महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मभूमि, बृजधाम की तरह चंपारण्य का है खास महत्व

रामकुमार नायक/महासमुंद – छत्तीसगढ़ में भी वृंदावन सरीखा पावन धाम है. जी हां यहां वृंदावन की तर्ज पर ही सारे मंदिर बनाए गए हैं. प्रभु की सेवा भी वैसी ही होती है. हम बात कर रहे हैं चंपारण्यकी. यह राजधानी रायपुर से 50 किमी. की दूरी पर है. चंपारण्यछत्तीसगढ का बहुत ही रमणीय स्थल है. यहां महाप्रभु वल्लभाचार्य का प्राकट्य स्थल होने से यहां प्रतिदिन दूर-दूर से सैलानी आते हैं. महाप्रभु वल्लभाचार्य के अनुयायी वैसे तो पूरे देश में फैले हैं, लेकिन ज्यादातर गुजरात व महाराष्ट्र में है. विदेशों में जाकर बसे लोग भी जो पुष्टि संप्रदाय से ताल्लुक रखते हैं उनका भी चंपारण्यसे नियमित संपर्क बना रहता है.

लगभग 550 साल पहले बनारस से महाप्रभु वल्लभाचार्य के पिता लक्ष्मण भट्ट और माता इल्लमा गारू मुगल शासन में किए जा रहे अत्याचारों से त्रस्त होकर दक्षिण दिशा की ओर पैदल यात्रा पर निकल पड़े. वे राजिम के समीप घनघोर जंगल में निर्मित चंपेश्वर धाम से गुजरे, जहां वल्लभाचार्य ने संतान के रूप में जन्म लिया. चूंकि आठवें माह में ही उनका जन्म हुआ था, इसलिए जन्म के समय उन्होंने कोई हलचल नहीं की. माता-पिता ने उन्हें मृत समझ लिया और जंगल में ही पत्तों से ढंककर चले गए.रात्रि में श्रीनाथजी ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि तुम्हारी कोख से मैंने जन्म लिया है. सुबह उठते ही वे वापस चंपेश्वर धाम लौटे तो देखा कि बालक अग्नि कुंड में अंगूठा चूस रहा है. अग्नि कुंड के चारों ओर औघड़ बाबा भी बैठे थे. औघड़ बाबाओं को यकीन नहीं हुआ कि बालक उस दंपती का पुत्र है. इस पर माता ने श्रीनाथजी को याद किया और श्रीनाथजी ने दर्शन देकर औघड़ बाबाओं की शंका दूर की.

राजधानी से केवल 50 किमी दूर प्राकट्य स्थली
रायपुर रेलवे स्टेशन से मात्र 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है महाप्रभु वल्लभाचार्य की प्राकट्य स्थली चंपारण्य. यहां जाने के लिए भांठागांव बस स्टैंड से से बसें, जीप, कार आदि वाहन हर आधे घंटे में आसानी से मिल जाते हैं. रायपुर से 25 किलोमीटर अभनपुर और फिर 20 किलोमीटर राजिम और राजिम से मात्र 5 किलोमीटर दूर चंपारण्यस्थित है.

महाराष्ट्र-गुजरात में लाखों भक्त
वैसे तो महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्य देशभर में हैं. जिन्हें पुष्टि पंथ या वैष्णव संप्रदाय के रूप में जाना जाता है. लेकिन सबसे ज्यादा श्रद्धालु महाराष्ट्र और गुजरात से दर्शन करने आते हैं. जगद्गुरु की उपाधि प्राप्त महाप्रभु वल्लभाचार्य के देशभर में 84 बैठकें हैं, जहां उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता का पारायण किया था. इनमें से प्रमुख बैठक मंदिर चंपारण्यको माना जाता है.

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