भारत की अध्यक्षता में G20 समिट रहा बेहद खास, 5 बातों के लिए याद रखेगी दुनिया

नई दिल्ली. भारत ने जी20 शिखर सम्मेलन (G20 Summit) के पहले दिन सर्वसम्मति के साथ ‘लीडर्स डिक्लेरेशन’ हासिल की और इस वैश्विक मंच पर एक स्थायी छाप छोड़ते हुए जी-20 देशों के समूह में अफ्रीकी संघ का प्रवेश सुनिश्चित किया. गौरतलब है कि 37 पन्नों के इस घोषणापत्र में ‘यूक्रेन में युद्ध’ का जिक्र किया गया है और इस संघर्ष पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रसिद्ध शब्द भी दर्ज किए गए हैं- ‘आज का युग युद्ध का नहीं होना चाहिए’.

इस घोषणापत्र ने जलवायु वित्तपोषण (क्लामेट फाइनेंस) पर भी बड़ी घोषणा की गई, जिसमें विकसित देशों से 2025 तक प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर के अपने वादे को दोगुना करने के लिए कहा गया, जहां उम्मीद है कि 2023 में पहली बार पहले का लक्ष्य पूरा हो जाएगा. इसके साथ ही वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन की स्थापना के साथ एक हरित विकास समझौता तैयार किया गया. G20 में घोषणा के तुरंत बाद भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कनेक्टिविटी कॉरिडोर लॉन्च किया जाएगा- जिसमें भारत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, फ्रांस, इटली, जर्मनी और संयुक्त राज्य अमेरिका से जुड़े कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे पर सहयोग पर एक ऐतिहासिक पहल की गई है.

जी-20 शिखर सम्मेलन ने 112 परिणामों और अध्यक्षता दस्तावेजों के साथ वितरण-उन्मुख घटनाओं के मामले में भारत की सबसे बड़ी अध्यक्षता को भी चिह्नित किया, जो पिछले प्रेसीडेंसी से दोगुने से भी अधिक है.

यहां रहीं इस जी-20 समिट के पहले दिन की 5 बड़ी उपलब्धियां…

1. सर्वसम्मति से पारित ‘नई दिल्ली लीडर्स डिक्लेरेशन’

इस जी-20 शिखर सम्मेलन की सबसे बड़ी उपलब्धि ‘लीडर्स डिक्लेरेशन’ रहा, जिसे पूर्ण सहमति से और बिना किसी फुटनोट के हासिल किया गया है. भारत ने ‘यूक्रेन के खिलाफ युद्ध’ के बजाय ‘यूक्रेन में युद्ध’ का उल्लेख करके इस घोषणापत्र पर सर्वसम्मति हासिल की. यह पिछले साल बाली डिक्लेरेशन के मुकाबले भाषा में एक महत्वपूर्ण बदलाव था और बाली की भाषा पर जी7 और यूरोपीय यूनियन के रुख में नरमी को दर्शाता है. इसमें पीएम मोदी की प्रसिद्ध पंक्ति, ‘आज का युग युद्ध का नहीं होना चाहिए’ का उल्लेख किया गया है, जो दर्शाता है कि भारत के रुख की सराहना कैसे की गई.

ऐसा माना जा रहा था कि रूस-यूक्रेन युद्ध के जिक्र पर रूस और चीन खेल बिगाड़ने की भूमिका निभा सकते हैं. इस आशंकाओं को इस बात से भी बल मिला था कि दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्ष व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग इस शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हुए थे.

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इस घोषणापत्र में कहा गया है, ‘हम गहरी चिंता के साथ दुनिया भर में भारी मानवीय पीड़ा और युद्धों तथा संघर्षों के प्रतिकूल प्रभाव को देख रहे हैं. यूक्रेन में युद्ध के संबंध में, बाली में हुई चर्चा को याद करते हुए हमने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपनाए गए अपने राष्ट्रीय रुख और प्रस्तावों को दोहराया और रेखांकित किया कि सभी देशों को संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों और सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुरूप, सभी राज्यों को किसी भी देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता या राजनीतिक स्वतंत्रता के खिलाफ क्षेत्रीय अधिग्रहण की धमकी या बल के उपयोग से बचना चाहिए. परमाणु हथियारों का उपयोग या उपयोग करने की धमकी अस्वीकार्य है.’

