मिशन रानीगंज: जानिए क्या है ग्रेट इंडियन रेस्क्यू का सच, मजदूर बोला- आज भी कानों में गूंजती हैं चीखें

Mission Raniganj Real Story Out (अमर देव पासवान) : अक्षय कुमार की अपकमिंग मूवी मिशन रानीगंज: द ग्रेट इंडियन रेस्क्यू 6 अक्टूबर को रिलीज होगी। यह फिल्म रानीगंज कोलफील्ड में एक रियल लाइफ इंडियन कोल मिशन और दिवंगत जसवंत सिंह गिल पर बेस्ड है। टीजर आउट हो चुका है। जिन 71 मजदूरों को जसवंत सिंह ने अपनी दिलेरी और सूझबूझ से 350 फिट गहरी खदान से बाहर से निकाला था, उनमें से एक जगदीश भी हैं। उन्होंने रानीगंज का असली सच बयान किया। यह भी बताया कि कैसे फरिश्ता बनकर जसवंत सिंह आए थे।

रात ढाई बजे खदान में हुआ था विस्फोट

पश्चिम बंगाल के आसनसोल में रानीगंज स्थित ईस्टर्न कोल फिल्ड लिमिटेड के अतर्गत आने वाली कुनुस्तोड़िया एरिया के महाबीर कोलियरी में 1989 में 13 नवंबर को देर रात करीबन ढाई बजे घटी खदान दुर्घटना में 350 फिट गहरे भूमिगत खदान में कोयला काटने उतरे करीब 232 मजदूर फंस गए थे। जिनमें से 161 मजदूर बाहर निकलने में सफल रहे। लेकिन 71 मजदूर उस गहरी खदान में बुरी तरह फंस गए।

चश्मदीद ने कहा- 232 मजदूर खदान में कर रहे थे काम

मौत को मात देकर खदान से सुरक्षित बाहर आए लोडर जगदीश कहार कहते हैं की वह उस दर्दनाक घटना के चश्मदीद गवाह हैं। वह कहते हैं की रात के करीब ढाई बज रहे थे। उनका एक भतीजा बाला कुमार कहार अपने अन्य मजदूर साथियों के साथ कोयले के दो नंबर पिट से तकरीबन 350 फिट कहरी खदान में कोयला लोडिंग के लिए उतरे थे। खदान के अंदर कुल 232 लोग थे, सभी लोग अपने-अपने कार्य मे लगे थे। उनका काम था खदान के अंदर ब्लास्टिंग होने के बाद गिरे कोयले को उठाकर ट्रॉली में लोडिंग करना। वह खदान के अंदर एक तरफ ट्रॉली मे कोयला लोडिंग कर रहे थे।

मौत के डर से टूट गए थे मजदूर

तभी एक खदान के अंदर एक तेज धमाका हुआ और आवाज आई भागो-भागो। खदान में काम कर रहे सभी मजदूरों के होश उड़ गए। वह भागने वाले ही थे कि खदान के अंदर समंदर की लहरों से भी तेज रफ़्तार में बह रही लहरों के बीच फंस गए। उन्होंने कहा कि खदान में पानी तेजी से बढ़ता जा रहा था। उनके साथ खदान में उतरे कई मजदूर ऊंचाई के तरफ स्थित डोली की ओर भागने मे सफल रहे लेकिन 71 मजदूर 350 फिट गहरे खदान मे फंसे रह गए। वह कैसे अपनी जान बचाएं, उनको कुछ समझ नहीं आ रहा था। कई लोग यह सोचकर रोने लगे की अब वह जिंदा नही बचेंगे। उनकी मौत के बाद उनके परिवार को कौन देखेगा? ऐसे में कुछ मजदूरों ने अपनी हिम्मत जुटाई और रो रहे मजदूरों को समझाया कि वह अकेले नही मरेंगे। अगर मरेंगे तो सब साथ मिलकर और जिंदा बचेंगे तो सब साथ जिंदा बचेंगे। जिंदा रहने के लिए गहराई में रहने से कोई फायदा नहीं, उनको खदान के ऊंचाइयों के तरफ आगे बढ़ना होगा।

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Mission Raniganj
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खदान में आया था सैलाब

उस मुश्किल घड़ी में एक दूसरे का सहारा बने एक दूसरे का पूरी मजबूती के साथ हाथ पकड़कर गहरी खदान से ऊंचाई के तरफ आगे बढ़ने लगे। खदान में ऊंचाई के तरफ से ही पानी आ रहा था क्योंकि वह खदान तीन मंजिला थी। दूसरे मंजिले पर पानी का सिम फूटा था और वह पानी पहले खदान के गहराई के तरफ आकर भरने लगा। ऐसे में खदान के अंदर फंसे 6 मजदूरों ने 65 मजदूरों का साथ छोड़ दिया। यह कहकर कि वह गलत रास्ते की ओर जा रहे हैं। आगे मौत है। वहां जाने से कोई नहीं बचेगा। सब मर जाएंगे। उन्होंने खदान के अंदर ही पानी से भरे अंधेरी खदान में अलग दिशा की तरफ बढ़ने लगे और वह पानी मे डूब गए।

