घोसी उपचुनाव: दारा सिंह से नाराजगी ने फेरा भाजपा की मेहनत पर पानी, अति आत्मविश्वास भी बनी हार की वजह

Ghosi by-election: Displeasure with Dara Singh spoils BJP's hard work

दारा सिंह चौहान
– फोटो : अमर उजाला

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लोकसभा चुनाव से पहले घोसी उपचुनाव जीतने के लिए सत्ताधारी दल और सरकार ने पूरी ताकत लगाई मगर, भाजपा यह सीट सपा से छीन नहीं पाई। घोसी की जनता ने न सिर्फ दलबदलू दारा सिंह चौहान को सबक सिखाया, बल्कि भाजपा को भी प्रयोगों पर गौर करने का संदेश दिया।

विधानसभा चुनाव-2022 में सपा प्रत्याशी के रूप में दारा सिंह ने घोसी सीट से करीब 22 हजार से अधिक मतों से चुनाव जीता था। महज 16 महीने बाद सपा से इस्तीफा देकर दारा भाजपा में शामिल हो गए। उपचुनाव में भाजपा ने उन्हें फिर वहीं से उतार दिया। दारा की यह पैंतरेबाजी मतदाताओं को रास नहीं आई। दारा से न सिर्फ विभिन्न समुदायों के मतदाता, बल्कि बड़ी संख्या में भाजपा के कार्यकर्ता भी नाराज थे। कार्यकर्ताओं का तर्क था कि जिस प्रत्याशी के खिलाफ 16 महीने पहले प्रचार किया था अब उसी के लिए जनता के बीच वोट मांगने कैसे जाएंगे? दूसरा तर्क था कि जब इस तरह दूसरे दलों से तोड़कर नेताओं को चुनाव लड़ाया जाएगा तो पार्टी के भूमिहार, राजभर, निषाद, कुर्मी, ठाकुर, ब्राह्मण और दलित नेताओं का मौका कब मिलेगा?

दिग्गजों का रहा जमावड़ा

उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी और महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह ने लगातार वहां प्रवास कर नाराजगी दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने चुनाव को दारा सिंह बनाम सुधाकर सिंह की जगह भाजपा बनाम सपा कर माहौल बदलने की कोशिश भी की। सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी एक जनसभा कर माहौल बदलने का प्रयास किया। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने दो बार दौरा किया। सरकार के अधिकतर मंत्रियों और पार्टी पदाधिकारियों ने घर-घर दस्तक दी, लेकिन नतीजे बता रहे हैं कि जनता और कार्यकर्ताओं की नाराजगी को नजरअंदाज कर प्रत्याशी थोपना पार्टी को भारी पड़ा।

अति आत्मविश्वास भी बनी हार की वजह

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उपचुनाव में भाजपा के शीर्ष नेताओं का अति आत्मविश्वास भी हार की वजह बनी। योगी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री रहे दारा ने पाला बदलकर सपा से चुनाव लड़ा और जीते। बाद में इस्तीफा देकर भाजपा में आ गए। उन्हें उपचुनाव में फिर से उतारना अति आत्मविश्वास ही माना जा रहा था। कार्यकर्ता सवाल करते रहे कि खरी-खोटी सुनाकर पार्टी से इस्तीफा देने वाले को भाजपा में लाना क्यों जरूरी था? ऐसा उन्होंने तब किया था कि जब सरकार में पूरे समय मंत्री थे। सत्ताधारी दल के नेता इस सवाल का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए।

मझधार में दारा का राजनीतिक भविष्य

हार के बाद दारा सिंह की स्थिति आसमान से गिरे खजूर पर अटके जैसी हो गई है। सपा छोड़ने के कारण विधायक पद भी गया। उप चुनाव हार के बाद अब भाजपा में उनका क्या उपयोग होगा, यह फिलहाल तय नहीं है। एक पक्ष का कहना है कि हार के बाद भी दारा को मंत्रिमंडल में शामिल कराया जा सकता है। नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्य डॉ. दिनेश शर्मा के इस्तीफे से खाली होने वाली विधान परिषद की सीट पर दारा को परिषद भेजा जा सकता है। लेकिन पार्टी के दूसरे धड़े का मानना है कि इससे जनता और कार्यकर्ताओं में गलत संदेश जाएगा कि जिसे जनता ने स्वीकार नहीं किया उसे इस तरह मौका देने की क्या राजनीतिक मजबूरी है। दारा सिंह को नोनिया चौहान समाज का बड़ा नेता माना जाता है। उपचुनाव के नतीजों से पिछड़े वर्ग में उनके वर्चस्व पर भी असर पड़ेगा।

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