नई दिल्ली:
सैकड़ों घंटों की मशक्कत खत्म हुई… आखिरकार उत्तरकाशी सिल्क्यारा सुरंग में कैद 41 मजदूर सुरक्षित रिहा हो गए. बीते करीब 17 दिन से, ये मजदूर सुरंग में बंद, जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे थे. करीब 400 घंटों की कड़ी मेहनत और नामालूम कितनी दुआओं के बदौलत अंततः कामयाबी हाथ लगी और इन मजदूरों के परिवार वालों ने आखिरकार राहत की सांस ली. हालांकि इन 17 दिनों के जहन्नुम को इन मजदूरों ने कैसे मात दी, कैसे इन्होंने यहां नहाना-खाना, शौच जैसी तमाम परेशानियों को सामना किया… हर एक बात यहां मजदूर बारीकी से बता रहे हैं…
अपनी 17 दिनों की आपबीती सुनाते हुए मजदूरों ने बताया कि, इन 17 दिनों में फोन उनका सबसे बड़ा साथी रहा. हालांकि नीचे नेटवर्क नहीं थे, लिहाजा किसी से कॉल पर बात करना संभव नहीं था, मगर मोबाइल पर तरह-तरह के गेम खेलना बेहतरीन टाइमपास था. खासतौर पर सभी ने मिलकर लूडो खूब खेला. न सिर्फ ये बल्कि रात में खाना खाने के बाद सभी टनल के ढाई किलोमीटर लंबे लेन पर टहलने निकलते थे. सब लोग अक्सर मिलकर मॉर्निंग वॉक पर भी जाया करते थे.
जहां तक बात स्नान और शौच की थी, तो सुरंग में लगातार पहाड़ी पानी की आपूर्ति थी, लिहाजा उसी का इस्तेमाल कर सभी स्नान किया करते थे. वहीं शौच के लिए सुरंग में ही एक अलग से स्थान निर्धारित किया गया था, जहां सभी शौच करते थे. वहीं शुरुआती कुछ दिन तक मुरमुरे आदि से पेट भरा, फिर प्रशासन की ओर से पूरा खाना मिलने लगा, जिसे सभी मिलजुल के एक जगह बैठकर खाते थे.
क्या हुआ था उस दिन…
हादसे के रोज को याद करते हुए मजदूर ने बताया कि, ठीक 12 नवंबर की सुबह सभी मजदूर तय समय सारिणी के मुताबिक सुरंग पर काम कर रहे थे. तभी अचानक एक जोरदार आवाज गूंजी और देखते ही देखते सारा मलबा ढह गया, जिसके नीचे कई सारे मजदूर कैद हो गए.
इसी बीच खबर मिली कि, वे लंबे समय तक फंस गए हैं, शुरुआती दौर में उन्हें घबराहट हुई, मगर फिर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें जल्द बचा लिया जाएगा. लिहाजा वो हर परिस्थिति में डटे रहे. मजदूरों ने उस मुश्किल भरे वक्त को याद करते हुआ कहा कि, सरकार और बचावकर्मियों समेत पूरी रेस्क्यू टीम हमसे पल-पल की खबर ले रही थी, हमें भगवान पर पूरा विश्वास था कि हम जरूर बाहर आएंगे.