इस गांव में गूंजती है बांसुरी की धुन,यूपी समेत कई राज्यों में भी डिमांड

 अंकित कुमार सिंह/सीवान: बांसुरी की धुन पौराणिक काल से प्रेम का प्रतीक रहा है. बांसुरी सभी धर्म और संप्रदाय के लोग बजाते हैं.बांसुरी की चर्चा होते हीं भगवान कृष्ण की मनमोहक छवि मन में आती है. कृष्ण भगवान के हर तस्वीर या मंदिर में उनके हाथों में बांसुरी दिख जाएगी. वहीं बिहार के सीवान जिला में एक ऐसा गांव है जहां एक परिवार दशकों से सबसे प्राचीन वाद्य यंत्र को बनाकर परिवार की जीविका चलाते हैं. यह शख्स जिला के मिसकरही बांसुरी टोली निवासी अनी अकबर है.

इन दिनों बाजार से गुम हो रही बांसुरी की धुन को जीवंत रखने में जिला के मिसकरहि बांसुरी टोला के कारीगर लगे हैं. एक जमाना था, जब यहां के बच्चे से लेकर बूढ़े तक बांसुरी बनाकर जीवन यापन करते थे. हालांकि आज बांसुरी बनाना छोड़ दूसरा व्यसाय अपना लिए हैं. इन सब के बीच गांव में चार परिवार ऐसा है जो अपने पुस्तैनी धंधे को नहीं छोड़ा है और आज भी बांसुरी बनाने के काम में लगे हुए हैं. बांसुरी बनाने में अनी अबकर का कोई सानी नहीं है. अनी अकबर को यह हुनर उनके पूर्वजों से मिला है, जिसको वह अकेले आगे बढ़ा रहा है. हालांकि बांसुरी बनाने में पूरा परिवार उनका सहयोग करते हैं. अनी अकबर ने बताया कि वह पिछले 20 वर्षो से बांसुरी बनाने का हीं काम कर रहे हैं.

सीवान की बांसुरियों का कई जिलों में है डिमांड
अनी अकबर ने कहा कि सीवान में बने बांसुरियों की मांग सीवान, छपरा, सहरसा, सारण, मुजफ्फरपुर के अलावा देश के अन्य राज्यो के साथ झारखंड, उत्तर प्रदेश में भी है. यही वजह है कि सीवान की बांसुरी की धुन बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश सहित कई जिलों में गुंजती है. यही नहीं बांसुरी का व्यापार करने वाले लोग खुद आते हैं और खरीदकर ले जाते हैं. इसके अलावा इलाके में जहां भी मेला लगता है, वहां खुद से बांसुरी बेचते हैं.

ढाई से तीन रुपए तक एक बांसुरी बनाने में आता है खर्च
अनी अकबर ने बताया कि एक बांसुरी को बनाने में ढाई से तीन रुपए का खर्च आता है. जबकि बाजार में एक बांसुरी को 10 से 15 रूपए में बेचा जाता है. अधिक कीमत पर बिक्री करने के पीछे की वजह यह है कि इसमें काफी वक्त लग जाता है. पहले से ग्रामीण इलाकों से नरकट को खरीद की लाते हैं. उसे छीलने के बाद धूप में सूखाना पड़ता हे. उसके आग पर लोहे को गर्म कर बांसुरी बनाने की प्रक्रिया शुरू करते हैं. यही वजह है कि थोड़ा मंहगा बेचना पड़ता है.

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