बिहार की क्षेत्रीय बोली का उपन्यास’पोरेर बेटी’ तलाशता है महिलाओं का अस्तित्व

धीरज कुमार/किशनगंज. भारत में पग-पग पर पानी और वाणी बदल जाती है. खासकर बात करें कि बिहार की तो यहां पर भिन्न-भिन्न भाषाएं बोली जाती हैं. उन्हीं बोलियों में एक है सूरजापुरी. यह बिहार के सीमांचल में बोली जाती है. सूरजापुरी मुख्य रूप से किशनगंज, कटिहार, अररिया और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में बोली जाती है. इसी सूरजापुरी बोली को लेकर किशनगंज की बेटी मिली कुमारी ने अपना पहला उपन्यास लिखा है ‘पोरेर बेटी’. इस उपन्यास का विमोचन जिले के जिलाधिकारी श्रीकांत शास्त्री ने किया. पोरेर बेटी का आशय है बेटी पराया धन. इसी विषय पर पोरेर बेटी उपन्यास की रचना की गई है.

Local18 से बातचीत के दौरान मिली कुमारी ने बताया कि अपनी क्षेत्रीय बोली सूरजापूरी में मेरी पहली पुस्तक है. मैं चाहूंगी कि मेरी और भी पुस्तक सूरजापुरी में आए, ताकि सूरजापूरी बोली को आगे भाषा का दर्जा मिल सके. सूरजापूरी बोली को विशिष्ट स्थान मिले. उन्होंने कहा कि मैंने अपने इस उपन्यास में एक लड़की की भावना को आश्रय दिया है. एक बेटी को उसके मायके में बोला जाता है कि तुम इस घर की मेहमान हो या यू कहा जाता है कि बेटी तो पराया धन है. वहीं जब विवाह के बाद लड़की ससुराल जाती है, वहां भी उसके साथ अगर पराये जैसी व्यवहार हो तो वह सवाल पूछती है कि मेरा अस्तित्व क्या है? मेरा वजूद क्या?

मिली बताती हैं कि बीते दो वर्ष से वह उपन्यास लिख रही थीं. पहले मैंने विचार किया कि उपन्यास हिंदी में लिखूं, लेकिन पिछले साल में सीमांचल के कुछ ग्रामीण इलाके में गई तो देखी कि हमारी स्वयं की बोली सूरजापूरी को लेकर लोग कितने उत्साही हैं. वही सूरजापूरी संस्कृति की बात करें तो यह सूरजापुरी में कहीं है ही नहीं. अपने क्षेत्र के लोगों से जब पूछते हैं कि सूरजापुरी में है क्या, तो वह कहने में कतराते हैं. इसलिए आखिरकार मैंने यह फैसला किया कि पोरेर बेटी की रचना अपनी क्षेत्रीय बोली में ही करूंगी. अपनी संस्कृति और तहजीब को बताने का सबसे बड़ा जरिया साहित्य ही होता है. तो मैंने एक उपन्यास की रचना की. अपनी सूरजापुरी बोली को विशिष्ट पहचान मिले, इसके लिए लगातार प्रयासरत रहूंगी और आगे भी चाहूंगी कि अपनी क्षेत्रीय बोली में और भी रचना करूं.

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FIRST PUBLISHED : September 10, 2023, 14:33 IST

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