Varanasi: ऑनलाइन होंगी पांडुलिपियां, तीन चरणों में दुर्लभ पांडुलिपियों का होगा संरक्षण

Varanasi: Manuscripts will be online, rare manuscripts will be conserved in three phases

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय
– फोटो : अमर उजाला

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संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन में संरक्षित प्राच्य विद्या को जल्द ही दुनिया के सामने लाया आएगा। राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के सहयोग से दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण के साथ ही उन्हें डिजिटल करने की तैयारी है। पेमेंट गेटवे के जरिये इसे ऑनलाइन माध्यम से जनसुलभ बनाया जाएगा। इससे विश्वविद्यालय की आय में भी वृद्धि होगी।

शुक्रवार को कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने पांडुलिपि संरक्षण के लिए राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के निदेशक डॉ. अनिर्वाण दास के साथ पांडुलिपि संरक्षण के लिए कुलपति कार्यालय व सरस्वती भवन में बैठक की। डॉ. अनिर्वाण दास ने बताया कि विश्वविद्यालय में संरक्षित दुर्लभ पांडुलिपियों का संरक्षण तीन चरणों में किया जाएगा। पहले चरण में सूचीकरण, दूसरे चरण में कंजर्वेशन और तृतीय चरण में डिजिटलाइजेशन होगा। इस कार्य में तीन वर्ष का समय लगेगा। 40 प्रशिक्षित प्रशिक्षकों के साथ संरक्षण का कार्य होगा। पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए 40 प्रशिक्षकों के पद के लिए 168 आवेदन प्राप्त हुए हैं। इसमें से 40 प्रतिभागियों का चयन प्रशिक्षण के लिए किया जाएगा। पांडुलिपि प्रशिक्षण के लिए 40 प्रतिभागियों को 15 दिन का प्रशिक्षण मिलेगा। पांडुलिपि प्रशिक्षण के बाद विशेषज्ञों का दल पांडुलिपियों का संरक्षण करेगा। बैठक में कुलसचिव राकेश कुमार, प्रो. हरिशंकर पांडेय, उप पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. दिनेश कुमार तिवारी उपस्थित थे।

संरक्षण के लिए पांच करोड़ रुपये सरकार ने दिया

पांडुलिपि संरक्षण के लिए पांच करोड़ रुपये केंद्र सरकार ने दिया है। इसके साथ ही और जरूरत होने पर सरकार धन उपलब्ध कराती रहेगी। सूचीकरण के बाद शोध के लिए पेमेंट गेटवे की सुविधा शुरू कराकर पांडुलिपियों की प्रति उपलब्ध कराने का सुझाव दिया गया है।

 

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