UP Politics: उप-मुख्यमंत्रियों से BJP के 100 विधायक तोड़ने को क्यों कह रहे अखिलेश, क्या हैं इसके सियासी मायने?

यूपी में दो विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव के लिए पांच दिसंबर को वोट डाले जाएंगे। इसमें सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच सीधी टक्कर बताई जा रही है। जिन सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उनमें रामपुर और मुरादाबाद की खतौली विधानसभा सीट शामिल है। मैनपुरी लोकसभा सीट पर भी उपचुनाव हो रहा है। 

 

इन उपचुनावों में जीत हासिल करने के लिए दोनों ही पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जारी है। इस बीच, रामपुर में चुनाव प्रचार करने पहुंचे समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने यूपी के दोनों उप-मुख्यमंत्रियों को 100 विधायक लेकर कर मुख्यमंत्री बनने का ऑफर दे दिया। ऐसा नहीं है कि अखिलेश का ये बयान पहली बार आया है। इसके पहले भी वह खुले मंच से उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को इस तरह का ऑफर दे चुके हैं। हालांकि, इस बार जो बयान उन्होंने दिया, उसमें दूसरे उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक को भी शामिल कर लिया।

 

ऐसे में सवाल उठ रहा है कि बार-बार अखिलेश यादव भाजपा के विधायकों को तोड़ने की बात क्यों कर रहे हैं? उनके निशाने पर यूपी के दोनों उप-मुख्यमंत्री क्यों हैं? इसके सियासी मायने क्या हैं? आइए समझते हैं…

 

पहले जानिए अखिलेश यादव ने क्या कहा? 

अखिलेश यादव रामपुर में एक चुनावी जनसभा को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने यूपी के दोनों उप-मुख्यमंत्रियों का जिक्र किया। बोले, ये लोग जगह-जगह आ रहे हैं और हम लोगों को कह रहे हैं कि हम माफिया है, हम लोगों को अपराधी कहते हैं, लेकिन वो दोनों इस चक्कर में हैं कि कब मुख्यमंत्री बन जाएं। मैंने पहले भी ऑफर दिया, रामपुर से भी ऑफर दे रहा हूं। लाओ अपने साथ 100 विधायक, हम 100 विधायक आपके साथ तैयार है, सरकार बना लो और मुख्यमंत्री बन जाओ। क्या उपमुख्यमंत्री बने घूम रहे हो, उपमुख्यमंत्री में क्या रखा है? 

 

इसके बाद अखिलेश ने उप-मुख्यमंत्री बृजेश पाठक का बिना नाम लिए निशाना साधा। कहा कि वो अपने विभाग के एक सीएमओ और डॉक्टर का ट्रांसफर नहीं कर पा रहे। उसी तरह दूसरे उपमुख्यमंत्री हैं, उनका विभाग बदल दिया गया। वो जिस विभाग के मंत्री बने उस विभाग का बजट ही नहीं है। 

 

बार-बार उप-मुख्यमंत्रियों को निशाने पर क्यों ले रहे अखिलेश? 

ये समझने के लिए हमने वरिष्ठ पत्रकार रमाशंकर श्रीवास्तव से बात की। उन्होंने कहा, ‘यूपी की सियासत जाति और धर्म के आधार पर काफी हद तक बंटी हुई है। केशव प्रसाद मौर्य पिछड़े वर्ग से आते हैं और जब उन्हें भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया, तब से पिछड़े वर्ग का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के साथ आ गया। 2017, 2019 और फिर 2022 विधानसभा चुनाव के परिणाम ये बताते हैं। 2017 में उम्मीद थी कि केशव मौर्य को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। केशव को डिप्टी सीएम पद से ही संतोष करना पड़ा। पूरे पांच साल केशव और योगी के बीच अनबन की खूब खबरें सामने आईं।’

 

 

रमाशंकर आगे कहते हैं, ‘इस बार जब केशव प्रसाद मौर्य खुद चुनाव हार गए तब से कयास लगाए जा रहे थे कि उनकी अहमियत पार्टी और सरकार में कम होगी। हालांकि, दोबारा उन्हें उपमुख्यमंत्री पद दे दिया गया, लेकिन इस बार विभाग उतना मजबूत नहीं मिला। अखिलेश ये बात अच्छे से जानते हैं कि केशव के चलते बड़ी संख्या में पिछड़ा वर्ग भाजपा के साथ जुड़ा हुआ है। ऐसे में अगर केशव प्रसाद मौर्य को किसी तरह अपनी तरफ कर लिया जाए तो भाजपा को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।’

 

 

रमाशंकर के मुताबिक, बार-बार केशव प्रसाद मौर्य को टारगेट करके अखिलेश मौर्य, कुशवाहा व अन्य पिछड़े वर्ग को ये संदेश देना चाहते हैं कि उनके नेता के साथ भाजपा गलत कर रही है। भाजपा में केशव प्रसाद मौर्य की कोई अहमियत नहीं है और सरकार में भी उनके साथ भेदभाव हो रहा है। केशव के साथ-साथ इस बार अखिलेश ने दूसरे डिप्टी सीएम बृजेश पाठक पर भी फोकस किया है। इसके जरिए वह जनता को ये बताना चाहते हैं कि मौजूदा सरकार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। यहां तक की दोनों उप-मुख्यमंत्री भी परेशान हैं। 

 



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