प्रिंस भरभूँजा/छतरपुर :छतरपुर जिले में पान की खेती बृहद स्तर पर होती है. छतरपुर शहर के कई नगर ऐसे हैं जहां पर रहने वाले चौरसिया समाज के लोग पान की खेती पर ही निर्भर है और यही उनके जीवन यापन का साधन है. जिले के गढ़ीमलहरा महाराजपुर पिपट पनागर बारीगढ़ कस्बों में रहने वाले चौरसिया समाज के लोग कभी इस पान को पाकिस्तान तक व्यापार करते थे.
छतरपुर जिले में होने वाली पान की खेती से उत्पादित पान कभी पाकिस्तान तक जाया करता था लेकिन 1971 के युद्ध के बाद इस पान का निर्यात पूर्ण रूप से रुक गया है. अब यह पान पश्चिमी यूपी के कई बड़े शहर अमेठी मेरठ सहारनपुर बरेली देवबंद सहित उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ से लेकर दिल्ली तक जाता है. यहां पर देसी बांग्ला एवं देसी पत्ती का पान होता है जिसकी मार्केट में खासी डिमांड है.
पान की खेती को नहीं मिल रहा प्रोत्साहन
वैसे तो सरकार है किसानों के हित में अनेकों योजनाएं चलाती है लेकिन पान किसानों के लिए अभी भी सरकार ने कोई खास सहायता योजना नहीं बनाई है. यहां तक की सरकार ने पान की खेती को अभी कृषि का दर्जा भी नहीं दिया है जिसके कारण सरकार इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही है और पान किसान अब धीरे-धीरे इस व्यवसाय को छोड़कर अन्य कार्यों में जुट रहे हैं. पान की खेती को लेकर अभी भी सरकार के पास कोई खास योजना नहीं है न ही इस खेती से होने वाले नुकसान की भरपाई सरकार ठीक से कर पाती है.
लागत अधिक मुनाफा कम
पान की खेती करने वाले किसान बताते हैं कि पान की खेती में लागत अधिक है लेकिन अब मुनाफा कम होता जा रहा है जिस तरीके से महंगाई बड़ी है उसे तरीके से पान की पत्तों का रेट नहीं बढ़ाहै आज भी उन्हें ₹20 से लेकर ₹100 में 200 पान के पत्तों की ढोली देने को मजबूर रहना पड़ता है. इससे ज्यादा कीमत नहीं मिल पाती जिसके कारण अब इस खेती में मुनाफा कम होता जा रहा है. इसी के साथ ही बारिश या अत्यधिक ठंड के कारण पान की खेती को भारी नुकसान का भी अनुमान रहता है . नुकसान के बाद मुआवजा की भी कोई गुंजाइश नहीं रहती. एक लाइन के निर्माण में 10000 से भी अधिक का खर्च है लेकिन मुआवजा मात्र 100 या 200 रुपये ही मिल पाता है जिसके कारण अब किसान परंपरागत पान की खेती को छोड़ते जा रहे हैं.
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FIRST PUBLISHED : September 09, 2023, 21:58 IST