इसमें कहा गया है कि हालांकि जी20 भू-राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों को हल करने का मंच नहीं है, लेकिन शिखर सम्मेलन ने स्वीकार किया कि इन मुद्दों का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण परिणाम हो सकता है. दस्तावेज़ में कहा गया है, ‘इस घोषणापत्र में वैश्विक खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, आपूर्ति श्रृंखला, सूक्ष्म-वित्तीय स्थिरता, मुद्रास्फीति और विकास के संबंध में यूक्रेन में युद्ध के मानवीय पीड़ा और नकारात्मक अतिरिक्त प्रभावों पर भी प्रकाश डाला गया, जिसने देशों, विशेष रूप से विकासशील देशों और अल्प विकसित देश जो अभी भी कोविड-19 महामारी और आर्थिक व्यवधान से उबर रहे हैं, के लिए नीतिगत माहौल को जटिल बना दिया है.’

इस वैश्विक फोरम ने प्रासंगिक बुनियादी ढांचे पर सैन्य विनाश या अन्य हमलों को रोकने के लिए कहा और नागरिकों की सुरक्षा पर प्रभाव पर चिंता व्यक्त की. इसने सभी देशों से क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता सहित अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों को बनाए रखने का आह्वान किया और संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान तथा कूटनीति और बातचीत के माध्यम से संकटों को दूर करने के प्रयासों की वकालत की. घोषणापत्र में उन सभी प्रासंगिक और रचनात्मक पहलों का स्वागत किया गया, जो ‘यूक्रेन में व्यापक, न्यायसंगत और टिकाऊ शांति का समर्थन करती हैं, जो राष्ट्रों के बीच शांतिपूर्ण, मैत्रीपूर्ण और अच्छे पड़ोसी संबंधों को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सभी उद्देश्यों और सिद्धांतों को कायम रखेगी’.

2. पीएम मोदी द्वारा अफ्रीकी संघ को जी-20 में शामिल किया जाना
अफ्रीकी संघ का जी-20 में प्रवेश एक और ऐतिहासिक घटना है, क्योंकि भारत ने इसके लिए जोर दिया था. सरकार की ओर से यह भी कहा गया कि पीएम मोदी ने पिछले साल अफ्रीकी संघ को आश्वासन दिया था कि उन्हें जी20 में शामिल किया जाएगा. सरकारी अधिकारियों ने कहा कि यह भारत की अध्यक्षता की एक चिरस्थायी विरासत होगी और ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए देश की वकालत पर एक मजबूत बयान है.

अधिकारियों ने कहा, ‘अफ्रीकी संघ (एयू) में 55 देश शामिल हैं और जी20 में इसका शामिल होना एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जिससे यह यूरोपीय संघ के बाद जी20 के भीतर देशों का दूसरा सबसे बड़ा समूह बन गया है.’ एक अधिकारी ने कहा, ‘लंबे समय से यह पूछा जाता रहा है कि अगर ईयू जी20 का हिस्सा हो सकता है तो एयू क्यों नहीं?’

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जी20 की पूर्ण सदस्यता के साथ, एयू एक ऐसे महाद्वीप का प्रतिनिधित्व कर सकता है, जो दुनिया के सबसे बड़े मुक्त व्यापार क्षेत्र का घर है. अधिकारियों ने इसके साथ ही कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दुनिया को आवश्यक संसाधनों के मामले में भी यह बेहद समृद्ध है, जिसमें अफ्रीका सबसे कम योगदान देता है, लेकिन सबसे अधिक प्रभावित होता है. अफ़्रीकी महाद्वीप में विश्व की 60% नवीकरणीय ऊर्जा संपत्तियां और 30% से अधिक खनिज हैं, जो नवीकरणीय और निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों के लिए महत्वपूर्ण हैं.

