इन दिनों पूरे देश में दुआओं का दौर उत्तराखंड की सिल्क्यारा सुरंग में फंसे मजदूरों के लिए जारी है। मजदूरों को सुरंग से सकुशल बाहर निकालने के लिए लगातार रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी टीमें जुटी हुई है। इस रेस्क्यू ऑपरेशन के सफल होने के लिए पूरे देश में दुआएं मांगी है साथ ही कई दिनों तक मजदूरों के सुरंग में फंसे होने के कारण लोग भी परेशान रहे। अब इस रेस्क्यू ऑपरेशन का नतीजा कुछ ही पलों में निकलने वाला है। पूरा देश अब भी मजदूरों के सकुशल बाहर निकलने का इंतजार कर रहा है।
इस रेस्क्यू ऑपरेशन पर जहां सभी की नजरें लगी हुई है वहीं आपको ऐसा रेस्क्यू ऑपरेशन बताते हैं जिसे पूरी दुनिया ने नामुमकिन मान लिया था, मगर जब इस रेस्क्यू ऑपरेशन का नतीजा सामने आया तो लोग हैरान, भौंचक्के, रह गए। इस घटना को लोगों ने कुदरत का करिश्मा और भगवान का आशीर्वाद माना क्योंकि यहां फंसे हुए लोग जिंदा बाहर निकले थे। इस ऑपरेशन की खासियत थी कि ये एक भारतीय शख्स के कारण सफलता का आयाम छू सके थे।
वर्ष 2010 में चिली में 69 दिनों के लंबे अंतराल के बाद 33 मजदूरों को खदान से सकुशल बाहर निकाला गया था, जो कि कॉपर-सोने की खदाम में काम करते थे। खदान में रास्ता अचानक टूटा और सभी लोग 700 मीटर नीचे फंस गए। खदान का मुंह इस जगह से पांच किलोमीटर दूर था। सरकार ने खदान पर कई बोरहोल्स किए और हादसे के 17वें दिन ही रेस्क्यू टीम को नोट मिला जिसमें लिखा था कि शेल्टर में हम ठीक हैं, सभी 33 लोग। दरअसल खदान में एक शेल्टर था जो 50 वर्ग मीटर एरिया में फैला था, जिसमें मजदूरों ने अपना ठिकाना बनाया था। यहां वेंटिलेशन की परेशानी थी। इस रेस्क्यू ऑपरेशन को सफल बनाने में दो महीने का समय लगा और टीम मजदूरों तक पहुंच सकी। सभी मजदूरों को कैप्सूल के जरिए एक-एक कर बाहर निकाला गया था।
बंगाल में फंसे थे 65 मजदूर
पश्चिम बंगाल के रानीगंज की महाबीर खदान में 220 मजदूर अपना काम करने में जुटे हुए थे। मगर 13 नवंबर 1989 का वो दिन मजदूरों के लिए काल बनकर आएगा इसका उन्हें अंदेशा नहीं था। रोज की तरह ही ब्लास्ट कर दिवारों को तोड़ने का काम जारी ती, तभी खदान में बाढ़ आ गई। माना जाता है कि ब्लास्ट करने के दौरान किसी ने खदान की निचली सतह से छेड़छाड़ कर दी और यहां पानी रिसने लगा जो बाढ़ में तब्दिल हो गया। इसके बाद 220 मजदूरों में से कई को बाहर निकाला गया। इस दौरान पानी इतना भर गया कि 71 मजदूर फंस गए, जिनमें से छह की डूबने से मौत हो गई। अब 65 मजदूरों की जान खतरे में थे जिन्हें बचाने के लिए सुरंग के पास ही एक और सुरंग खोदी गई और खदान में जाने की कोशिश की गई जो सफल नहीं हुई। काफी मशक्कत के जरिए एक कैप्सूल बनाया गया जिससे मजदूरों तक खाना पहुंचाया गया। इसी कैप्सूल के जरिए मजदूरों को बाहर निकाला गया।
गुफा में फंसे थे 12 बच्चे
कई बार घूमने गए बच्चों पर परेशानियां आ जाती है। ऐसा ही कुछ थाईलैंड में हुआ था जब 23 जून 2018 में 12 बच्चे यहां एक लंबी गुफा में फंस गए थे। गुफा में तीन किलोमीटर तक जाने के बाद उन्हें अहसास हुआ कि गुफा में पानी भर गया है। बच्चे गुफा में फंस चुके थे और बाहर उनके परिजन उनके ना लौटने पर परेशान थे। परिजनों को गुफा के बाहर बच्चों की साइकिल दिखी, जिससे उन्हें पता चला कि बच्चे अंदर फंसे हुए है। इसके बाद बचाव दल को बुलाया गया और थाईलैंड नेवी ने भी रेस्क्यू में मदद की। गुफा में भरे पानी मे सिर्फ डाइवर्स जा सकते थे ऐसे में बच्चों को निकालने के लिए पंप की मदद से पानी बाहर निकालना शुरू किया गया। मगर बारिश के कारण फिर गुफा में पानी भरता रहा। इसके बाद थाईलैंड सरकार ने विदेशों से मदद मांगी और केव डाइवर्स को बुलाया गया। केव डाइवर्स ने गुफा में जाने की कोशिश की मगर काफी मुश्किल काम रहा। ये ऐसा रेस्क्यू मिशन था जिसमें फंसे हुए बच्चों के पास ना पानी था, ना खाने को कुछ और ना ही ऑक्सीजन की सप्लाई हो रही थी। काफी मुश्किलों को पार कर रेस्क्यू टीम बच्चों तक पहुंची थी। इतने अर्से तक बिना पानी, खाने के बच्चे कमजोर हो गए थे। इसके बाद उनके रेस्क्यू की तैयारी शुरु हुई। लगभग 100 तैराक दुनिया भर से बुलाए गए जिनकी मदद ली गई। बच्चों को बाहर लाने के लिए गुफा में डेढ़ किलोमीटर दूर ऑपरेशन बेस तैयार हुआ जहां तक डाइवर्स बच्चों को ला सकते थे। इशके बाद गाइडिंग रस्सी लगाई गई जिससे बच्चे रास्ता ना भटक जाएं। बच्चों को डाइविंग सूट पहनाए गए ताकि वो सुरक्षित रहें। इस रेस्क्यू ऑपरेशन में काफी मुश्किलों को पार कर बच्चों को बाहर निकाला गया। पहले दिन चार बच्चे बाहर आए, जिसके बाद दो दिनो में चार चार कर बच्चों को लाया गया। ये पूरा ऑपरेशन कुल 18 दिनों तक चला था।