इन बाजारों में हर दिन मुर्गों पर लगता है लाखों, करोड़ो का दांव, देखें Video

रामकुमार नायक/महासमुंद. जब भी छत्तीसगढ़ की बात होती है ऐसे में यहां की संस्कृति और पुराने रीतिरिवाजों के बारे हमेशा चर्चा होती है. छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में ग्रामीणों के मनोरंजन के साधनों में शुमार है मुर्गा लड़ाई. बस्तर अंचल में मुर्गा लड़ाई बहुत ज्यादा प्रचलित है. बस्तर के आदिवासियों का पारंपरिक संस्कृति युक्त मनोरंजन का खेल है मुर्गा लड़ाई जिसमें दांव लगाए जाते है.

मुर्गा लड़ाई बस्तर संभाग के गांव में खेली जाती हैं. यहां सप्ताह में हर दिन कहीं न कहीं मुर्गा बाजार होती ही है. इस लड़ाई में शामिल होने और खेलने के लिए आस पास के गांव वालों के अलावा दूर-दूर से भी लोग आते हैं. इस लड़ाई में दो मुर्गों को आपस मे लड़ाया जाता है. लड़ाई के लिए पहले से ही मुर्गों को तैयार कर एक दूसरे से लड़ाया जाता है. इसमें जीतने वाला मुर्गे का मालिक हारने वाला मुर्गे को अपने साथ ले जाता है. मुर्गा लड़ाई में ग्रामीण द्वारा लाखों करोड़ों रूपए का दांव खेला जाता हैं.

लाखों करोड़ो के लगते है दाव

मुर्गा लड़ाई के लिए बाजार स्थल में ही गोल घेरा लगाकर बाड़ी बनाई जाती है. जिससे लड़ाये जाने वाले दोनों मुर्गो के एक-एक पैर में तेज धार वाला हथियार काती बांध दिया जाता है. जिस मुर्गे का हथियार काती उसके विपरीत वाले मुर्गे को पहले मार के डराने में सफल होता है, वह मुर्गा जीत जाता है. इस खेल में लोग बहुत पैसा लगाते हैं. जीतने वाले को दोगुना या तीगुना मिलता है. चाहे आज आधुनिक युग में टीवी, सीडी, मोबाइल उपलब्ध हो गया है, लेकिन ग्रामीण मुर्गा लड़ाई में भी विशेष रूचि दिखाते हैं. इस तरह की मुर्गा लड़ाई बस्तर के अलावा आंध्रप्रदेश, ओडिसा और अन्य जगहों में भी बहुत ज्यादा प्रचलित है. मुर्गा लड़ाई लगभग दोपहर को प्रारंभ होने के बाद देर शाम तक जारी रहती है. इस दौरान सैकड़ों लोग इस पर दांव खेलते है.

मुर्गो के बांधते है तीखी धार ब्लेड
दो मुर्गा को आपस में लड़ाने से पहले दोनो मुर्गा में तीखी धार वाले ब्लेड बांधे जाते हैं. जिन्हें काती कहा जाता है. इसे बांधने वाले जानकार को मेहनताना भी दिया जाता हैं. इसके बाद इन्हें आपस में लड़ाया जाता है. इन मुर्गों को रंगों के आधार पर कबरी, चितरी, जोधरी, लाली आदि नामों से बुलाया जाता है. मुर्गा लड़ाई के शौकीन ग्रामीण बड़े शौक से मुर्गा पालते हैं. मुर्गों का असील प्रजाति खासकर आंध्र प्रदेश और बस्तर के सीमावर्ती क्षेत्र में पाई जाती है.

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