एक ऐसा परंपरा, जब हिरण-चीतल करते हैं ढोल-दमाऊं और मशकबीन की धुन में डांस

हिमांशु जोशी/पिथौरागढ़. एक समय था जब पहाड़ों में लोकपर्व ही मनोरंजन के एकमात्र साधन हुआ करते थे, यहां की भौगोलिक स्थिति, सभ्यता, संस्कृति के आधार पर ही ग्रामीण इलाकों में लोग इन्हीं चीजों से अपना मनोरंजन करते थे. ऐसा ही एक मनोरंजन का साधन हुआ करता था पिथौरागढ़ में मनाए जाने वाला हिरण-चीतल डांस. जो यहां के कृषि कार्यों, जंगली-जानवरों और देवी-देवताओं को समर्पित है.

इस विधा में 4 से पांच लोग होते हैं जिसमें सबसे आगे वाला हिरण का मुखौटा धारण करता है. और उसकी कमर में हाथ रखकर पीठ के बल पर झुककर पीछे के कलाकार रंगबिरंगे कपड़े पीठ पर डाल कर ढोल-दमाऊं की धुन पर एक नृत्य का अभिनय करते हैं.

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मुखौटे लगाकर अभिनय करते हैं लोग

यह पर्व हर साल सातूं-आठूं पर्व के समय पिथौरागढ़ के अनेक गांवों में देखने को मिलता है जिसमें अलग अलग कलाकार अलग अलग मुखौटे में अभिनय करते हैं जिसे किसी गांव में हिलजात्रा तो कहीं हिरण-चीतल नृत्य कहा जाता है. जो पिथौरागढ़ की एक पुरानी सभ्यता का प्रतीक है जो इस आधुनिक काल में भी ग्रामीणों द्वारा बड़े उत्साह से मनाया जाता है.

पिथौरागढ़ में लोक संस्कृति के जानकार भगवान सिंह रावत ने जानकारी देते हुए बताया कि अनेक गांवों में सातूं-आठूं पर्व के मौके पर मनोरंजन के रूप में इस नृत्य का अभिनय किया जाता है जो मुखौटा नृत्य के रूप में पिथौरागढ़ की एक अलग पहचान बनाता है.

कुमाऊं में शुरू हो गया है आठूं

कुमाऊं में अगस्त के महीने में यहां के लोकपर्व देखने को मिलते हैं क्योंकि यह वह समय होता है जब अनाज पकने लगते हैं और पहाड़ में इस समय लोगों के पास थोड़ा समय होता है जब वह किसी त्यौहार को मना सके, इस डांस की विधा को देखकर ऐसा लगता है कि यहां के पूर्वजों का खेती, जंगली-जानवर और देवी-देवताओं के प्रति अटूट श्रद्धा और लगाव रहा होगा जिसे आज भी उसी जोश के साथ यहां के लोग मनाते आये हैं. मुखौटे नृत्य का अभिनय उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में ही देखने को मिलता है जिसे हिलजात्रा उत्सव के रूप में मनाया जाता है जो आठूं पर्व के बाद कुमाऊं के पिथौरागढ़ जिले में शुरू हो गया है.

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