घोषणापत्र में कहा गया, ‘अफ्रीका यूनियन हमारे समय की वैश्विक चुनौतियों से निपटने में महत्वपूर्ण योगदान देगा. अफ्रीका वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.’

3. जलवायु वित्त प्रोत्साहन
हरित विकास समझौता एक और बड़ी उपलब्धि है, जिसमें जलवायु वित्त प्रोत्साहन के मुद्दों को सामने लाया गया और डिक्लेरेशन में विकसित देशों को वर्ष 2025 तक प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर के अपने वादे को दोगुना करने के लिए कहा गया है, उम्मीद है कि वर्ष 2023 में पहली बार पहले से तय लक्ष्य पूरा हो पाएगा. जी20 में एक ठोस परिणाम के रूप में ‘वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन’ की भी घोषणा की गई है. यह जैव ईंधन को अपनाने की सुविधा के लिए सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और उद्योग का गठबंधन विकसित करने की भारत के नेतृत्व वाली पहल है.

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इस घोषणापत्र में विकासशील देशों के लिए 2030 से पहले की अवधि में 5.8-5.9 ट्रिलियन अमरीकी डालर की आवश्यकता का उल्लेख किया गया, खास तौर से उनके एनडीसी को लागू करने की आवश्यकताओं के लिए, इसके साथ ही वर्ष 2050 तक शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने के लिए वर्ष 2030 तक स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिए प्रति वर्ष 4 ट्रिलियन अमरीकी डालर की आवश्यकता पर भी ध्यान दिया गया.

4. भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर: एक गेमचेंजर
जी20 में इस घोषणा के तुरंत बाद भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कनेक्टिविटी कॉरिडोर लॉन्च किया जाएगा. यह भारत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, फ्रांस, इटली, जर्मनी और अमेरिका को शामिल करते हुए कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे पर सहयोग से जुड़ी एक ऐतिहासिक और अपनी तरह की पहली पहल होगी. यह अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा वैश्विक बुनियादी ढांचे और निवेश के लिए साझेदारी के शुभारंभ के 2 साल बाद आने वाली एक बड़े पैमाने की परियोजना है.

5. भारत की ऐतिहासिक जी-20 अध्यक्षता
भारत की जी20 की अध्यक्षता इतिहास में अब तक हुई सबसे समावेशी, सांस्कृतिक रूप से जीवंत और लक्ष्य-उन्मुख घटनाओं में से एक के रूप में दर्ज की जाएगी. इस सम्मेलन ने विकास के लिए भारत के प्रयासों को प्रदर्शित करने, प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से आसान जीवन सुनिश्चित करने और भारत के सभी हिस्सों में शांति लाने में मदद की.

G20 कार्यक्रम के तहत दुनिया भर के 115 से अधिक देशों के 25,000 से अधिक प्रतिनिधियों के साथ 60 शहरों में 220 से अधिक बैठकें आयोजित की गईं. यह आयोजन ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के अपने संदेश पर खरा उतरा है, क्योंकि इसमें अफ्रीकी संघ की सबसे बड़ी भागीदारी थी.

जी-20 सम्मेलन की पिछली अध्यक्षता की तुलना में, यह शिखर सम्मेलन सबसे समावेशी और वितरण-उन्मुख घटनाओं में से एक का गवाह बना. भारत 91 प्रयासों और प्रेसीडेंसी दस्तावेजों को लाने में सक्षम रहा, जो 2017 तक के पिछले जी20 प्रेसीडेंसी से अधिक है. 112 परिणामों और प्रेसीडेंसी दस्तावेजों के साथ, भारत ने पिछले प्रेसीडेंसी की तुलना में मूल कार्य को दोगुना से अधिक कर दिया है. सरकारी अधिकारियों के मुताबिक कि G20 के सभी अध्यक्षों में भारत की अध्यक्षता सबसे महत्वाकांक्षी और कार्य-उन्मुख रहा है.

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