क्या भारत मंडपम से निकलेगा दुनिया की खुशहाली का मंत्र?

G-20 Summit Anurradha Prasad Show: मैं हूं अनुराधा प्रसाद। दिल्ली आजकल Diplomacy की World Capital बनी हुई है। राजधानी दिल्ली की सड़कों पर भव्यता है, सुंदरता है। चप्पे-चप्पे पर हथियारों से लैस सुरक्षाकर्मी हैं। सड़कों के सन्नाटे को समय-समय पर VVIP मेहमानों की गाड़ियों का काफिला तोड़ रहा है। दुनिया के प्रभावशाली देशों के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और प्रतिनिधि दिल्ली में एक-दूसरे के साथ हल्की मुस्कान और पूरी गर्मजोशी से मिल रहे हैं। बंद कमरों में अपने मुल्क के हितों को साधने के लिए कूटनीतिक दांव-पेंच भी बड़ी चतुराई से आजमाए जा रहे हैं। Between the Line ये पढ़ने की बहुत कोशिश हुई कि जी-20 शिखर सम्मेलन में चाइना के राष्ट्रपति जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के दिल्ली नहीं पहुंचने की असल वजह क्या रही? दलील ये भी दी जा रही है कि जिनपिंग और पुतिन के दिल्ली नहीं पहुंचने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि, दोनों ने अपने प्रतिनिधि भेज रखे हैं। लेकिन, शी जिनपिंग के दिल्ली नहीं पहुंचने से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन जरूर थोड़ा निराश हुए होंगे?

ऐसे में आज मैं आपको बताने की कोशिश करूंगी कि अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन आखिर चाहते क्या हैं? चाइना के लिए अमेरिका की जुबान पर क्या है और मन में क्या है? क्या चाइना और रूस का रिश्ता आपसी सहूलियत और परिस्थितियों की देन है या दोनों लंबे समय तक साथ-साथ चल सकते हैं? सऊदी अरब की हाल में यूक्रेन और रूस में दिलचस्पी क्यों बढ़ी है? क्या सऊदी अरब भी एक नया World Order बनाने की कोशिश कर रहा है? दुनिया कितने गुटों में बंटी दिख रही है? कौन, किससे क्या साधना चाहता है और जी-20 के मंच के जरिए भारत किस तरह की दुनिया गढ़ना चाहता है? ऐसे सभी सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे – अपने स्पेशल शो कूटनीति का दिल्ली मंडपम में।

मतभेदों को भुला रहे दुनिया के प्रभावशाली देश

जी-20 के शिखर सम्मेलन में जिस तरह से माहौल बना है, जिस तरह से पहला सेशल One Earth और दूसरा सेशन One Family संपन्न हुआ। भारत की अगुवाई ने दुनिया के प्रभावशाली देशों ने अपने मतभेदों को किनारे रखने की कोशिश की। इससे ऐसा लग रहा है कि ज्यादातर मुद्दों पर सदस्य देशों को बीच सहमति बनी तय है। ये भविष्यवाणी भी की जाने लगी है कि भारत की अगुवाई में G-20 को नया जीवन मिलेगा। भारत अपनी परंपरा के हिसाब से एक ऐसी संवाद कड़ियां आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, जिसमें जी-20 के मंच का एक ऐसे पुल की तरह इस्तेमाल किया जा सके, जहां बिना किसी भेदभाव के दूसरे देशों की संप्रभुता का पूरा सम्मान हो। सहयोग और समृद्धि का रास्ता निकलता हो। करीब 40 साल पहले भी दिल्ली में इसी तरह कूटनीति का एक बड़ा कुंभ लगा था। मौका का Non-Aligned Movement के शिखर सम्मेलन का। तब दर्जनों देशों के राष्ट्राध्यक्ष समेत सवा सौ से अधिक देशों के प्रतिनिधि दिल्ली पहुंचे थे। उस दौर की दिल्ली आज की तुलना में बहुत छोटी थी। तब भी सुरक्षा के बहुत कड़े इंतजाम किए गए थे। एक तरह से ये भी कह सकते हैं कि तब दिल्ली को सील कर दिया गया था। उस दौर में मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी में International Studies की स्टूडेंट थीं। NAM Summit का आयोजन विज्ञान भवन में हुआ था, ठीक उसी तरह जैसे जी-20 का प्रगति मैदान के भारत मंडपम में चल रहा है। सबसे पहले ये देखते हैं कि आज पूरे दिन कूटनीति की मेज पर किस तरह की केमेस्ट्री बनती दिखी?

अमेरिका G-20 से क्या चाहता है?

