आतंकवादी संगठन हमास ने 7 अक्टूबर को इजराइल पर आतंकवादी हमला कर करीबन 1400 लोगों की जान ले ली तो ईरान बेहद खुश हुआ क्योंकि इजराइल में घुस कर हमला करना असंभव माना जाता था। देखा जाये तो दुनियाभर में इजराइल का सुरक्षा तंत्र अभेद्य माना जाता था लेकिन हमास ने उसे भेद कर ईरान को जश्न मनाने का मौका दे दिया था। लेकिन अब जबकि इजराइल की ओर से गाजा पर भीषण हमले हो रहे हैं और गाजा में मरने वालों की संख्या 10 हजार पार कर गयी है तो ईरान सकते में है। ईरान को समझ नहीं आ रहा है कि वह जश्न मनाये या अपने किये पर पश्चाताप करे। ईरान में गाजा के हालात को देखते हुए बैठकों का दौर जारी है लेकिन वर्तमान स्थिति से निबटने का उपाय किसी को नहीं सूझ रहा है। इसीलिए कोरी लफ्फाजी कर माहौल को गर्म रखने का प्रयास किया जा रहा है। इसी के तहत ईरान ने इजराइल को चेतावनी दी है कि अगर उसने गाजा पट्टी पर अपनी निरंतर बमबारी नहीं रोकी तो उसे ‘‘कई मोर्चों’’ पर गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। हालांकि इसके साथ ही ईरान इस बात को भी समझ रहा है कि यदि वह सीधे इस युद्ध में उतरा तो उसके लिए भी मुश्किल हालात खड़े हो सकते हैं क्योंकि मौका देखकर अमेरिका भी उस पर हमला करना चाहेगा।
जहां तक ईरान की धमकी की बात है तो माना जा रहा है कि उसने इसके जरिये यह संकेत दिया है कि वह अपने लिये काम करने वाले मिलिशिया संगठनों को इजराइल पर हमले तेज करने की धमकी दे सकता है। हम आपको बता दें कि लेबनान के साथ लगती इजराइली सीमा पर कम स्तर की झड़पों में शामिल हिजबुल्ला आतंकवादी समूह और सीरिया में असद सरकार दोनों की ईरान के साथ घनिष्ठता है। दूसरी ओर, ईरान की बढ़ती शत्रुतापूर्ण बयानबाजी को देखते हुए, अमेरिका और इजराइल रणनीति बना चुके हैं कि अगर तेहरान संघर्ष में शामिल होता है तो क्या करना है। देखा जाये तो ईरान को लेकर इजराइल की स्थिति किसी प्रकार का समझौता नहीं करने वाली रही है। पहले भी उसने ईरान के परमाणु केंद्रों पर सर्जिकल हमले करने की पैरवी की थी और वह ईरान के परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या में भी संलिप्त रहा है। ऐसा लग रहा है कि गाजा युद्ध में ईरान का संभावित प्रवेश शत्रुओं के बीच दुश्मनी में एक नया अध्याय शुरू करेगा और युद्ध को सीधे ईरान के दरवाजे तक ले जाएगा।
वैसे तो लगता नहीं है कि ईरान इजराइल पर हमला करेगा लेकिन सवाल उठता है कि यदि ईरान और इजराइल का युद्ध हुआ तो उसके सैन्य और राजनीतिक परिणाम क्या होंगे? यदि यह युद्ध होता है तो एक बात स्पष्ट है कि ईरान को इजराइल की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना होगा। इजराइल के साथ खुलकर संघर्ष ईरान के लिए काफी महंगा साबित हो सकता है। इससे न केवल इजराइली सेना ईरानी केंद्रों को निशाना बना सकती है, बल्कि इसका ईरान की उस सरकार पर राजनीतिक असर भी पड़ सकता है जो तेजी से अपने नागरिकों के बीच ही अलोकप्रिय होती जा रही है।
आग से खेलने को हमेशा आतुर दिखने वाले ईरान की चेतावनियों में कितना दम है इसका अंदाजा उसकी पूर्व की चेतावनियों के हश्र से भी लगाया जा सकता है। हम आपको याद दिला दें कि अमेरिका द्वारा मशहूर युद्ध नायक कासिम सुलेमानी की जनवरी 2020 में हत्या किए जाने के बाद ईरानी प्राधिकारियों ने ‘‘करारा जवाब’’ देने का वादा किया था लेकिन उनकी प्रतिक्रिया अपेक्षाकृत कमजोर रही थी। ईरान ने इराक की दो एयरफील्ड पर पूर्व चेतावनी देते हुए हमला किया था जहां अमेरिकी सैनिक तैनात थे। यही नहीं, सीरिया में रूस और ईरान समर्थित बशर अल-असद सरकार के बने रहने के बावजूद ईरान ने कभी भी इजराइल पर हमला करने की जुर्रत नहीं की जबकि इजराइल ने सीरिया में ईरानी संपत्तियों को लगातार निशाना बनाया है।
इजराइल के बारे में ईरान के रुख की बात करें तो आपको बता दें कि वह इजराइल के अस्तित्व के अधिकार को ही खारिज करता है और इसे देश नहीं, बल्कि एक यहूदी संस्था मानता है। ईरान की आधिकारिक घोषणाएं इजराइल विरोधी बयानों से भरी पड़ी हैं। इसके अलावा इस साल जून में तेहरान ने अपनी नयी मिसाइल का परीक्षण किया था और यह दावा किया था कि इसमें इजराइल तक पहुंचने की क्षमता है। इसके अलावा, ईरानी सैन्य कमांडर हिज़्बुल्लाह और हमास सहित पूरे क्षेत्र में इज़राइल के दुश्मन समूहों को प्रशिक्षण और हथियार देने पर गर्व करते हैं।
बहरहाल, अब ईरान को एक दुविधा का सामना करना पड़ रहा है कि उसे और उसके प्रॉक्सी मिलिशिया को गाजा पर इजरायल के आक्रमण का जवाब कैसे देना चाहिए। ईरान द्वारा प्रशिक्षित और पल्लिवत हमास का जो हश्र इजराइल ने किया है उसको देखते हुए ईरान की आगे बढ़ने की हिम्मत तो नहीं हो रही है लेकिन अगर ईरान कुछ नहीं करता है तो उसके तेजतर्रार नेताओं को अपनी विश्वसनीयता खोने का खतरा भी सता रहा है।
-नीरज कुमार दुबे