
ये बुनकर तैयार करते हैं बनारसी साड़ियां।
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ये हथेलियां, उंगलियां खास है। इन्हीं हाथों ने बनारस की पहली पहचान, यानी बनारसी साड़ियां बुनी हैं। इनमें वो बुनकर भी हैं जो साड़ियों पर शब्द और तस्वीरों से कहानी बुन देते हैं। उनके बनाए दुपट्टे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और विदेशी पीएम को भी दिए जा चुके हैं।
आमतौर पर महिलाएं साड़ी बुनने का काम नहीं करतीं। वो सिर्फ पुरुष सदस्यों की मदद करती हैं। लेकिन सलमा शायद बनारस की इकलौती महिला बुनकर हैं। इसी लिस्ट में एक और बुनकर हैं, जो अपने परिवार के साथ मिलकर कड़वा साड़ी बनाते हैं। सोने के तारों से तैयार होने वाली साड़ी 4 महीने में पूरी होती है और इसकी कीमत लाखों में है।
पूरा परिवार मिलकर तैयार करता है साड़ी
कड़वा साड़ी बनाने में पूरा परिवार लगता है। पूरे परिवार की औरतें इसपर काम करती हैं। साड़ी का ताना बाना विशेष होता है। जरी का नली भरने से लेकर साड़ी तैयार करने में चार महीने लग जाते हैं। ऐसी साड़ियां विशेष ऑर्डर पर बनती हैं। एक साड़ी में जरी 150 ग्राम जरी और उतना ही धागे का वजन होता है। – अब्दुल्लाह अंसारी, बुनकर
साड़ियों को बनाने में लग जाते हैं चार महीने से भी ज्यादा समय
कैलीग्राफी तकनीक से एक दुपट्टा बनाने में एक सप्ताह और एक साड़ी बनाने में एक महीने लगते हैं। मेरे दुपट्टे छह बार पीएम और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को आयोध्या में दिया जा चुका है। वैष्णो जन लिखा दुपट्टा सिंजो आबे को काशी आगमन पर भेट किया था। –बच्चा लाल मौर्य, बुनकर
हाथ से बनी साड़ी देश के नामचीन लोगों को भेंट की जा चुकी है। कनेरा टाइटन साड़ी आदित्य बिड़ला ग्रुप को भेजते हैं। तेलंगाना के सांसद प्रभाकर रेड्डी, बीपी पाटिल सहित अन्य विशिष्ट सोगों को साड़ी भेजी है। -मोहम्मद सलीम बुनकर