भारत एक ऐसा World Order बनाना चाहता है, जिसमें GDP केंद्रित सोच की जगह मानव केंद्रीय सोच ड्राइविंग सीट पर रहे। People above Profit वाली सोच के साथ जी-20 के सदस्य आगे बढ़ें। इस मंच को भारत विकसित और विकासशील दोनों ही तरह के देशों के पुल के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि मौजूदा समय में अमेरिका G-20 से क्या चाहता है? पिछले 50 दिनों में अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन और नरेंद्र मोदी के बीच दूसरी बार मुलाकात हुई। कूटनीतिक दांव-पेंच में पूरी जिंदगी खपाने वाले कूटनीतिज्ञ अमेरिकी कूटनीति को अपने-अपने चश्मे से देखते हैं। एक सोच ये भी है कि मौजूदा परिस्थितियों में अमेरिका एक तीर से कई निशाना साधने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका का पहला निशाना कभी सैन्य रूप से बहुत मजबूत स्थिति में समझा जाने वाला रूस है। पिछले डेढ़ साल से अधिक समय से यूक्रेन से युद्ध लड़ रहा रूस अब बहुत कमजोर हो चुका है। रूस-यूक्रेन युद्ध जब भी खत्म होगा तब अमेरिका के सामने सिर्फ एक बड़ी चुनौती दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था चीन से निपटने की होगी। अभी खुद घरेलू मोर्चे पर अमेरिका की हालत बहुच पतली है लेकिन, एक बड़ा सच ये भी है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में चाइना अहम भूमिका निभाता रहा है। दोनों एक-दूसरे की तरक्की में अहम भूमिका निभाते रहे है, ऐसे में भले ही कूटनीतिक रूप से अमेरिका चीन को आंख दिखाता नजर आता हो लेकिन, भीतर खाने चाइना के साथ बिजनेस डील पर भी आगे बढ़ते रहना चाहता है। इसीलिए, माना जा रहा है कि अगर चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग दिल्ली आए होते तो संभवत: अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन जरूर भीतरखाने केमिस्ट्री बनाने की कोशिश करते।

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अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हेकड़ी नहीं चलेगी

सुपर पावर अमेरिका की समझ में एक बात अच्छी तरह आ चुकी है कि अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हेकड़ी नहीं चलेगी। माई वे और हाईवे वाला दौर गया। बिना सबके साथ चले अमेरिकी अर्थव्यवस्था को संभाले रखना, मुल्क के बेरोजगारों की भीड़ कम करना और महंगाई से लोगों को राहत दिलाना आसान नहीं है। ऐसे में जी-20 के मंच को अमेरिका बड़ी उम्मीद के साथ देख रहा है। जी-7 से ज्यादा असरदार मान रहा है। लेकिन, चाइनीज हुक्मरानों की सोच थोड़ी अलग है। जी-20 शिखर सम्मेलन में चीन का प्रतिनिधित्व जिनपिंग के खासमखास और मुल्क के प्रधानमंत्री ली कियांग कर रहे हैं। चाइना एक ऐसा ग्लोबल ऑर्डर बनाना चाहता है, जिसमें अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को चुनौती दी जा सके। इसलिए, चाइना के राष्ट्रपति जिनपिंग BRICS में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं। इधर दिल्ली में जी-20 का महाकुंभ चल रहा है तो राष्ट्रपति जिनपिंग जांबिया और वेनेजुएला के साथ रिश्तों को नया आकार देने में जुटे हैं। पिछले कुछ वर्षों में जिस रास्ते चीन आगे बढ़ा है, उसमें सबके साथ कदमताल की जगह अकेले खड़े रहने वाली सोच हावी दिखी है। चाइना ने पिछले कुछ वर्षों में अपने साथ एशिया और अफ्रीका के कई देशों को भारी-भरकम कर्ज बोझ के नीचे दबा कर अपने साथ खड़ा करने की कोशिश की है। इतना ही नहीं, अरब वर्ल्ड में कुछ वर्षों पहले तक जैसी धमक अमेरिका की हुआ करती थी। कुछ वैसी ही चाइना की भी महसूस की जा रही है। ऐसे में राष्ट्रपति जिनपिंग एक ऐसे World Order का ख्वाब देख रहे हैं, जिसमें चाइना दुनिया को अपनी अंगुलियों पर नचा सकें। लेकिन, दिक्कत ये है कि चीन के अंदरूनी हालात इतने ख़राब हो चुके हैं कि जिनपिंग के पास नए World Order पर फोकस करने से ज्यादा जरूरी हो चुका है, मुल्क की आर्थिक चुनौतियों से निपटना।

