मंजूषा शैली से बने सूर्य यंत्र की बढ़ी डिमांड…सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक

सत्यम कुमार/भागलपुर. सनातन धर्म में सूर्य यंत्र का काफी महत्व है. इसका महत्व प्राचीन काल से है. यह सुख, शांति और समृद्धि का प्रतीक है. पर आज के समय में लोग इससे दूर होते जा रहे हैं. पर भागलपुर के यह कलाकार फिर से उस प्राचीन दौड़ को वापिस लाने में लगे हुए हैं. इसमें बदलाव लाने के लिए मंजूषा गुरु के नाम से प्रसिद्ध मनोज पंडित लगे हुए हैं. उन्होंने सूर्य यंत्र को मंजूषा के द्वारा प्रदर्शित करने का काम किया है.

मनोज पंडित ने बताया कि भागलपुर कर्ण गढ़ के नाम से जाना जाता है. यह दानवीर अंग की नगरी थी. पहले लोग जब घर बनाते थे, तो घर के आगे के हिस्से में सूर्य का चित्र जरूर बनवाते थे. इससे नकारात्मक ऊर्जा घर नहीं पहुंचती थी. लेकिन अब बहुत कम जगह पर ऐसा देखने को मिलता है. इसको फिर से वापस लाना है.

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तांबा, कांसा, लोहा नहीं अब मंजूषा का भी मिलेगा सूर्य यंत्र

मनोज पंडित ने कहा कि सनातन धर्म के लोगों के घरों के सामने आपको सूर्य यंत्र देखने को मिल जाएगा. लोग घरों में सूर्य यंत्र तांबा, कांसा या लोहे का लगाते हैं. लेकिन वहीं इसमें बदलाव लाने के लिए मंजूषा से सूर्य यंत्र बनाया गया. मनोज पंडित ने बताया कि इससे नकारात्मक ऊर्जा घर नहीं पहुंचती है. लेकिन अब बहुत कम जगह पर ऐसा देखने को मिलता है. पर इसको फिर से वापस लाने के लिए प्रयासरत हैं.

सुख, शांति और समृद्धि तीनों का प्रतीक मिलेगा एक साथ

उन्होंने कहा कि हमलोग सूर्य यंत्र पर मंजूषा कला को उकेर रहे हैं. इससे सुख, शांति और समृद्धि तीनों का प्रतीक एक साथ मिल जाएगा. इसको हम लोग अमेरिका भेजने की तैयारी में लगे हुए हैं. दिल्ली में बने बिहारिका में भी इसे पहुंचाया जा रहा है. ताकि जो भी लोग आए उनको यह मिल सके. अभी कई ऐसे कार्यक्रम भी हुए, जिसमें इसको मोमेंटो के रूप में दिया गया. मंजूषा कला को विश्व स्तर तक पहुंचाने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है.

क्या है मंजूषा कला

मनोज पंडित की माने तो यह मंजूषा बिहुला विषहरी से सम्बंधित है. तीन रंगों से उकेरा जाने वाला मंजूषा सुख शांति और समृद्धि का प्रतीक देता है. इसमें हरा, गुलाबी व पीला का प्रयोग किया जाता है. देखने मे भी काफी खूबसूरत लगता है.

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