रसोई में जब पकेगा ये चावल, तो भरपेट खाने के बाद भी लगेगी भूख, दुनिया को बिहार का तोहफा

हाइलाइट्स

भागलपुरी कतरनी चावल की सुगंध और स्वाद भूख जगा देगा.
देश- विदेश में प्रसिद्ध कतरनी चावल के लाखों लोग हैं दीवाने.
भागलपुर – बांका जिले में तैयार किया जाता है कतरनी चावल.

पटना. रसोई से खाना पकाने की खुशबू के हम और आप कायल होते हैं. खासकर स्वादिष्ट भोजन बन रहा हो, तो रह-रहकर मुंह में पानी आना आम बात है. शाकाहारी हों या मांसाहार पसंद करने वाले, चूल्हे पर चढ़े बर्तन से उठ रही भाप और उसकी फैलती खुशबू आपको भोजन की विशिष्टता का भान करा देती है. गांव-देहात की मिट्टी में उपजी साग-भाजी हो या सब्जी का कोई और रूप, चावल हो या रोटी, देशज अन्न सामने आ जाए तो भरपेट खाने के बाद भी चख लेने या थोड़ा सा खा ही लिया जाए का भाव तो मन में आ ही जाता है.

यहां हम भोजन के जिस अवयव की बात कर रहे हैं, वह है चावल. चावल भी ऐसा वैसा नहीं, बल्कि इसे दुनिया को बिहार का तोहफा माना जाता है. बिहार की माटी और यहां की संस्कृति पर केंद्रित किताबों से लेकर जनरल नॉलेज की प्रश्नोत्तरी में इस विशिष्ट चावल का नाम आपको मिल जाएगा. हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी तक बहने वाली सदानीरा गंगा नदी के किनारे बसे भागलपुर जिले में उगने वाली धान का यह उत्पाद अपनी विशिष्ट खुशबू से दूर-दूर तक पहचाना जाता है. रसोई में इसे पकाते समय बर्तन से जो भाप उठती है, उसकी सुगंध से आस-पड़ोस कौन कहे, मोहल्ले तक को खबर लग जाती है. जी हां, हम बात कर रहे हैं बिहार के मशहूर कतरनी चावल की. प्रदेश के पूर्वी इलाके के भागलपुर इलाके में पैदा होने वाला ये चावल अपने स्वाद, सुगंध और जैविक विशिष्टता के कारण देश-दुनिया में मशहूर है.

कतरनी चावल और विमल मित्र की ‘साहेब बीवी और गुलाम’
बांग्ला साहित्यकार विमल मित्र के उपन्यास तो आपने पढ़े ही होंगे. कतरनी चावल का जिक्र छिड़ा है, तो बता दें कि बंगाल से सटे बिहार के भागलपुर इलाके में पैदा होने वाली कतरनी धान की लोकप्रियता बहुत पुरानी रही है. विमल मित्र की प्रख्यात रचना है ‘साहेब बीवी और गुलाम’. इस उपन्यास के आधार पर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री यानी बॉलीवुड ने बेहतरीन फिल्म ‘साहेब बीवी और गुलाम’ भी बनाई है. इस फिल्म में गुरुदत्त और मीना कुमारी की शानदार अदाकारी का जमाना कायल है. लेकिन हम बात कर रहे हैं मूल उपन्यास की, जिसमें कतरनी चावल का जिक्र आता है.

विमल मित्र के उपन्यास का नायक भूतनाथ के बचपन के दिनों की याद करते हुए लेखक ने राधा के विवाह के प्रकरण में इस चावल का जिक्र किया है. राधा के विवाह के लिए तत्कालीन कलकत्ता (अब कोलकाता) से कुछ लोग आए थे. इनके स्वागत में विशिष्ट भोजन बना जिसमें गांव के तालाब की मछली, प्रसिद्ध हलवाई के यहां बने रसगुल्ले के साथ-साथ भोजन के मुख्य अवयव के तौर पर कतरनी चावल का भात भी शामिल था. भागलपुर के कतरनी चावल की विशेषता क्या थी, ‘साहेब बीवी और गुलाम’ का यह उदाहरण इसके लिए पर्याप्त है.

बिहार का प्रसिद्ध भोजन है दाल-भात और चोखा
बिहार के भोजन की बात चली है, तो बता दें कि लिट्टी-चोखा, दही-चूड़ा या मीट-भात इस प्रदेश में लोकप्रिय हैं. लेकिन सबसे आसान और सुपाच्य व सुस्वादु भोजन की बात हो, तो दाल-भात-चोखा लोकप्रियता में सबसे ऊपर रहता है. घर से दूर हॉस्टल या किराये पर रहकर शहरों में पढ़ाई करने वाले बिहार के विद्यार्थियों के लिए तो यह भोजन न सिर्फ स्वास्थ्यकर है, बल्कि कम समय में सबसे जल्दी तैयार होने वाला खाना भी है. कल्पना कीजिए कि दाल-भात-चोखा में अगर भात के लिए कतरनी चावल तो खाना कितना स्वादिष्ट होगा.

कतरनी चावल को मिला है GI टैग
कतरनी धान की पैदावार ज्यादा नहीं होती. साथ ही प्राकृतिक परिस्थिति कैसी है, उस पर भी इसकी पैदावार निर्भर करती है. यही वजह है कि बिहार में या कहीं और कतरनी का उत्पादन अभी तक संभव नहीं हो सका है. भागलपुर जिले के विशेष चावल की इसी लोकप्रियता और महत्ता को देखते हुए साल 2018 में इसे जीआई टैग दिया गया. क्षेत्र विशेष में पैदा होने वाले उत्पाद को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने के लिए जीआई टैग दिया जाता है.

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