महिला टीचर के जज्बे को सलाम, 15 साल से नदी पार करके जाती हैं बच्चों को पढ़ाने

लखेश्वर यादव/ जांजगीर चांपाः कर दिखाओ कुछ ऐसा, दुनिया करना चाहे आपके जैसा, ऐसी ही कहानी एक शिक्षिका की है, जो कि घने जंगल से होकर, नाल में कमर तक भरे पानी में घुसकर बच्चों को भविष्य गढ़ने का काम करती हैं. वे कांकेर जिले के संवेदनशील क्षेत्र कोयलीबेड़ा के केसेकोडी गांव के स्कूल में पढ़ाती हैं. लेकिन स्कूल तक पहुंचने का रास्ता आसान नहीं है. लेकिन लक्ष्मी नेताम 15 सालों से यहीं से होकर पढ़ाने जाती हैं.

शिक्षिका लक्ष्मी नेताम से सीखने की जरूरत
पूरे छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग से 558 शिक्षकों की संशोधित पदस्थापना निरस्त कर दी गई थी. आपको बता दें कि अंदरूनी गांव में पदस्थ शिक्षकों की तरफ से अफसरों से सांठगांठ कर हुए रिश्वत के सहारे स्वयं को शहरी क्षेत्रों में अटैच कराने कोशिश की गई थी, जिसमें राज्य के 2723 शिक्षकों की संशोधित सूची निरस्त कर विभागीय कार्वाई शुरू कर दी गई थी. पूरे छत्तीसगढ़ में ऐसे शिक्षकों को कोयलीबेड़ा ब्लॉक के बेहद अंदरूनी संवेदनशील था, जो कि विहीन गांव केसेकोड़ी में पदस्थ शिक्षिका लक्ष्मी नेताम से सबक लेने की जरूरत है.

लक्ष्मी नेताम 2008 में यहां शिक्षिका बनीं. पहली पोस्टिंग कोयलीबेड़ा के अंदरूनी गांव केसेकोड़ी खास पारा में हुई. जहां विगत 15 वर्षों से अपनी सेवाएं दे रही हैं.

नदी में घुसकर बच्चों को पढ़ाने जाती हैं
आपको बता दें कि शिक्षिका लक्ष्मी नेताम कोयलीबेड़ा से 8 किमी दूर केसेकोड़ी स्कूल जाती हैं. यहां पहुंचने से पहले जंगल के रास्ते केसेकोड़ी नाला पार करना होता है. जहां पुल नहीं है कमर तक पानी में नाला पार करती हैं. उसके बाद डेढ़ किमी पैदल चलकर रास्ता तय करती हैं.

शिक्षिका लक्ष्मी नेताम ने बताया कि वे अक्टूबर 2008 से से स्कूल में पढ़ा रही हैं. इन 15 साल में उन्होंने कई चुनौतियों का सामना किया है. खासकर बरसात के दिनों में, नदी में पानी ज्यादा होने से परेशानी सबसे ज्यादा होती है. पहले साकिल से आती थीं, आज साथी शिक्षकों के साथ नदी तक मोटर साकिल से आती हैं. के बाद साथी शिक्षकों की सहायता से वो नदी पार करती है. उन्होंने बताया कि परेशनी तो बहुत है, लेकिन बच्चों के भविष्य के लिए स्कूल जाना भी जरूरी है.

गरीब बच्चों की मदद करती हैं लक्ष्मी
लक्ष्मी ने बताया कि जिस स्कूल में वो पढ़ाती है, वहां 20 बच्चे पढ़ने आते हैं. कई बच्चे काफी गरीब हैं, जो कुछ सामान नहीं खरीद पाते हैं, तो उन्हें वो अपनी सैलरी से पढ़ने-लिखने के लिए पेन पेंसिल, कॉपी लेकर देती हैं. साथ ही किसी भी हालत में स्कूल नहीं छोड़ने की सलाह देती हैं.

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