2009 में नागौर से लोकसभा चुनाव जीता, लेकिन वह 2019 का लोकसभा चुनाव हार गईं।
नागौर जाट बहुल इलाका है।

पिछले कुछ वर्षों में इस इलाके में आरएलपी ने अपनी पकड़ बनाने की कोशिश की है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने नागौर सीट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दल आरएलपी के लिए छोड़ दी थी। आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल इस सीट से विजयी रहे और कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति मिर्धा को हार का सामना करना पड़ा। बेनीवाल बाद में तीन विवादित कृषि कानूनों के मुद्दे पर राजग से अलग हो गए।
आईपीएस के पूर्व अधिकारी सवाई सिंह चौधरी ने 2018 का विधानसभा चुनाव खींवसर सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में लड़ा था।

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