बनारस के बादअब महेश्वर में भी लगेंगी जैकार्ड मशीनें,माहेश्वरी साड़ी और होगी खास

दीपक पाण्डेय/खरगोन.बुनकरों द्वारा हैंडलूम पर हाथों से बनने वाली विश्व प्रसिद्ध माहेश्वरी साड़ियों को तकनीक के नए पंख लगने वाले है. चंदेरी और बनारस के बाद अब मध्यप्रदेश के खरगोन जिले के महेश्वर में भी जैकार्ड मशीनें लगेंगी. जिसकी मदद से लगभग 500 से ज्यादा वैरायटी की साड़ियां बन सकेंगी. उत्पादन बड़ेगा साथ ही ज्यादा लोगो को रोजगार भी मिलेगा.

बता दें कि पूरे देश में सिर्फ महेश्वर में बनने वाली माहेश्वरी साड़ी हथकरघा पर डाबी से बुनाई के बाद बॉर्डर पर डिजाइन उकेरी जाती है. बूटा-बूटी एवं पल्लू पर हाथ से बुनाई होती है, जिसमें समय के साथ मेहनत भी अधिक लगती है. लेकिन जैकार्ड मशीन लगने के बाद यह काम चंद मिनटों में पूरा हो सकेगा. बुनकरों की मानें तो विभागीय स्वीकृति और अनुदान मिलने के बाद अगले साल मार्च तक संभवतः यह मशीन लग जाएगी.

बनारस में देखा मशीन से काम –
बुनकर अजीज अंसारी ने कहा कि बीते दिनों बुनकरों का एक दल बनारस गया था. यहां उन्होंने मशीन का काम देखा और पूरी प्रक्रिया को समझा. फिलहाल बनारस में 15 मशीनों से काम हो रहा है. उनका मानना है की हथकरघा पर डाबी की जगह इलेक्ट्रॉनिक मशीन से काम आसान होगा, माहेश्वरी साड़ियों का उत्पादन बढ़ेगा. नई-नई डिजाइन बनाई जा सकेगी, जिससे साड़ियों के दाम भी अच्छे मिलेंगे.

ऐसे बनती है माहेश्वरी साड़ियां
वें बताते है की अभी परंपरागत तरीके से हेडलूम पर साड़ियां बनती है. डिजाइन देने के लिए मुख्य रूप से डाबी द्वारा काम किया जाता है. लकड़ी से बनी डाबी चेन के आकार में गोल घूमता है. इसपर डिजाइन के लिए छोटी खुंटिया ठोंकी जाती है, जो हथकरघा के ताने में लगे सैकड़ो धागों में निर्धारित करता है की कोन सा धागा कब उठेगा. डिजाइन के लिए कई दिनों की मेहनत के बाद कागज पेपर पर डिजाइन को बनाया जाता है, फिर डाबी पर खूंटी ठोंकी जाती है, इस प्रक्रिया में कई दिनों का समय लग जाता है.

ऐसे काम करती है मशीन
बुनकर मूलचंद श्रवणेकर ने कहा कि करीब चार लाख रुपए कीमत से जैकार्ड मशीन की शुरुआत होती है. इसमें भारत सरकार से अनुदान राशि मिलती है. बुनकरों को अपने हिस्से की राशि के अलाव फिटिंग चार्ज भी देना पड़ता है. पहले कंप्यूटर में डिजाइन बनाई जाती है फिर पेन ड्राइव को मशीन लगाकर सीधे डिजाइन हथकरघा पर उकेरी जाती है.

250 साल पुराना है इतिहास
होलकर स्टेट में देवी अहिल्या बाई होलकर द्वारा 1767 में हथकरघा उद्योग शुरू किया था. उस समय प्राकृतिक रूप से डाई पर साड़ियां बनती थी, यह प्रक्रिया 250 साल बाद भी जारी है. पहले केवल सूती साड़िया बनती थी लेकिन अब रेशम सहित सोने और चांदी के धागों से भी माहेश्वरी साड़ियां बनती है. वर्तमान में पूरे विश्व में माहेश्वरी साड़ियों की डिमांड है. महेश्वर में 8 हजार से ज्यादा लोग माहेश्वरी साड़िया बनाते है. इसमें लगभग 40 फीसदी से ज्यादा महिलाएं शामिल है.

Tags: Hindi news, Local18, Madhya pradesh news

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *