तीन साल से केवल नर्मदा जल पर जिंदा है यह संत, जानिए इनकी अलौकिक ऊर्जा का राज

अनुज गौतम/सागर :मध्य प्रदेश की जीवनदायनी कहे जाने वाली नर्मदा नदी के संरक्षण संवर्धन के लिए एक तपस्वी दादा गुरु पिछले तीन सालों से केवल नर्मदा जल पर आश्रित है. 1058 दिन से उन्होंने अन्न का एक दाना भी ग्रहण नहीं किया है. दिन भर में केवल 1 लीटर नर्मदा जल ही पीते हैं. इसके बाद भी ना तो उन्हें कमजोरी आई है ना थकावट होती है. बल्कि दिन पर दिन और ऊर्जावान होते जा रहे हैं. वाणी में ओज चेहरे पर तेज भी बढ़ता जा रहा है. नदियों के संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करने के लिए निरंतर यात्राएं कर रहे हैं. ऐसे ही भारत की महान योग परंपरा के वाहक दादा गुरु भैया जी सरकार बुंदेलखंड के सागर पहुंचे. यहां उन्होंने नर्मदा चिंतन पर संवाद किया और यह राज भी बताया कि आखिर वह केवल नर्मदा जल पर कैसे आश्रित हैं.

2 साल 11 महीने से नर्मदा की जल पर जिंदा रहने वाले दादा गुरु पिछले 17 सालों से नर्मदा उत्थान के लिए काम कर रहे हैं. वनों को बचाने के लिए काम कर रहे हैं गायों की संवर्धन के लिए काम कर रहे हैं.मिट्टी को बचाने के लिए काम करना होगा लोग अगर मिट्टी से जुड़े रहेंगे प्रकृति से जुड़े रहेंगे. तो हमारी पीढ़ियां सुरक्षित होगी. नहीं तो गांव में नर्मदा का जल टैंकर से और गंगा का जल ट्रेन से मंगवाना पड़ेगा उन्होंने कहा कि मां नर्मदा केवल नदी नहीं है वे भगवती हैं शक्ति हैं उनके पथ पर चलने से लोग साधक हो जाते हैं उनके किनारे पर बैठने से उपासक हो जाती है. मां नर्मदा की उन पर ऐसी कृपा हुई है कि उन्होंने अन्न का त्याग कर दिया है .जिस तरह लोग अन्न को खाकर ऊर्जा लेते हैं इस तरह वह प्रकृति और मिट्टी से जुड़कर ऊर्जा प्राप्त करते हैं.

महा व्रत के बाद आनंद में है दादा गुरु
वही उनसे जब पूछा गया की नर्मदा के लिए कितनी कठिन साधना करने की क्या जरूरत थी वह काम तो और दूसरे तरीके से भी हो सकता था तो उन्होंने कहा कि यह दूसरे लोगों के लिए कठोर साधना हो सकती है उनके लिए आनंद हैं अभी वह सागर में है 2 घंटे बोलने में उन्होंने मात्र दो घुट पानी पिया है और हम दुनिया को यही व्रत के माध्यम से बताना चाह रहे हैं कि जो अपनी माटी के समीप है जो अपनी प्रकृति के समीप है सबसे बेहतर और सबसे सुरक्षित उसी का जीवन है.

देवउठनी एकादशी से फिर करेंगे नर्मदा परिक्रमा
साथी उन्होंने आमंत्रण भी दिया है कि अगर कोई यह सत्य को जानना चाहता है तो वह देवउठनी एकादशी से एक बार फिर नर्मदा परिक्रमा पर निकल रहे हैं जिसमें वह केवल जल के सहारे 25 किलोमीटर की यात्रा करेंगे 2 दिन 4 दिन 10 दिन जिसको जितना चलना हो साथ चल के देख लेना 24 घंटे साथ रहना तो सत्य का पता चल जाएगा.

धर्म ,संस्कृति ,व्यवस्था प्रकृति पर केंद्रित
हमारा धर्म हमारी संस्कृति सब प्रकृति पर केंद्रित है धर्म धरा से अलग नहीं है और हमारा केवल धर्म ही नहीं हमारी संस्कृति हमारा जीवन हमारी व्यवस्था हमारी प्रकृति गंगा पर यमुना पर नर्मदा पर अभ्यारण पर केंद्रित है धर्म को धारा को और इन नदियों को अलग ना जोड़ें इसे ही हमारा अस्तित्व है इनसे ही हमारी पहचान हैविंध्य हो बुंदेलखंड हो सभी जगह धीरे-धीरे मिट्टी खत्म होती जा रही है यह हमारी गलत जीवन शैली की वजह से हो रहा है

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