यहां है कर्णेश्वर महादेव मंदिर, सावन में भक्तों की उमड़ती है भीड़, जानें इतिहास

रामकुमार नायक/महासमुंद: पुरातात्विक खजाने से समृद्ध छत्तीसगढ़ में हम जिस स्थान पर जाते हैं. वहां कुछ न कुछ पुरातात्विक सामग्री प्राप्त होती है. प्राचीन विरासत के एक नए अध्याय से परिचय होता है. रायपुर से धमतरी होते हुए 140 किलोमीटर पर नगरी-सिहावा है. यहां रामायण कालीन सप्त ॠषियों के प्रसिद्ध आश्रम हैं. नगरी से आगे चल कर लगभग 10 किलोमीटर पर भीतररास नामक गांव है. वहीं पर श्रृंगि पर्वत से महानदी निकली है. यही स्थान महानदी का उद्गम माना गया है. नगरी से 6 किलोमीटर पर स्थित है देउर पारा, इसे छिपली पारा भी कहते हैं. यहां भगवान भोलेनाथ को समर्पित ऐतिहासिक कर्णेश्वर महादेव मंदिर है.

महाशिवरात्रि के अलावा सावन सोमवार के दिन भी ऐतिहासिक कर्णेश्वर महादेव मंदिर देउर पारा में सुबह से ही श्रद्धालु दर्शन लाभ लेने पहुंचते हैं. बोल बम और हर-हर महादेव के नारों से पूरा परिसर गुंजायमान रहता है. मंदिर के सामने नारियल, धतूरा के फूल ,अगरबत्ती और बेलपत्रों की दुकानें सजी रहती हैं. कर्णेश्वर महादेव ट्रस्ट द्वारा भगवान कर्णेश्वर महादेव का विधि-विधान रुद्राभिषेक और महाआरती की जाती है. छिपली में महानदी के तट पर स्वयंभू शिवलिंग की पूजा अर्चना पारंपरिक तरीके से की जाती है.

 कर्णेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर
यह देउर पारा गांव महानदी और बालुका नदी के संगम पर पहाड़ी की तलहटी में बसा है. नदी के एक फर्लांग की दूरी पर मंदिर समूह है. जिनमें कुछ नवीन एवं प्राचीन मंदिर दिखाई देते हैं. यहां कर्णेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है, जिसके कारण इस स्थान को कर्णप्रयाग भी कहा जाता है. कर्णेश्वर महादेव गर्भ गृह का द्वार अलंकृत है. दाहिने हाथ की तरफ एक नागरी लिपि में शिलालेख लगा हुआ है. शिलालेख देखकर इस मंदिर के ऐतिहासिक महत्व का दृष्टिगोचर होता है. कर्णेश्वर महादेव के सम्मुख नंदी भी विराजमान हैं तथा नंदी के मंडप के पीछे गणेश जी का विग्रह स्थापित है. इस स्थान पर गांव के यादव समाज, पटेल समाज, विश्वकर्मा समाज, केंवट समाज आदि ने भी मंदिर बना रखे हैं.

.

FIRST PUBLISHED : August 21, 2023, 12:22 IST

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *