पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने यह सवाल भी किया कि क्या खरगे को समिति से इसलिए बाहर रखा गया क्योंकि वह भाजपा एवं आरएसएस के लिए सुविधाजनक नही हैं?
वेणुगोपाल ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘हमारा मानना है कि एक साथ चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति भारत के संसदीय लोकतंत्र को नष्ट करने के एक व्यवस्थित प्रयास के अलावा और कुछ नहीं है. संसद का अपमान करते हुए भाजपा ने राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष के स्थान पर एक पूर्व नेता प्रतिपक्ष (गुलाम नबी आजाद) को समिति में नियुक्त किया है.”
उन्होने दावा किया, ‘‘भाजपा ने सबसे पहले अडाणी ‘महाघोटाले’, बेरोजगारी, मूल्य वृद्धि और लोगों के अन्य ज्वलंत मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए यह नौटंकी की. फिर उन्होंने अपने धुर विरोधियों को बाहर करके इस समिति के संतुलन को एक तरफ झुकाने की कोशिश की.”
वेणुगोपाल ने सवाल किया, ‘‘खरगे जी को बाहर करने के पीछे क्या कारण है? क्या एक ऐसा नेता जो इतनी साधारण पृष्ठभूमि से निकलकर भारत की सबसे पुरानी पार्टी के शीर्ष पद तक पहुंचा हो और उच्च सदन में पूरे विपक्ष का नेतृत्व करता हो, भाजपा-आरएसएस के लिए असुविधाजनक है?”
सरकार ने लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराने के मुद्दे पर गौर करने और जल्द से जल्द सिफारिशें देने के लिए शनिवार को आठ सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति अधिसूचित कर दी.
समिति की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद करेंगे और इसमें गृहमंत्री अमित शाह, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी, राज्यसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद और वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन के सिंह सदस्य होंगे.
समिति तुरंत ही काम शुरू कर देगी और जल्द से जल्द सिफारिशें करेगी. इसमें पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष सी कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी भी सदस्य होंगे.
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