6 अलग-अलग जगहों पर डूबने लगे मजदूर

बाकी के 65 मजदूर अपनी जिंदगी बचाने के लिये मौत का सामना करते हुए आगे बढ़ते रहे और वह खदान के अंदर उस जगह तक पहुंच गए जहां टेलीफोन लगा था। किस्मत से वह टेलीफोन भी चालू था। उन्होंने देर ना करते हुए तुरंत खदान के बाहर अपने कंट्रोल रूम को फोन लगाया और उन्होंने खदान के अलग-अलग 6 लोकेशन पर धीरे-धीरे पानी में डूब रहे मजदूरों की खबर पहुंचाई। जिसके बाद मैंनेजमेंट की ओर से उन 6 लोकेशन पर जमीन के अंदर होल किए गए और सबसे पहले खदान मे फंसे मजदूरों को लाइट भेजी गई। फिर खाने-पीने का समान मुहैया करवाया गया। वहीं, दूसरी ओर खदान से पानी निकालने के लिये लगाए गए एक से बढ़कर एक उपकरण फेल होते नजर आए। दिन रात पानी निकालने के लिये लगाए गए उपकरणों के बावजूद भी खदान में पानी कम नहीं हुआ। उधर खदान मे फंसे मजदूरों को बाहर निकालने का मैनेजमेंट के पास कोई रास्ता नजर नहीं सूझ रहा था। ऐसे में उस रेस्क्यू में शामिल माइंस इंजीनियर जसवंत सिंह गिल के दिमाग में एक आइडिया आया। जिन होल के द्वारा मजदूरों को खाने पिने का समान भेजा जा सकता है, तो कुछ ऐसा अगर बनाया जाए जो इस होल के द्वारा उन मजदूरों तक पहुंच जाए और उन मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाला जा सके।

जसवंत सिंह ने बनाई डोली

जसवंत सिंह ने अपने अधिकारियों से बात की और कैप्सूल नुमा डोली बनाकर होल के द्वारा मजदूरों तक पहुंचाने को कहा। अधिकारियों को जसवंत सिंह की बात थोड़ी अटपटी लगी पर खदान में फंसे मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने का दूसरा कोई रास्ता नहीं था। अधिकारियों ने भी देर ना करते हुए जसवंत सिंह को जुगाड़ बनाने की इजाजत दे दी। जसवंत सिंह ने टिन, चादर और लोहे की मदद से दो दिनों मे ठीक ऐसा कैप्सूल नुमा एक डोली बना डाला, जो चंद्रयान थ्री के मॉडल से कम नहीं दिखता था।

डोली में बैठकर खदान में उतरने को नहीं था कोई तैयार

अब सवाल यह था की उस कैप्सूल के सहारे खदान में अपनी जान की बाजी लगाकर कौन उतरेगा, कोई सामने नहीं आया। जिसके बाद जसवंत सिंह ने अपने अधिकारियों से खदान में खुद उतरने की इजाजत मांगी। अधिकारियों को अपने जांबाज इंजीनियर पर काफी भरोसा था। उन्होंने जसवंत सिंह को हां कह दिया और उस कैप्सूल नुमा डोली को खदान के अंदर उतार दिया गया। जैसे ही जसवंत सिंह खदान में फंसे मजदूरों तक पहुंचे। मजदूर उन्हे देख कर काफी खुश हुए। मजदूरों को यह यकीन हो चुका था कि अब उनकी मौत टल चुकी है। अब वह नहीं मर सकते। ऐसे में खदान के अंदर ही मजदूरों मे खदान से बाहर निकलने के लिये होड़ मच गई। जसवंत सिंह ने स्थिति को संभाला और उनसे कहा वह घबराएं नहीं, सब एक -एक कर बाहर निकलें। जब वह सब बाहर निकल जाएंगे, तब वह अंत में बाहर निकलेंगे। मजदूर जसवंत सिंह की बात सुनकर शाांत हुए और लाइन में लग गए। एक-एक कर वह खदान से बाहर निकले। ऐसे ही बाकी के पांच होल से जसवंत सिंह अपने कैप्सूल नुमा डोली लेकर खदान में उतरे और खदान मे फंसे मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाला।

Akshay Kumar, Mission Raniganj, Asansol Coal Factory
Mission Raniganj

घटना को याद कर बढ़ जाती हैं दिल की धड़कन

खदान में फंसे जगदीश के भतीजे बाला कुमार कहार ने बताया की उस घटना को याद कार आज भी वह सिहर जाते हैं। उनकी नसों मे खून की लहरें तेज हो जाती हैं। धड़कनें जोर -जोर से धड़कने लगती हैं। वह कहते हैं कि भगवान ने उनको बचा लिया, नहीं तो ऐसी घटना में कोई नहीं बचता।

कंपनी ने मजदूरों को कराया था भारत भ्रमण

वह यह भी कहते हैं खदान के अंदर बह रही पानी की लहरों की आवाज आज भी उनके कानों में गूंजती है। खदान के अंदर का वह खौफनाक मंजर वह चाह कर भी नहीं भुला पाते। वह कहते हैं कि खदान के अंदर जो उन्होंने अनुभव किया उस अनुभव को वह ताउम्र नहीं भूल पाएंगे। वह यह भी कहते हैं उस दर्दनाक घटना में फंसे कुछ मजदूर तो मर गए, कुछ जिंदा हैं तो वह यहां से चले गए पर वह और उनका चाचा आज भी इस महाबीर कोलियरी में अपने परिवार के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। वह यह भी कहते हैं की मैंनेजमेंट के तरफ से एक अच्छा काम किया गया था, जो काफी यादगार है। घटना के बाद खदान से सुरक्षित बाहर निकले मजदूरों को पूरे भारत का भ्रमण करवाया गया था। साथ में एक-एक हजार रुपए का उनको उपहार भी दिया गया था।

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