सऊदी अरब तेजी से एक नए अवतार में आ रहा

चीन जिस तरह की आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है। उसमें उसे एक ओर ब्रिक्स और दूसरी ओर G-20 दिखाई दे रहे हैं। ब्रिक्स में जहां चाइना को अपना पलड़ा भारी दिख रहा है। वहीं जी-20 के जरिए दुनिया की सप्लाई चेन में बने रहने के लिए बेहिसाब संभावना। ऐसे में राष्ट्रपति जिनपिंग भी अपने प्रधानमंत्री ली कियांग को सख्त हिदायत के साथ दिल्ली रवाना किए होंगे कि कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए। क्योंकि, बिजनेस में और घाटा बर्दाश्त करने की स्थिति में चाइना बिल्कुल नहीं है। कूटनीति में रिश्ते और रणनीति हालात तय करते हैं जो रूस को चीन की विस्तारवादी सोच से खतरा महसूस हुआ करता था। आज की तारीख में रूस को चाइना एक दोस्त की तरह दिख रहा है। इसी तरह यूरोपीय देश भी भारत मंडपम से अपनी आर्थिक चुनौतियों से निपटने का समावेशी रास्ता देख रहे होंगे। कूटनीति के एक और खिलाड़ी का जिक्र करना भी बहुत जरूरी है जो दिल्ली में मौजूद है। पिछले कुछ महीनों में मुस्लिम वर्ल्ड के इस बड़े खिलाड़ी ने रूस-यूक्रेन के बीच सुलह कराने की कोशिश की है। सऊदी अरब तेजी से एक नए अवतार में आ रहा है। वैश्विक रिश्तों को नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश कर रहा है। हाल में सऊदी अरब और रूस के बीच एक सहमति बनी है कि दोनों तेल उत्पादन में कटौती करेंगे। इससे इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड ऑयल की कीमतों में आग लगनी तय है। ऐसे में अब ये समझना भी जरूरी है कि आखिर सऊदी अरब किस तरह का World Order बनाने का ख्वाब देख रहा है।

पीएम मोदी दुनिया को क्या संदेश रहे?

कूटनीति कैसे आगे बढ़ती है। इसे 1980 के दशक की एक हिंदी फिल्म उमराव जान के एक गीत के बोल के जरिए भी समझा जा सकता है–दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए, बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए। कुछ ऐसी ही स्थिति और उहापोह दिल्ली के भारत मंडपम में जुटे विदेशी मेहमानों की भी होगी। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव कह रहे होंगे कि बस यूक्रेन पर मास्को का पक्ष भी जोड़ लीजिए। चीन के पीएम ली कियांग कह रहे होंगे कि बीजिंग के खिलाफ पश्चिमी देशों की गोलबंदी ठीक नहीं। अमेरिका का जमाना गया अब चीन की ओर देखिए। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन कह रहे होंगे कि हम साथ-साथ चलने के लिए तैयार हैं। बस अमेरिकी कंपनियों को दिक्कत नहीं होनी चाहिए। ब्रिटेन के पीएम कह रहे होंगे कि हमारे बर्मिंघम जैसे शहर दिवालिया हो रहे हैं। जी-20 के जरिए हमें अपने मुल्क की अर्थव्यवस्था को सुधारने का मौका चाहिए। जर्मनी और इटली को आर्थिक सुस्ती के साथ-साथ ये चिंता भी सता रही होगी कि जिस तरह यूक्रेन पिछले डेढ़ साल से युद्ध लड़ रहा है। अगर उनके मुल्क पर भी हमला हो गया तो अमेरिकी अगुवाई वाला सुरक्षा चक्र बचाव कर पाएगा या नहीं। इसी तरह सऊदी अरब को भी तेजी से बदलते शक्ति संतुलन के बीच में अपने लिए नई संभावना दिख रही है। वहीं, भारत कूटनीति के दिल्ली महाकुंभ से एक ऐसी समावेशी और समान विश्व व्यवस्था को मजबूती देने की कोशिशों में जुटा है, जिसमें सबकी बात सुनी जाए। सबकी समस्याओं को सुलझाने में सहयोग की भावना सबसे ऊपर रहे। जिसमें युद्ध और वर्चस्ववादी सोच के लिए कोई जगह न हो, जहां रिश्ते GDP का आकार, भौगोलिक सीमा और सैन्य ताकत के आधार पर जोड़े या तोड़े न जाएं। यानी सही मायनों में भारत मंडपम से प्रधानमंत्री मोदी दुनिया को एक ऐसी राह दिखा रहे है, जिसमें वसुधैव कुटुंबकम वाली सोच दुनिया के जर्रे-जर्रे से निकले।

रिसर्च और स्क्रिप्ट- विजय शंकर

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